हिंदू-मुस्लिम दोनों पर सवाल, ट्रेंड हुआ #महापापी_जो_करे_जीवहिंसा
X पर ट्रेंड कर रहा है #महापापी_जो_करे_जीवहिंसा, जानें इसके पीछे का भाव


tarun@chugal.com
X (पूर्व में Twitter) पर इन दिनों एक हैशटैग ने खासा ध्यान खींचा है – #महापापी_जो_करे_जीवहिंसा। यह ट्रेंड केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आध्यात्मिक विमर्श बन चुका है, जिसका सूत्रधार हैं संत रामपाल जी महाराज और उनके अनुयायी।
अध्यात्म से उठी आवाज़
संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी इस हैशटैग के ज़रिए एक बड़ा संदेश दे रहे हैं – जीवों की हिंसा करना महापाप है। कबीर साहेब के दोहों को आधार बनाकर वे मांसाहार, बलि और किसी भी प्रकार की जीवहत्या को आत्मिक पतन का मार्ग बता रहे हैं।
“कबीर – माँस अहारी मानई, प्रत्यक्ष राक्षस जानि।”
“कहै कबीर दोनूं मिलि, जैहैं यम के द्वार।”
ऐसे दोहे X पर लगातार शेयर हो रहे हैं। इनका उद्देश्य स्पष्ट है – यह बताना कि मांस भक्षण केवल शरीर नहीं, आत्मा को भी मैला करता है।
देवी-देवताओं के नाम पर बलि – आलोचना का केंद्र
कई पोस्ट में साफ़ तौर पर कहा गया है कि देवी-देवताओं के नाम पर दी जाने वाली बलि, जैसे दुर्गा पूजा में, उनकी करुणा का अपमान है। यह कहना एक साहसी सामाजिक टिप्पणी है, जो धार्मिक प्रथाओं को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से परखने को कहती है।
सोशल मीडिया पर रणनीति
संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी संगठित तरीके से इस संदेश को फैला रहे हैं। ग्राफिक्स, यूट्यूब लिंक और भावनात्मक शब्दावली के ज़रिए यह हैशटैग लगातार X पर ट्रेंड कर रहा है। इसे “No.1 ट्रेंड” भी बताया गया है। इससे यह साबित होता है कि आध्यात्मिकता और सोशल मीडिया का मेल, एक प्रभावशाली आंदोलन का रूप ले सकता है।
सांस्कृतिक बहस का केंद्र
यह ट्रेंड एक गहरी बहस को जन्म देता है – क्या परंपराएं बदलाव के बिना चलनी चाहिए? क्या आधुनिक भारत में मांसाहार को धर्म और नैतिकता की कसौटी पर कसने का समय आ गया है?
निष्कर्ष
#महापापी_जो_करे_जीवहिंसा कोई सामान्य ट्रेंड नहीं, बल्कि एक विचारधारा है जो कबीर साहेब की अहिंसा की सीख को 21वीं सदी में फिर से जीवित करने की कोशिश है। यह दिखाता है कि कैसे धार्मिक विश्वास, तकनीक और सामाजिक चेतना मिलकर जनचेतना को आकार दे सकते हैं।
हालांकि यह विषय संवेदनशील है और विभिन्न धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है, फिर भी यह आवश्यक है कि ऐसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा हो – ताकि हम अपने विश्वासों को अधिक मानवीय और दयालु बना सकें।