बेंगलुरु की झुग्गियों में बच्चों को नहीं मिल रहा भरपेट पोषण

बेंगलुरु की झुग्गियों में बच्चों को नहीं मिल रहा पर्याप्त पोषण।

Published · By Bhanu · Category: Health & Science
बेंगलुरु की झुग्गियों में बच्चों को नहीं मिल रहा भरपेट पोषण
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बेंगलुरु में किए गए एक नए अध्ययन में सामने आया है कि शहरी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले 2 से 5 साल के बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पा रहा है। इन बच्चों में 'मध्यम बाल खाद्य गरीबी' (moderate child food poverty) देखी गई है, जबकि सरकार कई पोषण कार्यक्रम चला रही है। अध्ययन के मुताबिक, इन बच्चों को ऊर्जा और प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा नहीं मिल रही है।

क्या कहती है रिपोर्ट?

'क्यूरियस' नामक एक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि शुरुआती बचपन में अपर्याप्त आहार बच्चों के पूर्ण शारीरिक विकास में बाधा डाल सकता है। अध्ययन में यह भी पता चला है कि इन बच्चों में खानपान की खराब आदतें और पोषण की मध्यम कमी बड़े पैमाने पर मौजूद है।

अध्ययन के मुख्य बिंदु

कुल 110 बच्चों पर किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि:

  • केवल 30 बच्चों (27.27%) को पर्याप्त ऊर्जा मिल रही थी।
  • सिर्फ 18 बच्चों (16.36%) को पर्याप्त प्रोटीन मिल रहा था।
  • लगभग 71 बच्चों (64.54%) में 'मध्यम बाल खाद्य गरीबी' पाई गई।
  • अध्ययन में यह भी सामने आया कि अस्वस्थ स्नैक्स खाने की आदतें और खराब खानपान के तरीके बच्चों में आम थे।
  • अध्ययन के अनुसार, 8.69% से भी कम बच्चे ऊर्जा और प्रोटीन दोनों की आवश्यकताओं को पूरा कर पा रहे थे।

किन बच्चों पर है ज़्यादा खतरा?

अध्ययन के मुताबिक, ऐसे बच्चे जो गरीब परिवारों से आते हैं, एकल परिवारों में रहते हैं और जिनकी माताएं कम पढ़ी-लिखी हैं, उनमें पोषण की कमी का खतरा अधिक होता है। बीमारी के दौरान खाने-पीने पर लगने वाली पाबंदियां भी बच्चों के पोषण को और खराब कर देती हैं।

अध्ययन किसने और कैसे किया?

यह अध्ययन बेंगलुरु मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की रोज़ ट्रीसा मैथ्यू और ज्योति जाधव ने किया है। इसके लिए बेंगलुरु के शहरी अभ्यास क्षेत्र में 10 आंगनवाड़ी केंद्रों से 110 बच्चों को चुना गया था। अक्टूबर 2024 से दिसंबर 2024 तक एक प्रश्नावली और 24 घंटे की आहार संबंधी जानकारी के आधार पर डेटा इकट्ठा किया गया। कुपोषण का आकलन WHO ग्रोथ चार्ट का उपयोग करके किया गया, जबकि 'बाल खाद्य गरीबी' को यूनिसेफ और WHO के आहार विविधता स्कोर से मापा गया।

अध्ययन की ज़रूरत क्यों पड़ी?

डॉ. मैथ्यू ने बताया कि यह अध्ययन इसलिए ज़रूरी था क्योंकि भारत में पूर्व-स्कूली बच्चों में कुपोषण और खाद्य गरीबी अभी भी उच्च स्तर पर है, भले ही सरकार लंबे समय से पोषण कार्यक्रम चला रही हो। उन्होंने कहा कि शहरी झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के आहार की गुणवत्ता और उससे जुड़े जोखिम कारकों पर अपडेटेड डेटा की कमी थी, जिसे यह अध्ययन पूरा करता है।

केवल बेंगलुरु की नहीं, पूरे भारत की समस्या

शोधकर्ताओं ने बताया कि यह समस्या केवल बेंगलुरु तक सीमित नहीं है। पूरे भारत और दुनिया के अन्य कम आय वाले क्षेत्रों में भी बच्चों के आहार में कमी और 'बाल खाद्य गरीबी' के ऐसे ही पैटर्न देखे जा रहे हैं।

नीति निर्माताओं के लिए सुझाव

अध्ययन में नीति निर्माताओं के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं:

  • केवल कैलोरी ही नहीं, प्रोटीन से भरपूर और विविध खाद्य पदार्थों तक बच्चों की सस्ती पहुंच सुनिश्चित करें।
  • आंगनवाड़ी और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का उपयोग माताओं को पोषण शिक्षा और सहायता प्रदान करने के लिए करें।
  • हानिकारक खानपान की आदतों को कम करें और अत्यधिक प्रसंस्कृत (अल्ट्रा-प्रोसेस्ड) स्नैक्स पर निर्भरता घटाएं।
  • अत्यधिक प्रसंस्कृत और जंक फूड पर टैक्स लगाने पर विचार करें ताकि उनकी खपत कम हो सके।
  • पैकेज्ड फूड पर चित्रमय चेतावनी या लेबल लगाएं, जैसे शाकाहारी/मांसाहारी प्रतीक होते हैं, ताकि माता-पिता आसानी से 'जंक' फूड को पहचान सकें और स्वस्थ विकल्प चुन सकें।
  • सब्सिडी, स्कूल/आंगनवाड़ी भोजन और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के माध्यम से खाद्य गरीबी के सामाजिक-आर्थिक मूल कारणों को दूर करें।

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