जन सुराज NDA और INDIA गठबंधन का इतना वोट काटेगा कि दोनों खत्म हो जाएंगे: प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर का दावा: जन सुराज NDA-INDIA के वोट काटेगा, खत्म करेगा.


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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले 'जन सुराज' पार्टी के मुखिया प्रशांत किशोर ने एक बड़ा दावा किया है। उनका कहना है कि उनकी पार्टी, 'जन सुराज', आगामी विधानसभा चुनावों में NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) और INDIA (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) दोनों गठबंधनों के वोट बैंक में इतनी सेंध लगाएगी कि वे पूरी तरह खत्म हो जाएंगे। प्रशांत किशोर ने एक इंटरव्यू में कई अहम मुद्दों पर अपनी राय रखी।
नीतीश कुमार से व्यक्तिगत संबंध, सरकार से लड़ाई
प्रशांत किशोर ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ अपने संबंधों पर भी बात की। उन्होंने कहा, "व्यक्तिगत तौर पर आज भी मेरे संबंध नीतीश कुमार से अच्छे हैं। मेरी लड़ाई नीतीश कुमार से व्यक्ति के तौर पर नहीं, बल्कि उस सरकार से है जिसके वे मुखिया हैं।" किशोर ने आगे कहा कि आज नीतीश कुमार कोई सरकार नहीं चला रहे हैं, बल्कि उनके आसपास के कुछ चुनिंदा लोग ही सरकार चला रहे हैं। उनके मुताबिक, 5-6 सलाहकार, जिनमें मंत्री और नौकरशाह दोनों शामिल हैं, ने सब कुछ बेच दिया है।
राजनीतिक दल बनाने का कारण
प्रशांत किशोर ने बताया कि एक राजनीतिक दल बनाने का उनका फैसला COVID-19 महामारी के दौरान आया। उन्होंने कहा, "मैं उस समय बंगाल और तमिलनाडु में चुनाव रणनीतिकार के तौर पर काम कर रहा था। मुझे लगा कि मेरे पास इतने नेटवर्क, शक्ति और संसाधन होने के बावजूद, मैं किसी की मदद नहीं कर पा रहा था।" इसी अनुभव ने उन्हें यह अहसास कराया कि बिहार में 'सुशासन' की बातें खोखली हैं, जब लगभग 50 लाख लोगों को परेशानी झेलकर पैदल ही बिहार वापस लौटना पड़ा। उन्होंने 2 मई, 2021 को, जिस दिन TMC ने बंगाल चुनाव जीता था, उसी दिन अपनी रणनीति वाली कंपनी छोड़ने की घोषणा कर दी थी। पहले उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर काम करने पर विचार किया, लेकिन बात नहीं बन पाई, जिसके बाद उन्होंने अकेले ही अपनी पार्टी बनाने का फैसला किया।
'जन सुराज' कैसे है अलग?
प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी 'जन सुराज' को अन्य दलों से अलग बताया। उन्होंने कहा कि यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद पहली पार्टी है, जहां पार्टी बनने से पहले ही एक करोड़ लोगों को एक साथ जोड़ा गया। यह अन्य पार्टियों से अलग है, जहां पहले पार्टी बनती है और फिर लोगों तक पहुंचा जाता है। उन्होंने अपनी पार्टी को महात्मा गांधी के समय की कांग्रेस जैसा बनाने का लक्ष्य बताया। उनका कहना है कि जैसे आजादी से पहले कांग्रेस एक मंच था जहां हर कोई, जो देश की आजादी के लिए कुछ करना चाहता था, जुड़ता था, उसी तरह 'जन सुराज' भी बिहार के लिए कुछ बेहतर करने की चाहत रखने वालों के लिए एक मंच है। इसमें CPI(ML), BJP, RSS, रूढ़िवादी मुस्लिम और कांग्रेस सदस्यों सहित सभी धर्मों के लोग शामिल हैं।
'वोट कटवा' होने के आरोप पर प्रतिक्रिया
जब उनसे पूछा गया कि क्या 'जन सुराज' INDIA और NDA गठबंधन के बीच केवल 'वोट कटवा' (वोट बिगाड़ने वाली) पार्टी साबित होगी, तो प्रशांत किशोर ने इस बात को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, "जब आप कहते हैं कि मैं वोट कटवा हूं, तो हां, मैं हूं, लेकिन हम दोनों तरफ से इतने वोट काटेंगे कि ये दोनों खत्म हो जाएंगे।" उन्होंने समझाया कि NDA और INDIA गठबंधन का कुल वोट शेयर 72% है, जिसका मतलब है कि 28% बिहार के लोग अभी भी ऐसे हैं जिन्होंने इन दोनों को वोट नहीं दिया है। अगर उनकी पार्टी NDA के 5%, 8% या 10% और RJD के समान या कम प्रतिशत वोट काटती है, तो यह आंकड़ा उन लोगों के साथ जुड़ जाएगा जो इन दोनों गठबंधनों के लिए वोट नहीं करते, और यह कुल 40% वोट बन जाता है।
'जंगल राज' की यादें और युवाओं की अपेक्षाएं
'जंगल राज' के आरोपों पर, जो NDA अक्सर RJD पर लगाता है, प्रशांत किशोर ने कहा कि लोगों को इसकी यादें आज भी हैं, और यही कारण है कि RJD सरकार बिहार में वापस नहीं आ सकती। उन्होंने कहा कि 2005 के बाद से लालू प्रसाद यादव की पार्टी बिहार में कभी नहीं जीती है और अगले 10-15 या 20 सालों में भी ऐसा होता नहीं दिख रहा है। हालांकि, आज की युवा पीढ़ी RJD को तो नहीं चाहती, लेकिन वे वर्तमान सरकार से भी बेहतर परिणाम चाहते हैं। युवाओं का कहना है कि सरकार सिर्फ RJD की कमियां दिखाकर वोट नहीं ले सकती, बल्कि उन्हें नौकरी, पलायन और बिहार के समग्र विकास जैसे मुद्दों पर भी काम करना होगा।
सरकारी 'फ्रीबीज़' पर राय
NDA सरकार द्वारा घोषित कल्याणकारी योजनाओं (फ्रीबीज़) पर प्रशांत किशोर ने कहा कि जब लोग बदलाव का मन बना लेते हैं तो कोई भी घोषणा काम नहीं करती। उन्होंने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के चुनावों में 'फ्रीबीज़' के कारण हुए बदलाव का हवाला देने वालों को याद दिलाया कि आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी ने इससे भी बड़े 'फ्रीबीज़' दिए थे, या राजस्थान में अशोक गहलोत ने लोगों के लिए खजाना खोल दिया था, फिर भी वे चुनाव हार गए। उन्होंने कहा कि हर सरकार चुनाव से पहले ऐसा करने की कोशिश करती है और कुछ मामलों में यह काम कर जाता है, लेकिन जीत सिर्फ 'फ्रीबीज़' की वजह से ही नहीं होती, बल्कि इसके पीछे कई जटिल कारण हो सकते हैं।