प्रसिद्ध प्राइमेट विशेषज्ञ और पर्यावरण संरक्षक जेन गुडॉल का 91 वर्ष की आयु में निधन
जेन गुडॉल, चिंपैंजी विशेषज्ञ और पर्यावरण संरक्षक, का निधन।


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दुनिया भर में चिंपैंजियों और पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी पहचान बनाने वाली जानी-मानी वैज्ञानिक और कार्यकर्ता जेन गुडॉल का बुधवार, 1 अक्टूबर 2025 को 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके द्वारा स्थापित जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए इस दुखद खबर की पुष्टि की। संस्थान ने बताया कि डॉ. गुडॉल का निधन प्राकृतिक कारणों से हुआ।
कौन थीं जेन गुडॉल?
जेन गुडॉल एक ऐसी दूरदर्शी महिला थीं जिन्होंने अपने बचपन के जानवरों के प्रति प्रेम को जीवन भर पर्यावरण की रक्षा के अभियान में बदल दिया। उन्होंने प्राइमेट्स (वनमानुष) के व्यवहार का अध्ययन करके विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला दी और दुनिया को यह समझने में मदद की कि इंसान और जानवरों के बीच की सीमा उतनी स्पष्ट नहीं है जितनी हम समझते हैं।
चिंपैंजियों पर अभूतपूर्व शोध
1960 के दशक में, डॉ. गुडॉल ने तंजानिया के गोम्बे स्ट्रीम रिसर्च सेंटर में चिंपैंजियों पर अपने अभूतपूर्व शोध की शुरुआत की। उन्होंने पारंपरिक वैज्ञानिक मानदंडों को तोड़ते हुए चिंपैंजियों को नंबर की बजाय नाम दिए, उनकी अलग-अलग शख्सियतों, पारिवारिक संबंधों और भावनाओं का बारीकी से अध्ययन किया। उन्होंने यह भी पाया कि इंसानों की तरह चिंपैंजी भी औजारों का इस्तेमाल करते हैं। उनकी इस खोज ने वैज्ञानिक समुदाय में हलचल मचा दी थी।
महिला वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा
डॉ. गुडॉल न केवल अपने क्षेत्र की एक अग्रणी वैज्ञानिक थीं, बल्कि 1960 के दशक में एक महिला वैज्ञानिक के तौर पर उन्होंने कई बाधाएं तोड़ीं। उन्होंने डायन फॉसी जैसी अन्य महिलाओं के लिए भी इस क्षेत्र में आने का मार्ग प्रशस्त किया, जो बाद में गोरिल्ला पर अपने काम के लिए प्रसिद्ध हुईं। उन्होंने नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी के साथ मिलकर अपनी प्यारी चिंपैंजियों को फिल्म, टीवी और पत्रिकाओं के माध्यम से आम लोगों के जीवन में पहुंचाया।
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण की आवाज़
अपने करियर के दौरान, डॉ. गुडॉल ने देखा कि जानवरों के आवास कैसे तेजी से नष्ट हो रहे हैं। इसके बाद उन्होंने अपना ध्यान प्राइमेटोलॉजी से हटाकर जलवायु वकालत और पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित कर दिया। उन्होंने दुनिया से जलवायु परिवर्तन पर तत्काल और गंभीर कार्रवाई करने का आग्रह किया। 2020 में सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "हम भूल रहे हैं कि हम प्राकृतिक दुनिया का हिस्सा हैं। अभी भी समय है।"
संस्थान की स्थापना और वैश्विक पहचान
1977 में, उन्होंने जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट की स्थापना की, जिसका उद्देश्य गोम्बे में शोध के साथ-साथ पूरे अफ्रीका में संरक्षण और विकास के प्रयासों का समर्थन करना था। यह संस्थान बाद में दुनिया भर में पर्यावरण शिक्षा, स्वास्थ्य और वकालत के क्षेत्रों में काम करने लगा। उन्होंने बच्चों के लिए 'रूट्स एंड शूट्स' नामक एक संरक्षण कार्यक्रम भी शुरू किया। अपने शोध से निकलकर, वह सालाना औसतन 300 दिन दुनिया भर में यात्रा करती थीं और सामुदायिक व स्कूली समूहों से बात करती थीं। 90 साल की उम्र तक उन्होंने अपनी ये विश्व यात्राएं जारी रखीं।
शुरुआती जीवन और अफ्रीका का सफर
जेन गुडॉल का जन्म 1934 में लंदन में हुआ था और उनका बचपन इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर बॉर्नमाउथ में बीता। उनके पिता ने उन्हें एक भरवां खिलौना गोरिल्ला दिया था, जिसने जानवरों के प्रति उनके प्रेम को और बढ़ा दिया। वह 'टार्ज़न' और 'डॉ. डूलिटिल' जैसी किताबें पढ़कर जंगली जानवरों के बीच रहने का सपना देखती थीं। विश्वविद्यालय की पढ़ाई का खर्च न उठा पाने के कारण उन्होंने स्कूल छोड़ने के बाद एक सचिव और फिर एक फिल्म कंपनी में काम किया। लेकिन एक दोस्त के केन्या आने के निमंत्रण ने उन्हें अपने सपनों के करीब ला दिया। जहाज से यात्रा के लिए पैसे बचाने के बाद, डॉ. गुडॉल 1957 में पूर्वी अफ्रीकी देश पहुंचीं। वहां, उनकी मुलाकात प्रसिद्ध मानवविज्ञानी और जीवाश्म विज्ञानी डॉ. लुई लीके और उनकी पत्नी, पुरातत्वविद् मैरी लीके से हुई, जिन्होंने उन्हें प्राइमेट्स पर काम करने का रास्ता दिखाया।
पुरस्कार और सम्मान
डॉ. गुडॉल को उनके असाधारण योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 2003 में उन्हें 'डेम ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर' नियुक्त किया गया और 2025 में उन्हें अमेरिका के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक 'प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम' से नवाजा गया।
विरासत और उम्मीद का संदेश
एक विपुल लेखिका के रूप में, उन्होंने अपने अवलोकनों पर 30 से अधिक किताबें प्रकाशित कीं, जिनमें उनकी 1999 की बेस्टसेलर 'रीज़न फॉर होप: ए स्पिरिचुअल जर्नी' और बच्चों के लिए दर्जन भर किताबें शामिल हैं। डॉ. गुडॉल ने कभी भी पृथ्वी के लचीलेपन या पर्यावरणीय चुनौतियों से उबरने की मानवीय क्षमता पर संदेह नहीं किया। 2002 में उन्होंने कहा था, "हां, उम्मीद है... यह हमारे हाथों में है, यह आपके और मेरे हाथों में है और हमारे बच्चों के हाथों में है। यह वास्तव में हम पर निर्भर करता है।" उन्होंने लोगों से "कम से कम पारिस्थितिक पदचिह्न छोड़ने" का आग्रह किया।
निजी जीवन
उनके निजी जीवन की बात करें तो, उनका ह्यूगो वैन लॉविक से एक बेटा था, जिसका नाम 'ग्रब' था। ह्यूगो वैन लॉविक से उनका 1974 में तलाक हो गया और उनका निधन 2002 में हुआ। 1975 में उन्होंने डेरेक ब्रायसन से शादी की, जिनका 1980 में निधन हो गया।