ग्रेटा थनबर्ग पर बवाल: क्या इज़राइल ने की 'किडनैपिंग'?
गाज़ा मिशन में ग्रेटा थनबर्ग की गिरफ्तारी ने मचाया तूफान


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स्वीडन की 22 वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग एक बार फिर सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार वजह पर्यावरण नहीं, बल्कि गाज़ा को लेकर चल रही भू-राजनीतिक लड़ाई है। जून 2025 में, ग्रेटा थनबर्ग 'फ्रीडम फ्लोटिला कोएलिशन' के मिशन का हिस्सा बनीं और गाज़ा की तरफ जाने वाले ब्रिटिश ध्वज वाले जहाज 'मैडलिन' पर सवार हुईं। इस मिशन का मकसद गाज़ा में मानवीय सहायता पहुंचाना था। लेकिन यह यात्रा एक डार्मिक मोड़ ले बैठी।
क्या हुआ था 'मैडलिन' पर?
1 जून को इटली के सिसिली से रवाना हुए इस जहाज को 9 जून को इज़राइली नौसेना ने अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में इंटरसेप्ट कर लिया। इज़राइल ने इसे अपनी समुद्री नाकेबंदी के उल्लंघन के रूप में देखा। 'मैडलिन' को अशदोद बंदरगाह की ओर मोड़ा गया और उसमें सवार सभी 12 लोगों को हिरासत में ले लिया गया, जिनमें फ्रांसीसी सांसद रीमा हसन और खुद ग्रेटा थनबर्ग शामिल थीं।
क्यों उठे विवाद?
ग्रेटा और फ्रीडम फ्लोटिला कोएलिशन ने वीडियो में दावा किया कि उन्हें "अंतरराष्ट्रीय जल में अगवा किया गया"। इसके उलट, इज़राइली विदेश मंत्रालय ने मिशन को एक "सेल्फी यॉट" कहा और इसे सिर्फ पब्लिसिटी स्टंट बताया। मंत्रालय ने यह भी कहा कि जहाज पर लाए गए सामान की मात्रा एक ट्रक के बराबर भी नहीं थी, जबकि इज़राइल ने हाल ही में 1,200 ट्रक गाज़ा में भेजे हैं।
सोशल मीडिया पर महायुद्ध
एक ओर ग्रेटा को 'पैलेस्टाइन की बहादुर बेटी' कहकर सराहा गया, वहीं दूसरी ओर उन्हें "प्रोपेगेंडा क्वीन" कहा गया। इज़राइल द्वारा जारी की गई एक तस्वीर, जिसमें ग्रेटा सैंडविच खा रही हैं, मीम बन गई। आलोचकों ने इसे उनकी 'किडनैपिंग' की कहानी पर सवाल उठाने के लिए इस्तेमाल किया।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
घटना ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को भी हिला दिया। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तक इस पर प्रतिक्रिया दी। इज़राइल के रक्षा मंत्री ने ग्रेटा को 'हामा्स की प्रवक्ता' कह दिया। वहीं, फ्रीडम फ्लोटिला ने दुनिया भर की सरकारों से मांग की कि वे हिरासत में लिए गए कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
कहानी का सार
यह सिर्फ एक नौका यात्रा नहीं थी। यह मिशन था दुनिया को गाज़ा में हो रही मानवीय त्रासदी दिखाने का, और इसने ग्रेटा थनबर्ग की छवि को पूरी तरह से बदल दिया। एक जलवायु कार्यकर्ता अब एक राजनीतिक प्रतीक बन चुकी हैं। जहां एक ओर लोग उन्हें साहसी कह रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आलोचकों की नजर में यह 'लोकप्रियता की भूख' है।
सच और प्रोपेगेंडा के बीच फंसी इस कहानी ने सोशल मीडिया को गरमा दिया है और 'Greta' को ट्रेंडिंग टॉपिक बना दिया है।