ICMR अध्ययन: बेहतर पोषण से टीबी के मामले कम होते हैं; WHO ने भी माना

बेहतर पोषण से टीबी के मामले और मौतें कम होती हैं, ICMR अध्ययन।

Published · By Tarun · Category: Health & Science
ICMR अध्ययन: बेहतर पोषण से टीबी के मामले कम होते हैं; WHO ने भी माना
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एक महत्वपूर्ण शोध में सामने आया है कि बेहतर पोषण से टीबी (तपेदिक) के मामलों और इससे होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) द्वारा वित्त पोषित इस अध्ययन के निष्कर्षों को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी मान्यता दी है और इन्हें टीबी नियंत्रण के लिए अपने नए वैश्विक दिशानिर्देशों में शामिल किया है।

मुख्य निष्कर्ष क्या है?

यह अध्ययन इस बात पर केंद्रित था कि पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने से वयस्कों में सूक्ष्मजीव-पुष्टि वाले फेफड़ों के टीबी के मरीजों के घर के संपर्क में रहने वाले लोगों में टीबी होने की दर पर क्या असर पड़ता है। शोध में पाया गया कि जिन्हें बेहतर पोषण मिला, उनमें टीबी होने का खतरा काफी कम हो गया।

कहां और कैसे हुआ यह अध्ययन?

यह अध्ययन झारखंड के चार जिलों में नेशनल ट्यूबरकुलोसिस एलिमिनेशन प्रोग्राम की 28 इकाइयों में किया गया। इसमें लैब में पुष्टि हुए फेफड़ों के टीबी वाले 2,800 मरीजों और उनके घर के सदस्यों को शामिल किया गया। यह एक फील्ड-आधारित, ओपन-लेबल, क्लस्टर-रैंडमाइज्ड नियंत्रित परीक्षण था।

टीबी और कुपोषण का गहरा संबंध

अध्ययन में बताया गया है कि भारत में टीबी और कुपोषण का गहरा संबंध है। यानी, जहां टीबी का बोझ ज्यादा होता है, वहीं मरीजों और आम आबादी में कुपोषण भी बड़े पैमाने पर पाया जाता है। इस स्थिति को "सिंडैमिक" कहा जाता है, जहां दो या दो से अधिक बीमारियाँ एक साथ मिलकर समस्या को और बढ़ा देती हैं। यह शोध 'द लांसेट' नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

डब्ल्यूएचओ ने दी मान्यता

ICMR ने 7 अगस्त को X (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट में बताया कि WHO ने इस शोध को मान्यता दी है और टीबी नियंत्रण पर अपने अद्यतन वैश्विक दिशानिर्देशों में इसके निष्कर्षों को शामिल किया है। यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।

पोषण सहायता कैसे दी गई?

अध्ययन के दौरान, दोनों समूहों के सूक्ष्मजीव-पुष्टि वाले फेफड़ों के टीबी मरीजों को छह महीने तक राशन दिया गया। हालांकि, केवल हस्तक्षेप समूह (intervention group) के घर के सदस्यों को मासिक राशन और सूक्ष्म पोषक तत्व (micronutrients) दिए गए। बेसलाइन पर सभी घर के सदस्यों की टीबी की जांच की गई, और फिर 31 जुलाई, 2022 तक उनमें टीबी के नए मामलों का पता लगाने के लिए उनका लगातार फॉलो-अप किया गया।

अध्ययन के आंकड़े

यह अध्ययन 16 अगस्त, 2019, से 31 जनवरी, 2021, के बीच किया गया। इसमें कुल 10,345 घर के सदस्य शामिल थे। हस्तक्षेप समूह के 5,621 घर के सदस्यों में से 5,328 (94.8 प्रतिशत) ने प्राथमिक परिणाम मूल्यांकन पूरा किया, जबकि नियंत्रण समूह के 4,724 घर के सदस्यों में से 4,283 (90.7 प्रतिशत) ने यह मूल्यांकन पूरा किया।

जनजातीय समुदाय और कुपोषण

अध्ययन में शामिल लगभग दो-तिहाई आबादी संथाल, हो, मुंडा, उरांव और भूमिज जैसे स्वदेशी समुदायों से संबंधित थी। इनमें से 34 प्रतिशत लोग कुपोषण का शिकार थे।

निष्कर्ष और भविष्य की राह

शोधकर्ताओं ने कहा, "हमारे ज्ञान के अनुसार, यह पहला रैंडमाइज्ड परीक्षण है जो घर के सदस्यों में टीबी की घटनाओं पर पोषण सहायता के प्रभाव को देखता है।" उन्होंने बताया कि पोषण संबंधी हस्तक्षेप से दो साल के फॉलो-अप के दौरान घर में टीबी की घटनाओं में काफी कमी आई। इस "जैविक-सामाजिक हस्तक्षेप" से उन देशों या समुदायों में टीबी की घटनाओं में तेजी से कमी लाई जा सकती है, जहां टीबी और कुपोषण दोनों एक साथ उच्च स्तर पर मौजूद हैं।

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