डीपफेक और AI सामग्री पर लगाम: केंद्र के नए IT नियमों पर विशेषज्ञ बोले - ये एक ऐतिहासिक कदम है

केंद्र के नए IT नियम डीपफेक और AI सामग्री पर लगाम लगाएंगे।

Published · By Tarun · Category: Business & Economy
डीपफेक और AI सामग्री पर लगाम: केंद्र के नए IT नियमों पर विशेषज्ञ बोले - ये एक ऐतिहासिक कदम है
Tarun
Tarun

tarun@chugal.com

क्या है नया प्रस्ताव?

सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बुधवार, 22 अक्टूबर, 2025 को नए IT नियमों का प्रस्ताव रखा है। इन नियमों का मुख्य उद्देश्य डीपफेक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से बनी सामग्री पर लेबल लगाना, उसे ट्रैक करना और डिजिटल सामग्री में प्रामाणिकता सुनिश्चित करना है। साइबर सुरक्षा और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों ने इस कदम को डिजिटल दुनिया में सच्चाई बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल बताया है।

सोशल मीडिया कंपनियों पर नई ज़िम्मेदारी

प्रस्तावित नियमों के तहत, सोशल मीडिया कंपनियों को अब अपने उपयोगकर्ताओं से यह घोषणा करवाना अनिवार्य होगा कि क्या वे कोई AI-निर्मित डीपफेक सामग्री अपलोड कर रहे हैं। यह नियम विशेष रूप से ऐसी सामग्री पर लागू होगा जिससे व्यक्तियों, संगठनों या सरकारों को संभावित रूप से नुकसान हो सकता है।

साइबर कानून विशेषज्ञ की राय

साइबर कानून, साइबर अपराध कानून, साइबर सुरक्षा कानून और AI कानून के विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के वकील पवन दुग्गल ने इस प्रस्ताव को भारत के डिजिटल कानून में "एक ऐतिहासिक छलांग" बताया है। उन्होंने कहा कि यह पहली बार है जब भारतीय साइबर कानून के मसौदे में "सिंथेटिक रूप से जनित जानकारी" को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। यह ऐसी सामग्री है जो असली होने का दिखावा करती है, जबकि उसे कंप्यूटर से बदला गया होता है। दुग्गल के अनुसार, यह बदलाव डिजिटल वास्तविकताओं के साथ कानून को जोड़ने के लिए बेहद ज़रूरी था। उन्होंने ज़ोर दिया कि AI के इस दौर में, जहाँ नकली सामग्री को असली से पहचानना मुश्किल हो रहा है, ऐसी परिभाषा बहुत मायने रखती है। ये संशोधन सिंथेटिक सामग्री पर नज़र रखने की तत्काल आवश्यकता को समझते हैं, क्योंकि इसका दुरुपयोग विश्वास को अस्थिर कर सकता है, गलत सूचना फैला सकता है और डिजिटल अखंडता को ख़त्म कर सकता है।

प्लेटफॉर्म की बढ़ेगी जवाबदेही

पवन दुग्गल ने आगे कहा कि ये बदलाव बिचौलियों (यानी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म) पर "कड़ी उचित परिश्रम" की ज़िम्मेदारी डालते हैं। जो प्लेटफॉर्म सिंथेटिक सामग्री बनाने की सुविधा देते हैं, उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर ऐसी सामग्री पर स्पष्ट रूप से लेबल लगा हो, जिसमें स्थायी मेटाडेटा या पहचानकर्ता शामिल हों। दुग्गल के मुताबिक, यह लेबलिंग – जो दृश्य या श्रव्य इंटरफ़ेस के कम से कम दस प्रतिशत हिस्से को कवर करेगी – महज़ एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि सार्वजनिक जागरूकता सुनिश्चित करने की दिशा में एक ठोस कदम है।

उद्योग जगत के विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

EY इंडिया के पार्टनर और टेक्नोलॉजी कंसल्टिंग लीडर महेश मखीजा ने कहा, "AI-जनित सामग्री पर लेबल लगाना और ऐसे पहचानकर्ता डालना जिन्हें हटाया न जा सके, उपयोगकर्ताओं को वास्तविक सामग्री और नकली सामग्री के बीच अंतर करने में मदद करेगा।" उन्होंने यह भी बताया कि ये उपाय जिम्मेदार AI को अपनाने की नींव का काम करेंगे और व्यवसायों को AI को जिम्मेदारी से नया करने और विस्तारित करने का विश्वास देंगे। मखीजा ने सुझाव दिया कि अगला कदम स्पष्ट कार्यान्वयन मानक स्थापित करना और सरकार व उद्योग के बीच सहयोगात्मक ढाँचा बनाना होना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि नियम व्यावहारिक, स्केलेबल हों और भारत की AI नेतृत्व की महत्वाकांक्षाओं का समर्थन करें।

कानूनी जवाबदेही और चुनौतियाँ

पवन दुग्गल ने मखीजा की बात का समर्थन करते हुए कहा कि, कार्यान्वयन के लिए तकनीकी विशेषज्ञता, क्रॉस-प्लेटफॉर्म मानकों, कड़े प्रवर्तन और अंतर्राष्ट्रीय तालमेल की आवश्यकता होगी। उन्होंने यह भी बताया कि एक नया जवाबदेही ढाँचा इस व्यवस्था को और मज़बूत करेगा। दुग्गल के अनुसार, "यदि कोई बिचौलिया जानते हुए भी बिना लेबल वाली सिंथेटिक सामग्री को अनुमति देता है या अनदेखा करता है, तो उसे उचित परिश्रम में विफल माना जाएगा और उसे धारा 79 की महत्वपूर्ण 'सेफ हार्बर' प्रतिरक्षा खोने का जोखिम होगा।"

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए तीन प्रमुख दायित्व

प्रस्तावित व्यवस्था के तहत, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अब तीन प्रमुख दायित्वों का पालन करना होगा:

  • उपयोगकर्ताओं को सिंथेटिक सामग्री के मूल की घोषणा करनी होगी।
  • प्लेटफॉर्म को ऐसी घोषणाओं को सत्यापित करने के लिए तकनीकी उपकरण तैनात करने होंगे।
  • सिंथेटिक सामग्री के मूल की पुष्टि होने पर पारदर्शी और प्रमुख सिंथेटिक लेबलिंग अनिवार्य होगी।

Related News