प्लास्टिक प्रदूषण संधि वार्ता: सहमति अब भी दूर, भारत ने उत्पादन पर सीमा का किया विरोध

प्लास्टिक प्रदूषण संधि वार्ता में भारत ने उत्पादन पर सीमा का विरोध किया।

Published · By Tarun · Category: World News
प्लास्टिक प्रदूषण संधि वार्ता: सहमति अब भी दूर, भारत ने उत्पादन पर सीमा का किया विरोध
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क्या है मामला?

जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण संधि पर बातचीत चल रही है। यह बातचीत, जिसे इंटरगवर्नमेंटल नेगोशिएटिंग कमेटी (INC) 5.2 का पांचवां सत्र कहा जा रहा है, अंतिम दौर में मानी जा रही है। इसमें लगभग 180 देश प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए एक समझौते पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, बातचीत आधे रास्ते तक पहुंचने के बावजूद, देशों के बीच आम सहमति बनाने में बहुत कम प्रगति हुई है।

गतिरोध का कारण

समिति के अध्यक्ष लुइस वायास वाल्डिविसो ने 9 अगस्त, 2025 को कहा कि "हमने जो प्रगति की है, वह पर्याप्त नहीं है।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अब पहले से दिए गए विचारों को दोहराने का समय नहीं है। सहमति बनाने की प्रक्रिया को लेकर भी देशों में मतभेद हैं। कुछ देश बहुमत के विचारों को शामिल करने के लिए मतदान तंत्र चाहते हैं, जबकि अन्य, विशेष रूप से वे जो प्लास्टिक उत्पादन को सीमित करने के आदेशों को स्वीकार करने से हिचक रहे हैं, "एक देश, एक वोट" के सिद्धांत पर जोर दे रहे हैं।

समझौते का मकसद

इस बातचीत का मुख्य लक्ष्य एक कानूनी दस्तावेज तैयार करना है। यह दस्तावेज एक फ्रेमवर्क समझौता होगा, जिसके तहत देश हर साल (जलवायु सम्मेलनों की तरह) बैठक कर प्लास्टिक के सभी पहलुओं से निपटने के लिए ठोस कदम उठा सकेंगे। इसमें प्लास्टिक का उत्पादन कैसे होता है और इसके उपयोग को कम करने या खत्म करने के लक्ष्य शामिल होंगे।

मसौदे की स्थिति

वर्तमान में, इस मसौदा पाठ में 32 अनुच्छेद (आर्टिकल) हैं, और हर पंक्ति पर सभी देशों की सहमति जरूरी है। जो देश किसी भी पंक्ति से असहमत होते हैं, वे अपने विचारों को 'ब्रैकेट' में रखते हैं। 4 अगस्त को बातचीत शुरू होने पर लगभग 300 ब्रैकेट थे, लेकिन 9 अगस्त तक इनकी संख्या बढ़कर 1,500 हो गई। चर्चाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए चार 'संपर्क समूह' बनाए गए हैं, जो इन अनुच्छेदों पर काम कर रहे हैं, लेकिन अभी तक किसी भी समूह को सफलता नहीं मिली है।

भारत का स्पष्ट रुख

भारत ने प्लास्टिक-पॉलिमर उत्पादन पर सीमा लगाने वाले अनुच्छेद 6 का कड़ा विरोध किया है। भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष वीर विक्रम यादव ने कहा कि बातचीत केवल प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने तक सीमित होनी चाहिए। उनके अनुसार, प्लास्टिक-पॉलिमर उत्पादन से संबंधित अलग अनुच्छेद सदस्य देशों के "विकास के अधिकार" पर बड़े प्रभाव डालते हैं। भारत ने कुवैत और "समविचारी देशों" के गठबंधन का समर्थन किया, जिसमें सऊदी अरब, ईरान, रूस, चीन, बहरीन और क्यूबा शामिल हैं। ये देश आम तौर पर प्लास्टिक या उसके निर्माण में उपयोग होने वाले कुछ रसायनों के उत्पादन को प्रतिबंधित करने वाले उपायों का विरोध करते हैं।

अलग-अलग विचार

भारत और उसके सहयोगी देशों के विपरीत, 'उच्च महत्वाकांक्षा गठबंधन' (High Ambition Coalition) है। इसमें यूरोपीय संघ के कई सदस्य, कई अफ्रीकी देश, ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत द्वीप राष्ट्र शामिल हैं। यह समूह एक "महत्वाकांक्षी" संधि पर जोर दे रहा है, जो प्रदूषण से निपटने के लिए प्लास्टिक उत्पादन में कटौती को महत्वपूर्ण मानता है।

विशेषज्ञों की निराशा

स्वतंत्र पर्यवेक्षकों ने बातचीत की धीमी गति पर निराशा व्यक्त की है। इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) की स्वाति शेषाद्री ने कहा, "आधे रास्ते तक पहुंचने के बाद भी हमने कोई वास्तविक प्रगति नहीं की है। उत्पादन से संबंधित अनुच्छेद 6 पर अभी तक पहली रीडिंग भी नहीं हुई है।" उन्होंने चेतावनी दी कि इन महत्वपूर्ण प्रावधानों के बिना, प्लास्टिक प्रदूषण पर प्रभावी ढंग से अंकुश नहीं लगाया जा सकेगा। वहीं, ग्लोबल प्लास्टिक ट्रीटी के लिए बिजनेस कोएलिशन की प्रवक्ता टोव एंडरसन ने कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक चुनौती है और इससे प्रभावी ढंग से निपटने के लिए वैश्विक नियमन की आवश्यकता है।

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