जलवायु परिवर्तन से बच्चों में बढ़ सकता है दस्त का खतरा, लाखों जिंदगियां दांव पर: नई स्टडी

जलवायु परिवर्तन से बच्चों में दस्त का खतरा बढ़ा: नई स्टडी।

Published · By Bhanu · Category: Health & Science
जलवायु परिवर्तन से बच्चों में बढ़ सकता है दस्त का खतरा, लाखों जिंदगियां दांव पर: नई स्टडी
Bhanu
Bhanu

bhanu@chugal.com

एक नई रिसर्च ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) के कारण दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया, जिसमें भारत भी शामिल है, में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में दस्त (डायरिया) का खतरा बढ़ सकता है। दस्त बच्चों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है और इस नए अध्ययन के अनुसार, यह लाखों बच्चों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है।

क्या कहती है नई रिसर्च?

ऑस्ट्रेलिया के फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। उन्होंने बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका और इंडोनेशिया जैसे आठ एशियाई देशों के तीन मिलियन (30 लाख) से अधिक बच्चों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। अध्ययन में पाया गया कि भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में दस्त की व्यापकता लगभग 8 प्रतिशत है। दस्त की पहचान सामान्य से अधिक बार पतला और पानी जैसा मल आने से होती है। डिहाइड्रेशन (शरीर में पानी की कमी), कुपोषण और कमजोर इम्यूनिटी इसके मुख्य जोखिम कारक माने जाते हैं।

यह शोध 'एनवायर्नमेंटल रिसर्च' नामक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें दो मुख्य जलवायु-संबंधी कारकों पर प्रकाश डाला गया है जो बच्चों में दस्त के उच्च जोखिम को बढ़ाते हैं: पहला, तापमान में अत्यधिक बदलाव, और दूसरा, साल के सबसे नम महीने में कम बारिश।

मौसम से जुड़ा खतरा

अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार, 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान की व्यापक वार्षिक सीमा बच्चों में दस्त की संभावना में लगभग 39 प्रतिशत की वृद्धि से जुड़ी थी। वहीं, सबसे नम महीने में सामान्य से कम बारिश (600 मिलीमीटर से कम) होने पर दस्त का जोखिम लगभग 30 प्रतिशत बढ़ गया। यह आंकड़े सूखे जैसी स्थितियों की भूमिका को भी उजागर करते हैं।

मातृ शिक्षा और स्वच्छता का महत्व

फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी की प्रमुख शोधकर्ता सैयदा हीरा फातिमा ने बताया कि जिन माताओं ने आठ साल से कम स्कूली शिक्षा प्राप्त की है, उनके बच्चों में दस्त का खतरा 18 प्रतिशत अधिक पाया गया। फातिमा के अनुसार, "मातृ शिक्षा में निवेश सबसे शक्तिशाली और बड़े पैमाने पर लागू की जा सकने वाली जलवायु-अनुकूलन रणनीतियों में से एक है। यह न केवल बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार करती है, बल्कि भीड़भाड़ और खराब स्वच्छता जैसी बड़ी चुनौतियों का भी समाधान करती है।" उन्होंने जोर देकर कहा कि शिक्षा माताओं को अपने बच्चों के बीमार पड़ने पर जल्दी कार्य करने में सशक्त बनाती है, जिससे बच्चों की जान बचाई जा सकती है।

सह-लेखक और फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी में वैश्विक पारिस्थितिकी के प्रोफेसर कोरी ब्रैडशॉ ने बताया कि दस्त से होने वाली 88 प्रतिशत मौतें असुरक्षित पेयजल सहित अस्वच्छ परिस्थितियों से जुड़ी हैं। ब्रैडशॉ ने कहा, "पेयजल तक बेहतर पहुंच से दस्त का खतरा 52 प्रतिशत तक कम हो सकता है, जबकि बेहतर स्वच्छता सुविधाओं से जोखिम 24 प्रतिशत तक कम हो सकता है।" उन्होंने यह भी बताया कि गरीबी बच्चों में दस्त के जोखिम को बढ़ाती है, क्योंकि यह उन्हें उचित पोषण, स्वच्छ पानी और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच से वंचित करती है, साथ ही ऐसे वातावरण को बढ़ावा देती है जहां दस्त पैदा करने वाले रोगाणु पनपते हैं।

आगे क्या चेतावनी?

इस अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव से एशिया में बच्चों में दस्त की समस्या और इससे जुड़े स्वास्थ्य प्रभावों में वृद्धि होगी। शोधकर्ताओं ने यह भी लिखा है कि जिन घरों में सदस्यों की संख्या छह से अधिक होती है, वहां बच्चों में दस्त की संभावना लगभग 9 प्रतिशत बढ़ जाती है। यह रिसर्च इस बात पर ज़ोर देती है कि बच्चों के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए जलवायु परिवर्तन, स्वच्छता और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर तत्काल और सामूहिक ध्यान देना ज़रूरी है।

Related News