तबलीगी जमात केस: दिल्ली हाई कोर्ट ने 70 सदस्यों को किया बरी

दिल्ली हाई कोर्ट ने तबलीगी जमात के 70 सदस्यों को बरी किया।

Published · By Bhanu · Category: Health & Science
तबलीगी जमात केस: दिल्ली हाई कोर्ट ने 70 सदस्यों को किया बरी
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दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में तबलीगी जमात के उन 70 सदस्यों को बरी कर दिया है, जिन पर मार्च 2020 में कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करते हुए विदेशियों को पनाह देने का आरोप था। यह फैसला जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने 'मोहम्मद अनवर बनाम दिल्ली सरकार' मामले में सुनाया है।

क्या था मामला?

मार्च 2020 में निजामुद्दीन मरकज (तबलीगी जमात का मुख्यालय) में एक धार्मिक आयोजन ('जोड़' या 'जमावड़ा') हुआ था। आरोप था कि इस आयोजन में शामिल हुए लोगों ने, खासकर विदेशी नागरिकों ने, कोरोना लॉकडाउन प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया। इस मामले को लेकर मीडिया और राजनीतिक गलियारों में तबलीगी जमात की काफी आलोचना हुई थी। इस जमावड़े में इंडोनेशिया, मलेशिया, कुवैत, घाना और श्रीलंका जैसे देशों के लोग शामिल थे।

कोर्ट ने क्यों दी क्लीन चिट?

दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कई अहम बातें कहीं, जिनके आधार पर इन सदस्यों को बरी किया गया:

  • महामारी से पहले की योजना: कोर्ट ने कहा कि निजामुद्दीन में हुआ 'जोड़' विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा COVID-19 को वैश्विक महामारी घोषित करने से पहले ही तय हो गया था।
  • लॉकडाउन से पहले समापन: यह आयोजन 12 मार्च, 2020 को शुरू हुआ और 15 मार्च को समाप्त हो गया था। दिल्ली सरकार ने 50 से अधिक लोगों के धार्मिक जमावड़े पर पाबंदी 16 मार्च को लगाई थी।
  • शुरुआत में खतरे की कम आशंका: 13 मार्च, 2020 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने खुद कहा था कि भारत में कोरोना वायरस कोई राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल नहीं है, क्योंकि उस समय देश में केवल 81 मामले थे।
  • फंसे हुए थे सदस्य: देशव्यापी लॉकडाउन 24 मार्च की आधी रात को लगा। तब तक ज़्यादातर भारतीय प्रतिभागी अपने घरों को लौट चुके थे, लेकिन विदेशी नागरिक अपनी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के दोबारा शुरू होने का इंतज़ार कर रहे थे और मरकज में ही रुके हुए थे।
  • बाहर जाना भी होता उल्लंघन: कोर्ट ने कहा कि ये लोग पहले से ही मरकज में मौजूद थे। लॉकडाउन लगने के बाद उनके लिए बाहर निकलना संभव नहीं था, क्योंकि इससे लॉकडाउन का उल्लंघन होता और बीमारी फैलने का खतरा भी होता।
  • नियमों की जानकारी का अभाव: कोर्ट ने यह भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 144 (जो बड़े जमावड़े पर रोक लगाती है) की अधिसूचना न तो राजपत्र में प्रकाशित हुई थी और न ही ठीक से लोगों तक पहुंचाई गई थी। इसलिए, तबलीगी जमात के सदस्यों को इसकी जानकारी नहीं हो सकती थी।
  • बीमारी फैलाने का कोई सबूत नहीं: चार्जशीट में ऐसा कोई सबूत नहीं था कि आरोपियों को कोरोना था या उन्होंने जानबूझकर लॉकडाउन में बाहर निकलकर सरकारी आदेशों का उल्लंघन किया।

FIRs और कानूनी कार्यवाही

देशव्यापी लॉकडाउन लागू होने के तुरंत बाद, दिल्ली पुलिस ने तबलीगी जमात के सैकड़ों भारतीय और विदेशी प्रतिभागियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। उन पर लॉकडाउन और लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाने वाले आदेशों का उल्लंघन करने का आरोप था। इन लोगों पर भारतीय दंड संहिता (IPC), महामारी रोग अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। एफआईआर में भारतीय नागरिकों पर मस्जिदों या घरों में विदेशियों को पनाह देने का आरोप लगाया गया था। इन एफआईआर को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसने घटना के पांच साल बाद उन्हें खारिज कर दिया।

पहले भी हुए बरी

यह पहली बार नहीं है जब तबलीगी जमात के सदस्यों को बरी किया गया है। इससे पहले, अगस्त 2020 में दक्षिण-पूर्वी जिला अदालत साकेत ने 8 विदेशी प्रतिभागियों को बरी किया था। इसके बाद, दिसंबर 2020 में 36 और विदेशी प्रतिभागियों को भी बरी कर दिया गया था।

मीडिया की भूमिका और दुष्प्रचार

उस समय मीडिया के एक बड़े हिस्से ने तबलीगी जमात के सदस्यों पर देश में कोरोना बीमारी फैलाने का मुख्य कारण होने का आरोप लगाया था। "कोरोना जिहाद", "इस्लामिक बगावत" और "कोरोना आतंकवाद" जैसे शब्दों का खुलेआम इस्तेमाल किया गया। कई नकली वीडियो भी साझा किए गए, जिनमें तबलीगी सदस्यों पर बीमारी फैलाने के लिए भोजन पर थूकने का आरोप लगाया गया था। दिल्ली सरकार भी अपनी दैनिक मेडिकल रिपोर्ट में तबलीगी जमात के कोरोना मामलों के लिए एक अलग कॉलम रखती थी।

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