विशाखापत्तनम में अनूठी 'वृक्षबंधन' परंपरा: पेड़ों को बांधी जा रही राखी
विशाखापत्तनम में 'वृक्षबंधन' परंपरा: पेड़ों को बांधी जा रही राखी।


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परिचय
विशाखापत्तनम में हर साल रक्षाबंधन (राखी पूर्णिमा) के अवसर पर एक खास परंपरा निभाई जाती है, जिसे 'वृक्षबंधन' कहा जाता है। इस अनोखी पहल में शहर के लोग सार्वजनिक पार्कों और सड़कों के किनारे लगे पेड़ों को राखी बांधते हैं। यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि पेड़ों के प्रति सम्मान और उनके संरक्षण के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताने का एक तरीका है। इन पेड़ों ने शहर के विकास को देखा है, और यह परंपरा उन्हीं के प्रति आभार व्यक्त करती है।
किसने की यह पहल?
यह 'वृक्षबंधन' परंपरा विशाखापत्तनम स्थित पर्यावरण संगठन 'ग्रीन क्लाइमेट' ने शुरू की थी। इस पहल की शुरुआत संगठन के संस्थापक-सचिव जे.वी. रत्नम ने की थी। रत्नम का कहना है कि यह विचार केवल एक रस्म नहीं था, बल्कि इसका उद्देश्य लोगों और पेड़ों के बीच एक रिश्ता कायम करना था। उनका मानना है कि जब यह रिश्ता बन जाता है, तो पेड़ों के प्रति जिम्मेदारी की भावना अपने आप पैदा हो जाती है।
एक सफल मिसाल
इस परंपरा का सबसे बड़ा उदाहरण कुछ साल पहले देखने को मिला था। डोनडपार्थी में रेलवे स्टेशन रोड पर एक सौ साल पुराने बरगद के पेड़ पर कटने का खतरा मंडरा रहा था। 'ग्रीन क्लाइमेट' संगठन ने 'वृक्षबंधन' पहल के तहत लोगों का ध्यान इस ओर खींचा और पेड़ को जीवित विरासत का प्रतीक बताते हुए जागरूकता फैलाई। इस प्रयास से वे पेड़ को कटने से रोकने में सफल रहे।
इस साल क्या होगा?
इस साल भी यह संगठन अपनी परंपरा को जारी रखेगा और शहर के 30 पेड़ों को राखी बांधेगा। जिन जगहों पर ये राखी बांधी जाएंगी, उनमें सेंट्रल पार्क, इंदिरा गांधी जूलॉजिकल पार्क और शहर के अन्य इलाके शामिल हैं, जहां बड़े और पुराने पेड़ अभी भी मौजूद हैं। रत्नम के अनुसार, ये पेड़ सिर्फ कार्बन सोखने या छाया देने के स्रोत नहीं हैं। वे कहते हैं, "ये पेड़ स्थानीय पहचान हैं, जो समुदायों की सामूहिक चेतना में गहरे बसे हुए हैं।" इनमें से कई पेड़ पक्षियों, गिलहरियों और छोटे स्तनधारियों के लिए जरूरी आश्रय स्थल भी हैं, जो शहरी जैव विविधता का एक शांत लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं।
बीज राखी कार्यशाला
रक्षाबंधन के त्योहार से पहले, 'ग्रीन क्लाइमेट' ने एमवीपी कॉलोनी स्थित एसवीवीपी डिग्री कॉलेज में 'बीज राखी' बनाने की कार्यशाला भी आयोजित की थी। इस कार्यशाला में छात्रों को स्वदेशी औषधीय और हर्बल पौधों के बीजों से परिचित कराया गया। इन बीजों का उपयोग करके ऐसी राखियां बनाई गईं, जिनका दोहरा उद्देश्य है - दोस्ती का बंधन और नए पौधों को उगाने का संकल्प।