आंध्र प्रदेश: इस 'खूबसूरत' गांव में पसरा 'खामोश कातिल', हर घर में गुर्दे की बीमारी का खौफ!

आंध्र प्रदेश के भद्रायापेट गांव में गुर्दे की बीमारी का कहर।

Published · By Tarun · Category: Health & Science
आंध्र प्रदेश: इस 'खूबसूरत' गांव में पसरा 'खामोश कातिल', हर घर में गुर्दे की बीमारी का खौफ!
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आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित भद्रायापेट गांव इन दिनों एक गंभीर स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है। इस 'स्वर्ग' जैसे दिखने वाले गांव में 'खामोश कातिल' की तरह गुर्दे की पुरानी बीमारियां (Chronic Kidney Disorders) फैल गई हैं। आलम यह है कि गांव के लगभग हर घर में कम से कम एक सदस्य गुर्दे से जुड़ी किसी न किसी बीमारी से पीड़ित है। जहां ग्रामीण इस समस्या के लिए गांव के एकमात्र सार्वजनिक नल से आने वाले पानी को दोषी ठहरा रहे हैं, वहीं अधिकारी सफाई की कमी और गलत इलाज को इसकी वजह बता रहे हैं।

क्या है पूरा मामला?

विशाखापत्तनम से सिर्फ 54 किलोमीटर दूर, पद्मनाभम मंडल में स्थित भद्रायापेट गांव हरे-भरे पहाड़ों और फैले हुए बागानों के साथ पहली नजर में किसी स्वर्ग जैसा लगता है। लेकिन इस सुंदरता के बीच एक अदृश्य खतरा मंडरा रहा है। गांव के करीब 80 घरों में से अधिकांश में गुर्दे की बीमारी ने दस्तक दे दी है, और यह बीमारी धीरे-धीरे अपना जाल फैला रही है।

दर्दनाक कहानियां

56 वर्षीय के. अप्पलनारसा, जो पेशे से मजदूर हैं और अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले हैं, अब खुद भी गुर्दे की बीमारी से ग्रस्त हो गए हैं। उनकी 45 वर्षीय पत्नी पहले से ही इस बीमारी से जूझ रही हैं। अप्पलनारसा को हाल ही में पीठ में दर्द, पैरों में सूजन और अत्यधिक थकान महसूस होने लगी। जांच कराने पर पता चला कि उनके गुर्दे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। डॉक्टरों ने उन्हें भारी शारीरिक काम से बचने की सलाह दी है, जो उनके लिए लगभग असंभव है। अप्पलनारसा सवाल करते हैं, "मेरा बेटा 12 किलोमीटर दूर पढ़ने जाता है, उसके आने-जाने में ही रोज 100 रुपये खर्च होते हैं। अगर मैं काम करना बंद कर दूं, तो उसे कैसे पढ़ा पाऊंगा?"

इसी गांव के 79 वर्षीय डी. सिंहाचलम और उनकी पत्नी पोलाम्मा भी इस बीमारी से पीड़ित हैं। पोलाम्मा बताती हैं कि गुर्दे की बीमारी दशकों से उनके गांव को परेशान कर रही है। "हर साल कोई न कोई इसकी वजह से मर जाता है। लेकिन कोई नहीं जानता कि ऐसा क्यों हो रहा है," वह कहती हैं। एक हालिया मीडिया रिपोर्ट के बाद ही उनकी समस्या सामने आई, जिसके बाद जिला प्रशासन ने स्वास्थ्य शिविर लगाए और सफाई में सुधार किया।

60 वर्षीय ए. अप्पलसूरी की कहानी और भी हृदय विदारक है। उन्होंने पिछले कुछ सालों में गुर्दे की बीमारी से अपने परिवार के चार सदस्यों को खो दिया। अब वह अपने दिवंगत भाई और भाभी के तीन बच्चों की देखभाल कर रहे हैं। वह मायूस होकर पूछते हैं, "अगर मुझे कुछ हो गया तो इन बच्चों का क्या होगा?" जून में अपनी भाभी की मौत के बाद से उनकी रात की नींद उड़ी हुई है। उनके भतीजे ए. प्रसाद का कहना है कि गांव के लोग मानते हैं कि पीने का पानी दूषित है और यह धीरे-धीरे सभी को बीमार कर रहा है।

पानी पर आरोप और अधिकारियों की राय

गांव के अधिकांश लोग, जिनमें पोलाम्मा भी शामिल हैं, पीने के पानी पर शक करते हैं। पोलाम्मा बताती हैं कि गांव के बीच में स्थित सामुदायिक नल के आसपास पहले बहुत गंदगी रहती थी। मीडिया रिपोर्ट के बाद कुछ सफाई की गई, लेकिन मुख्य नल के आसपास अभी भी कचरा फेंका जाता है, जिससे कुत्ते और मच्छर पनपते हैं। वह बताती हैं कि पानी पहली नजर में तो ठीक लगता है, लेकिन थोड़ी देर रखने पर उस पर तैलीय परत जम जाती है। ग्रामीण इसे पीने या खाना बनाने में इस्तेमाल नहीं करना चाहते, लेकिन उनके पास कोई और विकल्प नहीं है क्योंकि गांव के अधिकतर हैंडपंप खराब पड़े हैं।

वहीं, आंगनवाड़ी शिक्षिका के. सोमुलम्मा और अन्य महिलाएं पानी के दूषित होने के डर से दूर के एक हैंडपंप से पानी लाती हैं और उसे उबालकर बच्चों को देती हैं। कुछ ग्रामीण पास की ग्रेनाइट खदानों को भी प्रदूषण का कारण मानते हैं। हालांकि, रेविडी पंचायत सचिव नूर जहां का कहना है कि गांव में हमेशा से सफाई की समस्या रही है। वह बताती हैं, "जागरूकता अभियानों के बावजूद लोग अभी भी खुले में कचरा फेंकते हैं। इसके अलावा, कई लोग उचित चिकित्सा उपचार से बचते हैं और पारंपरिक तरीकों पर निर्भर करते हैं, जिससे उनकी हालत और बिगड़ जाती है।"

बुनियादी सुविधाओं का अभाव

भद्रायापेट गांव में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। यहां न तो नल कनेक्शन हैं, न सीवर व्यवस्था, न अच्छी सड़कें और न ही कोई बस सेवा। निकटतम बस स्टॉप और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) रेड्डीपल्ली में 5-6 किलोमीटर दूर हैं। गांव में केवल एक छोटा प्राथमिक विद्यालय है, जिसमें सिर्फ दो कमरे हैं, जिनमें से एक जर्जर हालत में है। गांव के अधिकांश लोग दिहाड़ी मजदूरी करके गुजर-बसर करते हैं, लेकिन बीमारियों ने उनके जीवन को और भी कठिन बना दिया है।

स्वास्थ्य विभाग की तत्परता

मीडिया रिपोर्ट सामने आने के बाद जिला प्रशासन ने सक्रियता दिखाई। हाल ही में गांव में एक चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें 250 से अधिक निवासियों के गुर्दे की जांच (Renal Function Test) की गई। शिविर में जांच करने वाली डॉक्टर दिव्या के अनुसार, लगभग 55 मरीजों में गुर्दे की बीमारी पाई गई और उन्हें आगे के इलाज के लिए किंग जॉर्ज अस्पताल (KGH) रेफर किया गया।

चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह

जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (DMHO) पी. जगदीश्वरा राव का कहना है कि गांव में आपूर्ति किए जा रहे पीने के पानी के नमूने लिए गए हैं और उनमें अभी तक कोई दूषित पदार्थ नहीं मिला है। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग गांव की बारीकी से निगरानी कर रहा है और गुर्दे की बीमारी से ग्रस्त लोगों को विशेष देखभाल दी जाएगी। विभाग अगले दो से तीन महीने तक समय-समय पर जांच करेगा।

हालांकि, किंग जॉर्ज अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग ने गांव में आरओ प्लांट लगाने का सुझाव दिया है। विभाग ने यह भी बताया कि स्वास्थ्य शिविर से रेफर किए गए कुछ मरीजों ने अक्सर दर्द निवारक दवाओं का सेवन किया था। कुछ लोग उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) और मधुमेह जैसी बीमारियों का इलाज भी नहीं करा रहे थे, जिससे उनकी स्थिति बिगड़ सकती है। अधिकारियों ने स्वच्छता, जीवनशैली में बदलाव और खान-पान की आदतों के बारे में जागरूकता फैलाने का भी निर्णय लिया है।

सरकार का आश्वासन

भीमुनिपटनम के विधायक गंटा श्रीनिवास राव ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया है कि सरकार इस मामले की जांच करेगी। उन्होंने वादा किया है, "हम इस मुद्दे को मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू के सामने उठाएंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि गांव में बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जाएं।" कुछ ग्रामीणों ने प्रभावित लोगों के लिए विशेष पेंशन की भी मांग की है, क्योंकि बुजुर्गों को मिलने वाली अधिकांश पेंशन दवाओं पर खर्च हो जाती है।

भविष्य की राह

किंग जॉर्ज अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग ने गांव में गुर्दे की बीमारियों (CKD) के मामलों की नैदानिक और प्रयोगशाला रिपोर्ट के आधार पर लगातार जांच करने की सिफारिश की है। उन्होंने लोगों को मधुमेह और उच्च रक्तचाप की नियमित जांच के महत्व और CKD के जोखिम वाले लोगों में सीरम क्रिएटिनिन के स्तर के मूल्यांकन के बारे में शिक्षित करने का भी सुझाव दिया है। डॉक्टरों का कहना है कि लोगों को दवाओं, विशेषकर दर्द निवारक दवाओं के अंधाधुंध उपयोग के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। अस्पताल ने सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करने और उपभोग से पहले पानी शुद्धिकरण के महत्व पर जोर देने की भी बात कही है।

डॉक्टरों ने पानी के स्रोतों और घरों से पानी के नमूनों की रासायनिक और सूक्ष्मजीवविज्ञानी संदूषण के लिए समय-समय पर जांच करने की भी सिफारिश की है। विभाग ने हृदय रोगों और CKD के चेतावनी संकेतों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता फैलाने का भी आग्रह किया है। उन्होंने CKD से ग्रस्त लोगों को कम प्रोटीन और कम नमक वाले आहार की भी सलाह दी है।

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