पाम तेल संकट: पुराने पेड़ और बुजुर्ग किसान बिगाड़ रहे निर्यात का खेल

पाम तेल की वैश्विक आपूर्ति पर संकट, पुराने पेड़ और किसान समस्या।

Published · By Bhanu · Category: Environment & Climate
पाम तेल संकट: पुराने पेड़ और बुजुर्ग किसान बिगाड़ रहे निर्यात का खेल
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विश्व में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले खाद्य तेल, पाम तेल की वैश्विक आपूर्ति पर एक बड़ा संकट मंडरा रहा है। दशकों तक लगातार बढ़ती रही पाम तेल की पैदावार अब धीमी होने वाली है, जिससे इसकी कीमतों में भारी उछाल आ सकता है। दुनिया के सबसे बड़े पाम तेल उत्पादक देश इंडोनेशिया और मलेशिया से होने वाले निर्यात में तेजी से गिरावट आने की आशंका है।

किसान की परेशानी: मलेशियाई किसान की कहानी

मलेशिया के रहने वाले 85 वर्षीय किसान सूरतमेन मॉसमैन एक बड़ी दुविधा में हैं, जो अगले पांच सालों में दुनिया भर में पाम तेल की आपूर्ति को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। कुआलालंपुर से 300 किलोमीटर दक्षिण में स्थित उनके बागान में लगे ताड़ के पेड़ अब पुराने हो चुके हैं और पहले जितना फल नहीं दे रहे। लेकिन सूरतमेन उन्हें बदलने से हिचकिचा रहे हैं, क्योंकि नए पेड़ों को फसल देने में तीन से पांच साल लग जाते हैं और इस दौरान उन्हें कोई कमाई नहीं होगी। परिवार चलाने के लिए उन्हें लगातार आय की जरूरत है। पहले के मुकाबले सरकारी सब्सिडी भी अब कम हो गई है, जिससे नए पेड़ लगाना मुश्किल हो रहा है।

पाम तेल का महत्व: हर घर की जरूरत

पाम तेल का इस्तेमाल केवल खाना पकाने के लिए ही नहीं, बल्कि केक, सौंदर्य प्रसाधन (कॉस्मेटिक्स) और साफ-सफाई के उत्पादों में भी बड़े पैमाने पर होता है। यह दुनिया की आधी से ज्यादा वनस्पति तेल आपूर्ति का हिस्सा है। कुल कच्चे पाम तेल का 85% उत्पादन अकेले मलेशिया और इंडोनेशिया से होता है।

उत्पादन में गिरावट और वैश्विक बाजार पर असर

दशकों तक रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन के बाद अब पाम तेल का बाजार एक अहम मोड़ पर आ गया है। इंडोनेशिया और मलेशिया से कुल निर्यात में तेजी से कमी आने वाली है। इसकी मुख्य वजह उत्पादन का थमना और इंडोनेशिया द्वारा अधिक पाम तेल को बायोडीजल उत्पादन में इस्तेमाल करने का फैसला है। वित्तीय बाजारों ने इस संभावित गिरावट को पहले ही भांप लिया है, लेकिन अब यह साफ होता जा रहा है कि सूरतमेन जैसे छोटे किसानों के बागानों की हालत पहले के अनुमान से भी कहीं ज्यादा खराब है। पुराने और कम उपज देने वाले पेड़ों को बदला नहीं जा रहा, जिससे उत्पादन में और गिरावट आएगी। मलेशिया और इंडोनेशिया में कुल बागानों का 40% हिस्सा छोटे किसानों के पास है, इसलिए वे आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

आगे क्या होगा: विशेषज्ञों की चेतावनी

सरकारी और उद्योग के अनुमानों के आधार पर की गई गणनाओं (जिनमें कुछ अप्रकाशित आंकड़े भी शामिल हैं) के मुताबिक, अगले पांच सालों में इंडोनेशिया और मलेशिया से वैश्विक बाजारों में पाम तेल की आपूर्ति में 20% तक की कमी आ सकती है। उद्योग के दिग्गज विशेषज्ञ डोरब मिस्त्री और एम.आर. चंद्रन का कहना है कि छोटे किसानों के पास लगे पेड़ों की हालत और नए पेड़ों को लगाने की दर कुआलालंपुर और जकार्ता की सरकारों के अनुमानों से भी बदतर है। इससे भविष्य में छोटे किसानों के उत्पादन का अनुमान शायद गलत साबित हो सकता है।

सरकारी आंकड़े और जमीनी हकीकत में अंतर

कुछ अन्य अप्रकाशित आंकड़े भी बताते हैं कि 20 साल से अधिक पुराने बागानों का रकबा तेजी से बढ़ रहा है। 20 साल के बाद पेड़ों को अपनी अधिकतम उपज देने की क्षमता से परे माना जाता है। गोदरेज इंटरनेशनल के निदेशक और 40 से अधिक वर्षों से पाम तेल उद्योग का विश्लेषण कर रहे डोरब मिस्त्री और मलेशियाई पाम तेल एसोसिएशन के पूर्व प्रमुख एम.आर. चंद्रन का अनुमान है कि मलेशिया में छोटे किसानों के आधे से अधिक पेड़ों ने अपनी अधिकतम उत्पादन क्षमता पार कर ली है। यह अनुमान मलेशियाई सरकार के आंकड़ों से काफी अधिक है, जिसके अनुसार छोटे किसानों के 37% बागान अपनी चरम उपज के चरण को पार कर चुके हैं। इंडोनेशिया में भी, 2016 के 2.5 मिलियन हेक्टेयर के पुनर्रोपण (रिप्लांटेशन) लक्ष्य का अक्टूबर 2024 तक केवल 10% ही पूरा हो पाया था।

निर्यात में और कमी की आशंका

मलेशियाई और इंडोनेशियाई पाम तेल निकायों के अनुमानों पर आधारित गणना बताती है कि 2024 के स्तर से 2030 तक दोनों देशों का संयुक्त निर्यात 20% तक कम होने की संभावना है। पेड़ों को दोबारा लगाने में देरी और बायोडीजल में पाम तेल के बढ़ते स्थानीय उपयोग के कारण दुनिया के इन दो शीर्ष उत्पादक देशों से निर्यात में और गिरावट आने वाली है।

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