चीन की 70% नदियों में कम हुआ पानी का बहाव, भारत के लिए भी खतरे की घंटी
चीन की 70% नदियों में पानी का बहाव कम हुआ, भारत के लिए भी चिंता।


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क्या हुआ?
चीन में हुई एक नई और अब तक की सबसे विस्तृत रिसर्च में यह सामने आया है कि देश के कम से कम 70% जल-मापन केंद्रों पर नदियों का प्रवाह कम हो गया है। यानी, चीन की अधिकांश बड़ी नदियों में पानी का बहाव घट गया है। इस गिरावट के पीछे कई प्राकृतिक और मानवीय कारण जिम्मेदार हैं।
मुख्य कारण क्या हैं?
अध्ययन के मुताबिक, नदियों के जल प्रवाह में कमी का सबसे बड़ा कारण भूमि उपयोग और वनस्पति आवरण (LUCC) में बदलाव है। इसके बाद, जलवायु परिवर्तन (CCV) के कारण आने वाले उतार-चढ़ाव और पानी की अत्यधिक निकासी, दिशा बदलना तथा उसके नियमन (WADR) जैसे कारक शामिल हैं।
कहां और किसने किया अध्ययन?
यह विस्तृत विश्लेषण चीन के इंस्टिट्यूट ऑफ ज्योग्राफिक साइंसेज एंड नेचुरल रिसोर्सेज रिसर्च, चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज, बीजिंग के वैज्ञानिकों ने किया है। उन्होंने चीन की लगभग 1,500 नदियों की मुख्यधाराओं और सहायक नदियों पर स्थित सभी 1,046 जल-मापन केंद्रों के 1956 से 2016 तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया। यह अध्ययन 6 अगस्त को 'साइंस एडवांसेज' पत्रिका में प्रकाशित हुआ। ये केंद्र देश की बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए पानी के प्रवाह पर निगरानी रखते हैं।
अध्ययन के मुख्य बिंदु
शोधकर्ताओं ने जल प्रवाह को प्रभावित करने वाले कारकों को तीन मुख्य श्रेणियों में बांटा: जलवायु परिवर्तन जनित बदलाव (CCV), भूमि उपयोग और वनस्पति आवरण में बदलाव (LUCC), और पानी की निकासी, दिशा बदलना व नियमन (WADR)। उन्होंने पाया कि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता दोनों का जल प्रवाह पर लगभग समान प्रभाव पड़ा, हालांकि प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता का योगदान थोड़ा अधिक था।
घटते और बढ़ते रुझान
वैज्ञानिकों ने 1986 को तुलना का आधार वर्ष मानकर 1,046 केंद्रों पर पानी के प्रवाह में हुए बदलावों की गणना की। इनमें से लगभग 750 केंद्रों पर पानी का बहाव घटने का रुझान दिखा, जबकि बाकी बचे केंद्रों पर यह बढ़ता हुआ पाया गया। जिन 756 केंद्रों पर बहाव में कमी आई, उनमें से 53% पर जलवायु परिवर्तन जनित बदलावों ने इस कमी को और बढ़ाया, जबकि 47% (358 केंद्र) पर इसने कमी को कुछ हद तक कम किया। दूसरी ओर, जिन 290 केंद्रों पर प्रवाह बढ़ा था, उनमें से 92% पर जलवायु परिवर्तन ने इस बढ़ोतरी को बढ़ाया, जिससे पता चलता है कि जब औसत प्रवाह बढ़ रहा होता है तो जलवायु परिवर्तन उसे और बढ़ाने की क्षमता रखता है।
भविष्य के लिए चेतावनी
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि मापे गए 70% से अधिक केंद्रों पर पानी के प्रवाह में गिरावट से पारिस्थितिकी तंत्र, पर्यावरण, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और कृषि के लिए खतरा पैदा हो सकता है। उत्तरी चीन के शुष्क क्षेत्रों में, यदि यह गिरावट जारी रहती है, तो भविष्य में गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि चीन की भविष्य की जल सुरक्षा इस बात पर निर्भर करेगी कि आने वाले दशकों में मानवजनित जलवायु परिवर्तन कितना बढ़ता है।
कहां देखी गई ज्यादा कमी?
पानी के बहाव में कमी मुख्य रूप से मध्य और उत्तरी चीन में देखी गई है। 593 केंद्रों पर 40% तक की कमी दर्ज की गई, जबकि 163 केंद्रों पर 40% से अधिक की कमी आई। 433 केंद्रों पर तो प्रवाह में महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई, जिनमें से 273 में 40% तक की कमी और 160 में 40% से अधिक की कमी शामिल है। हालांकि, यांग्त्ज़ी नदी के निचले इलाकों में पानी के प्रवाह में वृद्धि भी दर्ज की गई है।
भारत के लिए भी सबक
यह विश्लेषण भले ही चीन पर केंद्रित था, लेकिन इसके निष्कर्ष भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों की जलीय स्थिति को भी दर्शाते हैं। भारत में भी नदियों के प्रवाह पैटर्न में उतार-चढ़ाव की खबरें आती रही हैं। केंद्रीय जल आयोग (CWC) के पास सभी प्रमुख नदी घाटियों में 901 जल-मौसम विज्ञान केंद्र हैं, जो ऐसे डेटा की निगरानी करते हैं।
भारत में पानी की स्थिति
मार्च में जल संसाधन मंत्रालय ने बताया था कि पिछले 20 वर्षों के प्रमुख नदियों के वार्षिक औसत प्रवाह डेटा में पानी की उपलब्धता में कोई खास कमी नहीं दिखी है। हालांकि, मंत्रालय ने यह भी जोड़ा कि बढ़ती आबादी, शहरीकरण और लोगों के बेहतर जीवन-स्तर के कारण देश में प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता लगातार घट रही है।