जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभावों पर बड़ी रिसर्च सवालों के घेरे में
जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभावों पर रिसर्च सवालों के घेरे में।


bhanu@chugal.com
जलवायु परिवर्तन को लेकर पिछले साल प्रकाशित एक महत्वपूर्ण रिसर्च सवालों के घेरे में आ गई है। इस रिसर्च में दावा किया गया था कि सदी के अंत तक अनियंत्रित जलवायु परिवर्तन से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 62% की भारी गिरावट आ सकती है। लेकिन, अब स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस पर सवाल उठाए हैं, जिसके बाद 'नेचर' नामक प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका इसकी समीक्षा कर रही है।
क्या था मूल शोध का दावा?
अप्रैल 2024 में 'नेचर' जर्नल में एक बड़ा अध्ययन प्रकाशित हुआ था। पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च (PIK) के जलवायु वैज्ञानिक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ और उनके सह-लेखकों ने 83 देशों के आंकड़ों का उपयोग करके यह बताया था कि तापमान और वर्षा में बदलाव आर्थिक विकास को कैसे प्रभावित करते हैं। इस रिसर्च में चेतावनी दी गई थी कि यदि उच्च उत्सर्जन जारी रहा, तो साल 2100 तक वैश्विक जीडीपी में 62% तक की कमी आ सकती है। इस अध्ययन ने दुनिया भर के वित्तीय संस्थानों और सरकारों के बीच चिंता बढ़ा दी थी। यह उस वर्ष का दूसरा सबसे ज्यादा उद्धृत (cited) जलवायु संबंधी पेपर बन गया था। विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और अमेरिकी संघीय सरकार जैसी संस्थाओं ने भी इससे मिली जानकारी का उपयोग अपनी नीतियों में किया था।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने उठाये सवाल
हालांकि, जल्द ही इस चौंकाने वाले 62% जीडीपी गिरावट के दावे पर सवाल उठने लगे। कैलिफोर्निया स्थित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन का फिर से विश्लेषण किया, जिसके नतीजे बुधवार (6 अगस्त 2025) को जारी किए गए। उनके विश्लेषण में पाया गया कि अनुमानित आर्थिक गिरावट लगभग तीन गुना कम है और यह पहले के अनुमानों के अनुरूप ही है।
उज़्बेकिस्तान से जुड़ा था मामला
स्टैनफोर्ड के शोधकर्ताओं, जिनमें वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री सोलोमन हिसियांग भी शामिल हैं, ने बताया कि जब उन्होंने मूल अध्ययन के परिणामों को दोहराने की कोशिश की, तो उन्हें उज़्बेकिस्तान से जुड़े आंकड़ों में गंभीर अनियमितताएं मिलीं। पॉट्सडैम के पेपर में उल्लिखित प्रांतीय विकास के आंकड़ों और विश्व बैंक द्वारा उसी अवधि के लिए रिपोर्ट किए गए राष्ट्रीय आंकड़ों के बीच एक स्पष्ट बेमेल था। हिसियांग ने कहा, "जब हमने उज़्बेकिस्तान को हटा दिया, तो सब कुछ बदल गया। हमें लगा कि इसे दस्तावेजित करना होगा क्योंकि इसका व्यापक रूप से नीति निर्माण में उपयोग किया गया है।"
मूल शोधकर्ताओं ने मानी गलती
2024 के मूल पेपर के लेखकों ने स्वीकार किया है कि उनके शोध में कार्यप्रणाली संबंधी खामियां थीं, जिनमें मुद्रा विनिमय से जुड़े मुद्दे भी शामिल थे। बुधवार को उन्होंने अध्ययन का एक सुधारा हुआ संस्करण अपलोड किया है, जिसकी अभी तक सहकर्मी समीक्षा (peer-review) नहीं हुई है। कोट्ज़ ने कहा, "हम 'नेचर' के अगले कदम की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं।" उन्होंने यह भी जोर दिया कि भले ही "वैज्ञानिक समुदाय के भीतर कार्यप्रणाली संबंधी मुद्दे और बहस हो सकती है," लेकिन बड़ी तस्वीर अपरिवर्तित है: जलवायु परिवर्तन के आगामी दशकों में महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव होंगे।
'नेचर' जर्नल क्या कहता है?
इस घटनाक्रम के बाद, 'नेचर' जर्नल के फिजिकल साइंस संपादक कार्ल ज़िमेलीस से पूछा गया कि क्या पॉट्सडैम के पेपर को वापस लिया जाएगा। उन्होंने सीधे तौर पर जवाब नहीं दिया, लेकिन बताया कि डेटा और कार्यप्रणाली में समस्या सामने आते ही नवंबर 2024 में पेपर में एक संपादक का नोट जोड़ा गया था। उन्होंने कहा, "हम इस प्रक्रिया के अंतिम चरण में हैं और जल्द ही अधिक जानकारी साझा करेंगे।"
वैज्ञानिक प्रक्रिया पर भरोसा बढ़ा
यह घटना जलवायु विज्ञान के लिए एक संवेदनशील समय पर आई है, खासकर ऐसे समय में जब मानव-जनित ग्रीनहाउस गैसों के प्रभावों के बारे में गलत सूचनाएं तेजी से फैल रही हैं। फिर भी, हिसियांग का मानना है कि यह प्रकरण वैज्ञानिक पद्धति की मज़बूती को दर्शाता है। उन्होंने कहा, "वैज्ञानिकों की एक टीम दूसरे वैज्ञानिकों के काम की जांच कर रही है और गलतियां ढूंढ रही है, दूसरी टीम इसे स्वीकार कर रही है, रिकॉर्ड को सही कर रही है - यह विज्ञान का सबसे अच्छा रूप है।"
विशेषज्ञों की राय
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस में पर्यावरण अर्थशास्त्र की एसोसिएट प्रोफेसर फ्रांसेस मूर, जो न तो मूल पेपर और न ही पुन: विश्लेषण में शामिल थीं, ने भी इस बात पर सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इस सुधार से नीतिगत निहितार्थों में कोई बदलाव नहीं आता है। उन्होंने कहा कि कोट्ज़ के नेतृत्व वाले अध्ययन की परवाह किए बिना, 2100 तक आर्थिक मंदी के अनुमान "बेहद बुरे" हैं, और "जलवायु को स्थिर करने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की लागत से कहीं अधिक हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में यह पहचान करना महत्वपूर्ण होगा कि जलवायु परिवर्तन किस विशिष्ट तंत्र से मध्यम और लंबी अवधि में आर्थिक उत्पादन को प्रभावित करता है, ताकि इन निष्कर्षों को बेहतर ढंग से समझा जा सके और समाज को आने वाले जलवायु व्यवधानों का जवाब देने के लिए तैयार किया जा सके।