छत्तीसगढ़ में 'गायब' हुए हजारों वन अधिकार पट्टे
छत्तीसगढ़ में हजारों वन अधिकार पट्टे सरकारी रिकॉर्ड से 'गायब' हो गए हैं।


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छत्तीसगढ़ में हजारों वन अधिकार पट्टे सरकारी रिकॉर्ड से 'गायब' हो गए हैं। पिछले 17 महीनों में कम से कम तीन जिलों में ऐसा देखा गया है। राज्य सरकार के आदिवासी कल्याण विभाग के दस्तावेजों में यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। ये दस्तावेज सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत 'द हिंदू' अखबार को मिले हैं।
हालांकि, राज्य सरकार के अधिकारियों का दावा है कि पहले के आंकड़े गलत थे। उनके मुताबिक, यह 'गलत संचार और रिपोर्टिंग की गलती' का नतीजा है, जिसे अब सुधार लिया गया है।
क्या है पूरा मामला?
'द हिंदू' की RTI रिपोर्ट के अनुसार, बस्तर जिले में जनवरी 2024 तक व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) पट्टों की कुल संख्या 37,958 थी, जो मई 2025 तक घटकर 35,180 हो गई। इसका मतलब 2,700 से अधिक पट्टे कम हो गए।
इसी तरह, राजनांदगांव जिले में सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR) पट्टों की संख्या पिछले साल एक महीने के भीतर आधी होकर 40 से 20 रह गई। बीजापुर जिले में मार्च 2024 तक 299 CFRR पट्टे बांटे गए थे, जो अगले महीने तक घटकर 297 हो गए। यह कमी राज्य की जिला-वार मासिक प्रगति रिपोर्ट में देखी जा सकती है, जो RTI के तहत मांगी गई थी।
अधिकारियों का क्या है कहना?
वन अधिकार पट्टों की संख्या में इस कमी पर जवाब देते हुए, राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह अधिकारियों के बीच 'गलत संचार' के कारण हुआ है। उनके मुताबिक, ग्राम सभा, उप-विभागीय और जिला स्तर के अधिकारियों के बीच तालमेल की कमी से रिकॉर्ड में सुधार की जरूरत पड़ी। अधिकारी ने इसे 'रिपोर्टिंग की गलती' बताया है।
वन अधिकार अधिनियम क्या कहता है?
वन अधिकार अधिनियम, 2006, अनुसूचित जनजातियों और अन्य वन-निवासी समुदायों को जंगल का उपयोग करने के अधिकार देता है। इसके तहत व्यक्तियों और समुदायों को उन वन क्षेत्रों पर विभिन्न प्रकार के पट्टे मिलते हैं, जहां वे रहते हैं, आजीविका कमाते हैं या वन उत्पाद इकट्ठा करते हैं। ये पट्टे ग्राम सभाओं, उप-विभागीय स्तरीय समितियों और जिला स्तरीय समितियों द्वारा आवेदन स्वीकृत होने के बाद वितरित किए जाते हैं।
कानून के अनुसार, एक बार पट्टे मिल जाने के बाद, उन्हें न तो किसी और को दिया जा सकता है और न ही वापस लिया जा सकता है, केवल विरासत में दिया जा सकता है। कानून में कुछ खास मामलों में, जैसे सामुदायिक सुविधाओं या सरकारी परियोजनाओं के लिए, संबंधित ग्राम सभाओं की सहमति से वन भूमि का उपयोग बदला जा सकता है।
विशेषज्ञों की क्या राय है?
वन अधिकार अधिनियम (FRA) के शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने इन पट्टों की संख्या में कमी को 'विसंगति' (असामान्य बात) बताया है, क्योंकि वन अधिकार अधिनियम के तहत दिए गए पट्टों को वापस लेने की कोई प्रक्रिया नहीं है। हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता आलोक शुक्ला ने बताया कि 2016 में भी राज्य सरकार ने कुछ पट्टे 'रद्द' किए थे, जिस पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का फैसला आना अभी बाकी है।
आंकड़ों पर एक नज़र
RTI के जवाब में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, मई 2025 तक, राज्य के 30 जिलों में कुल 4.82 लाख व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) पट्टे और 4,396 सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR) पट्टे बांटे गए थे। राज्य के अधिकारियों ने बताया कि यह कानून रायपुर, दुर्ग और बेमेतरा जिलों में लागू नहीं है। केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, FRA के तहत पट्टे दिए गए कुल वन क्षेत्र का 43% से अधिक छत्तीसगढ़ में है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पिछले एक साल में नक्सलवाद-मुक्त घोषित किए गए तीन जिलों में FRA का क्रियान्वयन धीमा रहा है। बस्तर में IFR पट्टों की संख्या में 2,700 से अधिक की कमी देखी गई, हालांकि CFRR पट्टों में 12 की बढ़ोतरी हुई। दंतेवाड़ा में CFRR पट्टों में कोई वृद्धि नहीं हुई, जबकि IFR पट्टों में 55 की शुद्ध वृद्धि हुई। मोहला-मानपुर जिले में कोई नया IFR पट्टा नहीं बांटा गया, जबकि दो CFRR पट्टे जोड़े गए।
कबीरधाम, राजनांदगांव, गरियाबंद, बालोद और बलरामपुर जैसे जिले, जो 2019 तक वामपंथी उग्रवाद (LWE) से सबसे ज्यादा प्रभावित थे, वहां भी FRA का काम धीमा रहा। जनवरी 2024 से मई 2025 तक, कबीरधाम में IFR या CFRR पट्टों में कोई वृद्धि नहीं हुई। गरियाबंद जिले में केवल छह CFRR पट्टे जोड़े गए, और बलरामपुर व बालोद जिलों में कुल 18 IFR पट्टे और तीन CFRR पट्टे जोड़े गए।
पिछले 17 महीनों में सबसे अधिक पट्टे कोंडागांव में बांटे गए, जो पहले LWE प्रभावित जिला था। यहां 1,273 IFR पट्टे और पांच CFRR पट्टे जोड़े गए।
सीएम का बयान और नक्सलवाद से संबंध
दिसंबर 2024 में सत्ता में आने के तुरंत बाद, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने 'द हिंदू' को बताया था कि उनका ध्यान वन पट्टेधारकों को उनके अधिकार दिलाने पर है। राज्य के अधिकारियों ने बताया कि जहां FRA कवरेज बढ़ता है, वहां नक्सलवाद को समर्थन कम होता है।
रिकॉर्ड रखने में कमी
एक FRA विशेषज्ञ ने, जिन्होंने कई राज्य सरकारों के साथ काम किया है, पट्टों की संचयी संख्या में कमी को 'विसंगति' बताया। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां राज्य सरकार ने उन ग्राम सभाओं के लिए FRA पट्टे लागू और पंजीकृत कर दिए, जिन्होंने खुद आवेदन भी नहीं किया था।
अन्य विशेषज्ञों ने भी नोट किया है कि FRA के क्रियान्वयन के संबंध में रिकॉर्ड रखने में खराब स्थिति का एक लंबा इतिहास रहा है। केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने भी इसे स्वीकार किया है। मंत्रालय अपने 'धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान 2024' के तहत हर राज्य में 300 से अधिक FRA सेल स्थापित कर रहा है, जो सभी FRA रिकॉर्ड को व्यवस्थित और डिजिटल बनाने में मदद करेंगे।