असम: मंदिर में पाले गए 104 नन्हे कछुए गैंडों के घर में छोड़े गए
असम में 104 दुर्लभ कछुए मंदिर से निकालकर वन्यजीव अभयारण्य में छोड़े गए।


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असम में कछुओं के संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। शनिवार, 27 सितंबर 2025 को, तीन दुर्लभ प्रजातियों के कुल 104 नन्हे कछुओं को एक मंदिर के तालाब से निकालकर लगभग 85 किलोमीटर दूर गैंडों के प्राकृतिक आवास में छोड़ दिया गया। सरीसृप विशेषज्ञों ने इस पहल को असम के कछुआ संरक्षण प्रयासों में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है।
कहाँ से आए ये कछुए?
ये कछुए गुवाहाटी से लगभग 30 किलोमीटर पश्चिम में स्थित हाजो के एक मंदिर के तालाब में पाले गए थे। 1583 में बना यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार हयग्रीव माधव को समर्पित है, जिनके 10 अवतारों में से एक कछुआ भी है। मंदिर के इस तालाब में 14 अलग-अलग प्रजातियों के कछुए रहते हैं।
कौन सी प्रजातियां हैं?
जिन तीन प्रजातियों के कछुओं को छोड़ा गया, वे हैं: ब्लैक सॉफ्टशेल टर्टल (निलसोनिया नाइग्रिकंस), इंडियन टेंट टर्टल (पंगशूरा टेंटोरिया) और गैंजेज सॉफ्टशेल टर्टल (निलसोनिया गैन्गेटिका)। इनमें से ब्लैक सॉफ्टशेल टर्टल भारत में पाई जाने वाली 28 कछुआ प्रजातियों में सबसे दुर्लभ है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने इसे कभी जंगल में विलुप्त घोषित कर दिया था, और अब यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में है।
कहाँ छोड़ा गया?
इन 104 नन्हे कछुओं को गुवाहाटी से लगभग 55 किलोमीटर पूर्व में स्थित पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य के हाडुग बील में छोड़ा गया है। इस अभयारण्य को इसके समान परिदृश्य और गैंडों की बड़ी आबादी के कारण 'मिनी काजीरंगा' भी कहा जाता है।
असम के लिए क्यों अहम है यह कदम?
गुवाहाटी स्थित जैव विविधता संरक्षण समूह 'हेल्प अर्थ' के जयदित्य पुरकायस्थ ने बताया कि असम भारत में कछुओं की सबसे विविध प्रजातियों वाला राज्य है, यहाँ 21 दर्ज प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से कई विलुप्त होने के कगार पर हैं। उन्होंने कहा कि मंदिर के तालाब, विशेषकर हयग्रीव माधव मंदिर का तालाब, इनके अस्तित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संरक्षण की प्रक्रिया
वन्यजीव अधिकारियों के अनुसार, इन नन्हे कछुओं को मंदिर में एक पुरानी संरक्षण प्रथा के तहत पाला गया था। जंगल में छोड़े जाने से पहले, उन्हें असम राज्य चिड़ियाघर में पशु चिकित्सकों की देखरेख में क्वारंटाइन भी किया गया। यह तरीका ब्लैक सॉफ्टशेल कछुए के बचाव के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ है।
मंदिर का विशेष सहयोग
सरीसृप वैज्ञानिकों का कहना है कि मंदिर के तालाब पर आधारित प्राकृतिक आवास में पुनर्वास की ऐसी पहल, जिनकी शुरुआत हयग्रीव माधव मंदिर समिति और असम राज्य चिड़ियाघर ने की थी, यह दर्शाती हैं कि आस्था पर आधारित परंपराओं, सामुदायिक भागीदारी और वैज्ञानिक प्रबंधन को मिलाकर कितनी बड़ी सफलता मिल सकती है।
हाडुग बील: कछुओं का नया घर
हाडुग बील को कछुओं को छोड़ने के लिए चुना गया है क्योंकि यह एक बारहमासी आर्द्रभूमि (वेटलैंड) है। बाढ़ के दौरान यह ब्रह्मपुत्र नदी से जुड़ जाता है, जिससे कछुओं, मछलियों और अन्य जलीय जीवों के लिए एक आदर्श और स्थायी आवास उपलब्ध होता है। हाल के वर्षों में बढ़ी हुई सुरक्षा के कारण, हाडुग बील अब जलीय जैव विविधता के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन गया है।