कृष्णागिरि: सरकारी दखल से बची गंभीर एनीमिया से जूझ रही गर्भवती महिला की जान

सरकारी दखल से बची गंभीर एनीमिया से जूझ रही गर्भवती महिला की जान।

Published · By Tarun · Category: Health & Science
कृष्णागिरि: सरकारी दखल से बची गंभीर एनीमिया से जूझ रही गर्भवती महिला की जान
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मुख्य बिंदु

तमिलनाडु के कृष्णागिरि जिले में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने एक गंभीर रूप से एनिमिक (खून की कमी से जूझ रही) गर्भवती महिला की जान बचाने के लिए जबरन हस्तक्षेप किया। महिला और उसका परिवार सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से लगातार बच रहा था। यह महिला अपनी 10वीं गर्भावस्था में थी। हालांकि बच्चे को बचाया नहीं जा सका, लेकिन डॉक्टरों की तत्परता से महिला की जान बच गई।

क्या था पूरा मामला?

यह घटना कृष्णागिरि के कडामाकुट्टई पहाड़ी गांव की है। मल्ली नाम की यह महिला अपनी 10वीं गर्भावस्था में थी। उसके पहले से ही सात बच्चे थे और दो बार गर्भपात भी हो चुका था। उसकी हालत इतनी गंभीर थी कि शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर गिरकर सिर्फ 3 ग्राम प्रति डेसीलिटर (g/dL) रह गया था, जो जीवन के लिए बेहद खतरनाक स्तर माना जाता है। मल्ली और उसका परिवार लगातार स्वास्थ्य विभाग द्वारा गांव में लगाए जाने वाले मासिक शिविरों से बच रहा था। ये शिविर कडामाकुट्टई के दूरदराज के इलाकों में हर शुक्रवार को लगते थे, जहां वाहनों का पहुंचना भी मुश्किल था।

कैसे सामने आया मामला?

डेनकनिकोट्टई के ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर, डॉ. राजेश कुमार को मई में एक शिविर के दौरान मल्ली के बारे में पहली बार पता चला। उन्होंने गांव की बुजुर्ग महिलाओं से बातचीत के दौरान अच्छे संबंध बनाए, और उनमें से एक महिला ने उन्हें बताया कि मल्ली का परिवार हर बार मेडिकल कैंप लगने पर 'गायब' हो जाता था। डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि, "इसलिए, 18 जुलाई को हमने मल्ली के घर पर अचानक दौरा किया। परिवार के सदस्यों ने हमें गाली-गलौज की और किसी भी तरह की मेडिकल मदद लेने से साफ इनकार कर दिया।"

परिवार का विरोध और सरकारी हस्तक्षेप

डॉ. राजेश कुमार के अनुसार, जब मल्ली को किसी तरह शिविर में लाया गया, तो वह गर्भावस्था के आठवें महीने में थी। जांच में उसका हीमोग्लोबिन मात्र 3 g/dL पाया गया। उसके चेहरे पर सूजन (फेशियल एडिमा) भी थी, जो गर्भावस्था के कारण होने वाले उच्च रक्तचाप का संकेत था। रक्त की अत्यधिक कमी और उच्च रक्तचाप को देखते हुए, डॉ. राजेश कुमार को लगा कि अगर मल्ली को तुरंत अस्पताल नहीं ले जाया गया, तो वह मुश्किल से 20 दिन भी जीवित रह पाएगी। चूंकि परिवार स्थिति की गंभीरता को समझने को तैयार नहीं था, डॉ. राजेश कुमार ने तुरंत कलेक्टर सी. दिनेश कुमार और स्वास्थ्य के उप निदेशक डॉ. रमेश कुमार को इसकी जानकारी दी। इसके बाद तहसीलदार भी ऑनलाइन आए और महिला को अस्पताल ले जाने के लिए राजस्व और पुलिस बल की आवश्यकता के बारे में पूछा।

अस्पताल पहुंचाने की चुनौती

अगले दिन, जब टीम दोबारा मल्ली के घर पहुंची, तो परिवार कहीं छिप गया। मल्ली की सबसे बड़ी बेटी खुद तीन बच्चों की मां थी। मेडिकल टीम ने पूरे इलाके में खोजबीन की और आखिरकार मल्ली और उसके पति को ढूंढ निकाला। मल्ली को डर था कि अगर वह अस्पताल जाएगी, तो उसके बच्चों की देखभाल कौन करेगा। काफी समझाने-बुझाने के बाद, मल्ली को एक जीप से धर्मपुरी सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया। मेडिकल स्टाफ को उसकी अच्छी देखभाल करने और उसकी निगरानी के लिए 24 घंटे एक आशा कार्यकर्ता और एक वीएचएन (विलेज हेल्थ नर्स) तैनात करने का निर्देश दिया गया। ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर ने परिवार को आश्वासन के तौर पर कुछ नकद राशि भी दी। इसी दौरान, मल्ली की सबसे बड़ी बेटी के बेटे को भी दौरे पड़ने लगे, और उसे बाल चिकित्सा वार्ड में भर्ती करना पड़ा।

दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम और आगे की योजना

सोमवार शाम को, जैसा कि पहले ही आशंका थी, मल्ली के गर्भ में ही बच्चे की मौत हो गई। डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि अगर मल्ली घर पर ही रहती, तो शायद वह खुद भी जीवित नहीं बच पाती। शनिवार से मल्ली को लगातार खून चढ़ाया जा रहा है। फिलहाल, स्वास्थ्य विभाग मल्ली के लिए गर्भनिरोधक उपायों पर विचार कर रहा है ताकि भविष्य में ऐसी जानलेवा स्थिति से बचा जा सके।

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