हिमाचल में लैंटाना कैमरा का 'कहर': लाखों हेक्टेयर जंगल चपेट में, जैव विविधता पर गहरा संकट
हिमाचल में लैंटाना कैमरा का 'कहर': लाखों हेक्टेयर जंगल चपेट में।


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क्या है मामला?
हिमाचल प्रदेश के जंगलों में 'लैंटाना कैमरा' नाम का एक विदेशी पौधा तेजी से फैल रहा है, जिससे राज्य की प्राकृतिक जैव विविधता को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। यह पौधा कभी सजावटी रूप में भारत लाया गया था, लेकिन अब यह राज्य के वन क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैल चुका है, जिससे मूल पौधों और वन्यजीवों के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।
कहां से आया लैंटाना कैमरा?
लैंटाना कैमरा मूल रूप से मध्य और दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय (Tropical and Subtropical) क्षेत्रों में पाया जाता है। इसे 18वीं शताब्दी की शुरुआत में एक खूबसूरत सजावटी पौधे के रूप में भारत लाया गया था। तब से यह पौधा पूरे देश के लगभग सभी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फैल गया है, जिसमें हिमाचल प्रदेश भी शामिल है।
हिमाचल के कितने वन क्षेत्र पर है कब्जा?
राज्य वन विभाग के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में लगभग 3,25,282 हेक्टेयर (यानी 3,252.82 वर्ग किलोमीटर) वन क्षेत्र लैंटाना कैमरा की चपेट में है। इससे पहले, 2010-11 और 2015-16 में किए गए एक सर्वेक्षण में 2,35,491.93 हेक्टेयर वन क्षेत्र में इसके गंभीर संक्रमण का पता चला था। धर्मशाळा, नाहन, हमीरपुर, चंबा, बिलासपुर, मंडी और शिमला सहित सात वन मंडलों में लैंटाना का फैलाव अलग-अलग तीव्रता का पाया गया है।
वन विभाग के प्रयास
वन विभाग ने लैंटाना को खत्म करने के लिए साल 2009-10 से अब तक 51,114.35 हेक्टेयर क्षेत्र से इसे सफलतापूर्वक हटाया है। विभाग 'कट रूट स्टॉक' विधि का इस्तेमाल कर रहा है, जिसमें पौधे को जड़ से काट दिया जाता है। यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि लैंटाना फिर से न फैले, इसके लिए हटाई गई जगह पर स्थानीय प्रजातियों के पौधे लगाए जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (Additional Principal Chief Conservator of Forests) गिरीश होसुर ने बताया कि विभाग हर साल औसतन 1,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र से लैंटाना को खत्म करने का लक्ष्य रख रहा है।
विशेषज्ञों की राय: और तेज़ कार्रवाई की ज़रूरत
हालांकि वन विभाग के प्रयासों की सराहना की जा रही है, लेकिन पारिस्थितिकीविद् (Ecologists) और विशेषज्ञों का मानना है कि इस हानिकारक खरपतवार के प्रसार को रोकने के लिए और भी तेज़ी से तथा व्यापक कार्रवाई की आवश्यकता है। प्रसिद्ध वर्गीकरण विशेषज्ञ (Taxonomist) कुलदीप डोगरा ने कहा कि लैंटाना से निपटने के लिए एक एकीकृत, बहु-विषयक और समय-बद्ध दृष्टिकोण अपनाना ज़रूरी है। उन्होंने स्थानीय लोगों, उद्योगपतियों और नागरिक समाज संगठनों जैसे सभी हितधारकों को इस प्रक्रिया में शामिल करने और इस दौरान आजीविका के अवसर पैदा करने पर जोर दिया।
डोगरा ने सुझाव दिया कि लैंटाना के बायोमास (जैविक सामग्री) का उपयोग आर्थिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, जैसे फर्नीचर और जलावन लकड़ी बनाना। इसके बायोमास से जैविक खाद और वर्मीकम्पोस्ट भी बनाया जा सकता है, जो जैविक खेती के लिए फायदेमंद होगा। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि घर के बगीचों, लैंडस्केपिंग या अन्य आर्थिक उद्देश्यों के लिए लैंटाना की खेती से सख्ती से बचना चाहिए, ताकि इसका और फैलाव रोका जा सके।
पुष्प विविधता के शोधकर्ता और हिमाचल प्रदेश के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक जी.एस. गोरिया ने कहा कि लैंटाना के फैलाव की गति को रोकना सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि यह निचले क्षेत्रों से ऊंचे क्षेत्रों की ओर फैल रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि पहले ऊंचे स्थानों पर इसे खत्म करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, ताकि संक्रमण को निचले क्षेत्रों तक ही सीमित किया जा सके, और फिर धीरे-धीरे सभी क्षेत्रों को स्थानीय प्रजातियों के साथ पुनर्स्थापित किया जाए।
जैव विविधता पर खतरा
वन विभाग के नीतिगत दस्तावेज़ बताते हैं कि यह विदेशी खरपतवार आक्रामक रूप से फैलता है और झाड़ियों का एक घना जाल बना लेता है। यह विशेष रूप से उन वन किनारों पर होता है जहां पेड़ों की घनी छाया कम होती है। लैंटाना कैमरा ऐसे रसायन (एलेलोकेमिकल्स) पैदा करता है जो अपनी छत्रछाया में अन्य पौधों की प्रजातियों के विकास को रोकते हैं। इस प्रकार, यह स्थानीय वनस्पतियों की जगह ले लेता है, जिससे जंगल में पौधों की एकरूपता बढ़ जाती है और जैव विविधता में भारी कमी आती है।