तमिलनाडु की रिपोर्ट: स्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा में राज्यों की स्वायत्तता बहाली की मांग
तमिलनाडु की रिपोर्ट: स्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा में स्वायत्तता की मांग।


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चेन्नई: तमिलनाडु सरकार द्वारा केंद्र-राज्य संबंधों पर गठित 'उच्च स्तरीय समिति' को एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट सौंपी गई है। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा के क्षेत्रों में बढ़ती केंद्रीयकरण पर चिंता व्यक्त करती है और संवैधानिक तथा कामकाज में राज्यों की स्वायत्तता बहाल करने का आह्वान करती है। यह रिपोर्ट थाउज़ेंड लाइट्स विधानसभा क्षेत्र के विधायक और राज्य योजना आयोग के अंशकालिक सदस्य इज़िलन नागनाथन ने तैयार की है।
रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने छह प्रमुख क्षेत्रों में राज्यों के कामकाज में अनावश्यक दखलंदाजी की है। इस दखलंदाजी के कारण राज्यों की विशेष ज़रूरतों और स्थानीय स्वास्थ्य सेवा वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
मेडिकल शिक्षा में स्वायत्तता की मांग
रिपोर्ट में सबसे पहले मेडिकल शिक्षा का मुद्दा उठाया गया है। बताया गया है कि मेडिकल शिक्षा मूल रूप से 'राज्य सूची' का विषय थी, लेकिन बाद में इसे 'समवर्ती सूची' में डाल दिया गया। इस व्यवस्था से एक बड़ा अंतर पैदा हो गया है, जहाँ केंद्र सरकार स्वास्थ्य सेवा और मेडिकल शिक्षा के लिए नीतियाँ बनाती है, जबकि राज्य इन सेवाओं को लोगों तक पहुँचाते हैं। इस 'नीति-कार्यान्वयन अंतर' को खत्म करने के लिए रिपोर्ट सिफारिश करती है कि मेडिकल शिक्षा को वापस 'राज्य सूची' में शामिल किया जाए। इससे राज्यों को सार्वजनिक स्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा का एकमात्र अधिकार मिल पाएगा।
NMC, NEET और NEXT पर चिंताएं
रिपोर्ट में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) लाने पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। रिपोर्ट का तर्क है कि इस बदलाव ने पाठ्यक्रम और दिशानिर्देश तय करने में राज्यों की भूमिका को सीमित कर दिया है। NEET और NEXT (मेडिकल कॉलेजों में दाखिले और प्रैक्टिस लाइसेंस के लिए परीक्षा) पर भी चिंता व्यक्त की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, NEET सीबीएसई/एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम को ज़्यादा बढ़ावा देता है, जिससे एक बड़े कोचिंग उद्योग को बढ़ावा मिला है। साथ ही, सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेना मुश्किल हो गया है। रिपोर्ट सिफारिश करती है कि NMC को खत्म कर MCI को वापस लाया जाए, और राज्यों को दाखिला प्रक्रियाओं तथा परीक्षा प्रणालियों पर निर्णय लेने का अधिकार दिया जाए।
अंग प्रत्यारोपण में केंद्रीयकरण पर सवाल
अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम भी रिपोर्ट का एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदु है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (NOTTO) के माध्यम से अंग आवंटन और डेटा प्रबंधन को केंद्रीयकृत किया है। तमिलनाडु इस क्षेत्र में एक अग्रणी राज्य रहा है, लेकिन केंद्र के इन कदमों से दक्षता, निष्पक्षता और संघीय संतुलन पर गंभीर चिंताएं पैदा हुई हैं। रिपोर्ट एक दोहरी प्रणाली का सुझाव देती है: राज्य के भीतर मिलान होने पर राज्य खुद आवंटन करे, और NOTTO की भूमिका केवल तब हो जब राज्य में कोई प्राप्तकर्ता उपलब्ध न हो, यानी अंतर-राज्यीय अंग साझाकरण के लिए। साथ ही, यह सुनिश्चित करने की बात कही गई है कि केंद्रीय नियम उन राज्य नीतियों को रद्द न करें जो सामाजिक-आर्थिक रूप से कमज़ोर रोगियों की रक्षा करती हैं।
अन्य क्षेत्रों में दखलंदाजी
रिपोर्ट में दवाओं के नियमन के केंद्रीयकरण की भी जाँच की गई है, खासकर सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन की भूमिका और राज्यों पर इसके प्रभाव को देखा गया है। इसके अलावा, केंद्र-पोषित स्वास्थ्य योजनाओं के परिचालन मॉडल पर भी बात की गई है, जो अक्सर कुछ शर्तों के साथ आती हैं। रिपोर्ट कहती है कि राज्यों की विशेष स्वास्थ्य प्राथमिकताओं को न दर्शाने वाले एक समान मापदंड थोपे जाते हैं। रिपोर्ट ने इसे 'सांस्कृतिक केंद्रीयकरण' भी कहा है, जिसका अर्थ है स्वास्थ्य संचार, सार्वजनिक अभियानों और यहाँ तक कि मेडिकल पाठ्यक्रम का मानकीकरण, जो भाषाई विविधता, क्षेत्रीय पहचान और स्थानीय प्रथाओं को कमज़ोर करता है।
राज्यों को सशक्त करने की अपील
रिपोर्ट चेतावनी देती है कि केंद्रीयकरण से "विविधता कम होकर अक्षमता" में बदल सकती है। यह राज्यों को वित्तीय और संस्थागत रूप से सशक्त करने का आग्रह करती है ताकि देश में बेहतर स्वास्थ्य प्रणालियाँ विकसित की जा सकें।