भारत में बनेगा सौर ऊर्जा का 'सिलिकॉन वैली', इंटरनेशनल सोलर अलायंस की बड़ी पहल
भारत में बनेगा सौर ऊर्जा का 'सिलिकॉन वैली' और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर।


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इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) ने भारत में सौर ऊर्जा के लिए एक बड़ा 'ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर' स्थापित करने की योजना बनाई है। इसे सौर ऊर्जा का 'सिलिकॉन वैली' बनाने का लक्ष्य है। ISA के महानिदेशक आशीष खन्ना ने बुधवार को एक व्याख्यान में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस साल के अंत तक ISA 17 देशों में 'सेंटर ऑफ एक्सीलेंस' भी स्थापित करेगा।
क्या है यह नई पहल?
आशीष खन्ना के मुताबिक, ये 17 सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, जो 17 अलग-अलग देशों में होंगे (हालांकि उन्होंने देशों के नाम नहीं बताए), आईआईटी (IIT) जैसे विश्वविद्यालयों में परीक्षण सुविधाएँ, लैब ट्रेनिंग और एक 'स्टार्टअप इकोसिस्टम' प्रदान करेंगे। भारत में बनने वाला 'ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर' इन सभी 17 सेंटरों के लिए एक 'हब' (केंद्र) के रूप में काम करेगा। श्री खन्ना ने थिंक टैंक द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में यह बात कही। उन्होंने यह भी बताया कि ये 17 सेंटर जल्द ही 50 तक बढ़ सकते हैं, क्योंकि कई देश भारत से अपनी मानवीय क्षमता को बेहतर बनाने की उम्मीद कर रहे हैं।
इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) का परिचय
इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसे भारत और फ्रांस ने मिलकर स्थापित किया है। इसकी परिकल्पना 2015 में पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर हुए COP सम्मेलन के दौरान की गई थी। इसका मुख्यालय हरियाणा के गुरुग्राम में है और इसमें लगभग 100 देश सदस्य हैं। ISA का मुख्य लक्ष्य वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। इसका घोषित मिशन 2030 तक सौर ऊर्जा में 1 ट्रिलियन डॉलर का निवेश जुटाना और साथ ही तकनीक व वित्तपोषण की लागत को कम करना है।
भारत क्यों है महत्वपूर्ण?
आशीष खन्ना ने बताया कि कई देश सौर परियोजनाओं को लागू करने के लिए आवश्यक मानव पूंजी, जैसे इंजीनियर, डिजिटल टेंडरिंग, संचालन और रखरखाव, और सभी आवश्यक कौशल विकास के लिए भारत पर निर्भर कर रहे हैं। भारत के इंजीनियरों की वैश्विक सौर ऊर्जा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है।
आंकड़ों में भारत की सौर ऊर्जा क्षमता
आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, जुलाई 2025 तक भारत ने कुल 119 गीगावॉट (GW) सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित की है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने जुलाई में कहा था कि भारत ने अपनी कुल विद्युत उत्पादन क्षमता (लगभग 484 GW) का 50% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करने का "मील का पत्थर" हासिल कर लिया है। भारत की स्थापित गैर-जीवाश्म बिजली क्षमता का लगभग 48% सौर ऊर्जा से आता है। हालांकि, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि वास्तव में आपूर्ति की गई बिजली में स्वच्छ ऊर्जा की हिस्सेदारी 30% से कम है, जिसमें लगभग तीन-चौथाई अभी भी कोयले से आती है।
आगे की राह: 'वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड' (OSOWOG)
आने वाले समय में, भारत अपनी क्षेत्रीय इंटरकनेक्टिविटी प्रणालियों को मजबूत करने पर ध्यान देगा। इसमें 'वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड' (OSOWOG) प्रणाली भी शामिल है, जो विभिन्न देशों के ग्रिड को एक-दूसरे को बिजली की आपूर्ति करने की अनुमति देगी। श्री खन्ना ने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच 2,000 किलोमीटर लंबी समुद्र के नीचे की केबल को जोड़ना अविश्वसनीय लग सकता है, लेकिन इन दोनों देशों में सौर ऊर्जा के उपयोग के अलग-अलग पीक आवर्स होते हैं, और इसलिए वे प्रत्येक देश में उत्पादित सौर ऊर्जा का लाभदायक व्यापार कर सकते हैं।