मानसिक स्वास्थ्य के लिए ऑनलाइन जानकारी खतरनाक: विशेषज्ञों ने चेताया
ऑनलाइन जानकारी से खुद का निदान करना खतरनाक हो सकता है।


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आजकल मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के लिए लोग अक्सर इंटरनेट का सहारा लेते हैं। विशेषज्ञ चेताते हैं कि ऑनलाइन मिली अधूरी या गलत जानकारी से खुद का निदान करना और बिना किसी पेशेवर की सलाह के इलाज करना खतरनाक हो सकता है। यह न सिर्फ गलत निदान की ओर ले जा सकता है, बल्कि सही इलाज से भी भटका सकता है।
क्या है मामला?
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि लोग इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर खुद को कोई बीमारी बता देते हैं और फिर अपने हिसाब से इलाज ढूंढने लगते हैं। ऐसा करने से समस्या सुलझने के बजाय और बढ़ सकती है। यह प्रवृत्ति कई लोगों के लिए गंभीर शारीरिक और मानसिक परिणामों का कारण बन रही है।
गलत निदान के दो मामले
अंकिता का मामला: खुद को समझा ऑटिस्टिक
तिरुवनंतपुरम के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में मनोरोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. अरुण बी नायर एक 24 वर्षीय छात्रा अंकिता (बदला हुआ नाम) का उदाहरण देते हैं। अंकिता ने इंजीनियरिंग में बेहतरीन नंबरों से पढ़ाई पूरी की थी, लेकिन अपने कार्यस्थल पर समूह में बातचीत करने और टीम के साथ काम करने में उन्हें मुश्किल आती थी। ऑनलाइन जानकारी के आधार पर उन्होंने खुद को ऑटिस्टिक मान लिया था। डॉ. अरुण ने बताया, "उसे लगा कि उसकी हालत लाइलाज है। जबकि ऑटिज्म एक न्यूरोडेवलपमेंटल विकार है और अंकिता को ऑटिज्म नहीं था, बल्कि वह सामाजिक चिंता (सोशल एंग्जायटी) से जूझ रही थी। जब सही समस्या का पता चला, तो हम उसका इलाज कर पाए।"
आईआईटी उम्मीदवार का मामला: नशे की लत में फंसा
डॉ. अरुण एक और मामला बताते हैं, जिसमें एक 20 वर्षीय आईआईटी उम्मीदवार को दिल की धड़कन तेज होने के कारण इमरजेंसी में लाया गया था। उसने खुद को ADHD (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) से ग्रस्त मान लिया था और खुद ही दवाएं लेनी शुरू कर दी थीं। बाद में यह नशीली दवाओं के दुरुपयोग में बदल गया। ओवरडोज के कारण उसकी धड़कन तेज हो गई थी और उसे मनोरोग विभाग में भेजा गया।
'साइबरकॉन्ड्रिया' और 'इडियट सिंड्रोम' क्या है?
डॉ. अरुण बताते हैं कि इंटरनेट और सोशल मीडिया, जहां एक ओर जानकारी के लिए सशक्त माध्यम हैं, वहीं दूसरी ओर 'साइबरकॉन्ड्रिया' (Cyberchondria) जैसी समस्या को भी जन्म दे रहे हैं। यह एक प्रकार की चिंता है जो मेडिकल जानकारी के लिए बार-बार इंटरनेट पर सर्च करने से पैदा होती है। इससे व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। एर्नाकुलम के मेडिकल ट्रस्ट अस्पताल में सलाहकार मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सीजे जॉन बताते हैं कि यह 'इडियट सिंड्रोम' (Internet Derived Information Obstructing Treatment) के नाम से भी जाना जाता है। इसमें लोग ऑनलाइन मिली अविश्वसनीय स्वास्थ्य जानकारी पर बहुत ज्यादा भरोसा कर लेते हैं, जिससे गलत निदान और पेशेवर चिकित्सा देखभाल से बचने जैसी समस्याएं सामने आती हैं।
ऑनलाइन जानकारी पर निर्भरता क्यों?
कोच्चि स्थित नैदानिक मनोवैज्ञानिक ज़ैलेश्या जी का कहना है कि जागरूकता बढ़ने के बावजूद, पारंपरिक थेरेपी से जुड़ा कलंक अभी भी खत्म नहीं हुआ है। खासकर युवा, जिनके पास घर या दोस्तों के समूह में सुरक्षित जगह नहीं होती, वे एआई थेरेपी की ओर रुख कर सकते हैं। उन्हें इस बात का भी डर रहता है कि लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे। अगर कोई सहानुभूति के साथ सुनने वाला नहीं मिलता, तो एआई चैटबॉट उन्हें अपनी बात कहने का मौका देते हैं। इसलिए घरों में ऐसा माहौल बनाना जरूरी है, जहां लोग खुलकर अपनी बात कह सकें।
एआई और चैटबॉट की सीमाएं
ज़ैलेश्या जी बताती हैं कि एआई भले ही एक दिलचस्प जगह लगे जो आपको अपनी बात रखने देती है, लेकिन इसमें उस तरह से संवाद करने की क्षमता नहीं होती, जिस तरह से एक इंसान कर सकता है। थेरेपिस्ट की आवाज में उतार-चढ़ाव और गैर-मौखिक संचार ठीक होने की प्रक्रिया में बेहद महत्वपूर्ण होते हैं।
मानसिक विशेषज्ञ क्यों हैं जरूरी?
मनोवैज्ञानिक श्रुति रवींद्रन, जिन्होंने 2020 में 'द हैप्पी स्पेस' की स्थापना की थी, बताती हैं कि एक थेरेपिस्ट अपने असली व्यक्तित्व के साथ आपके सामने आता है। वह क्लाइंट के दर्द को महसूस करता है। आंखें मिलाना और यह महसूस कराना कि हम उनकी बात समझते हैं, उनकी ठीक होने की यात्रा में मदद करता है। कोई भी योग्य थेरेपिस्ट केवल परीक्षणों के आधार पर निष्कर्ष नहीं निकालता। यह क्लाइंट के साथ मिलकर ठीक होने और विकास की एक यात्रा है।
कहां से पाएं सही जानकारी?
विशेषज्ञों का कहना है कि विश्वसनीय जानकारी के लिए हमेशा प्रमाणित स्रोतों पर भरोसा करना चाहिए। इनमें शामिल हैं:
- स्वास्थ्य सेवा निदेशालय (Directorate of Health Services) जैसे सरकारी संस्थान
- इंडियन साइकिएट्रिक सोसाइटी (Indian Psychiatric Society)
- मायो क्लिनिक (Mayo Clinic)
- अमेरिकन साइकिएट्रिक एसोसिएशन (American Psychiatric Association)
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा स्वीकृत संगठन
मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के लिए 'दिशा' (Disha) नामक 24 घंटे की टेली-हेल्पलाइन भी उपलब्ध है, जिसका टोल-फ्री नंबर 1056 या 0471 – 2552056 है।