टीसीएस में बड़े पैमाने पर छंटनी: क्या AI से भारतीय आईटी सेक्टर में 5 लाख नौकरियां खतरे में?
टीसीएस में छंटनी: AI से भारतीय IT सेक्टर में 5 लाख नौकरियां खतरे में?


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भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र की दिग्गज कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) द्वारा 12,000 से अधिक नौकरियों में कटौती को विशेषज्ञ एक बड़े बदलाव की शुरुआत मान रहे हैं। उनका कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बढ़ते इस्तेमाल से 283 अरब डॉलर के इस क्षेत्र में अगले दो से तीन सालों में करीब 5 लाख नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं।
टीसीएस का बयान और विशेषज्ञों की राय
टीसीएस ने अपनी वर्कफोर्स के 2% कर्मचारियों को निकालने की वजह 'कौशल में कमी' (स्किल मिसमैच) बताई है, न कि AI से मिली उत्पादकता में वृद्धि को। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के सबसे बड़े निजी नियोक्ता द्वारा की गई यह अब तक की सबसे बड़ी छंटनी, श्रम-गहन आईटी क्षेत्र में आने वाले बड़े बदलावों की शुरुआत है।
कितनी नौकरियां प्रभावित होंगी?
रिपोर्ट्स के अनुसार, टीसीएस में लगभग 12,200 मिडिल और सीनियर मैनेजमेंट स्तर की नौकरियां खत्म होंगी। वहीं, टेक मार्केट इंटेलिजेंस फर्म अनअर्थइंसाइट के संस्थापक गौरव वासु का कहना है कि अगले दो से तीन सालों में करीब 4 लाख से 5 लाख प्रोफेशनल्स की नौकरियां खतरे में हैं, क्योंकि उनके कौशल ग्राहकों की बढ़ती मांगों से मेल नहीं खाते। इनमें से लगभग 70% छंटनी उन कर्मचारियों को प्रभावित करेगी जिनके पास 4 से 12 साल का अनुभव है।
कौन से पद सबसे ज़्यादा खतरे में?
विशेषज्ञों के मुताबिक, जिन कर्मचारियों पर सबसे ज़्यादा खतरा है, उनमें वे 'प्योर पीपल मैनेजर' शामिल हैं जिनके पास तकनीकी ज्ञान कम है। इसके अलावा, सॉफ्टवेयर की टेस्टिंग करने वाले, बग ढूंढने वाले और ग्राहकों को सॉफ्टवेयर देने से पहले उसकी उपयोगकर्ता-मित्रता (यूजर-फ्रेंडलीनेस) सुनिश्चित करने वाले कर्मचारी भी प्रभावित हो सकते हैं। बेसिक तकनीकी सहायता प्रदान करने वाले और नेटवर्क व सर्वर को ठीक रखने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर मैनेजमेंट स्टाफ भी इस सूची में हैं।
भारतीय आईटी सेक्टर का महत्व
भारतीय आईटी क्षेत्र ने भारत में मध्यम वर्ग बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मार्च 2025 तक इस क्षेत्र में 5.67 मिलियन (56.7 लाख) लोग कार्यरत थे और यह भारत की जीडीपी में 7% से अधिक का योगदान देता है। यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करता है और कारों से लेकर घरों तक के उपभोग को बढ़ावा देता है, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। ऐतिहासिक रूप से इसने भारत के अधिकांश इंजीनियरों को नौकरी दी है, लेकिन AI के बढ़ते उपयोग और दक्षता की मांग के कारण यह स्थिति बदल सकती है।
AI की बढ़ती भूमिका और कर्मचारियों पर असर
उद्योग में AI का उपयोग बेसिक कोडिंग से लेकर मैन्युअल टेस्टिंग और ग्राहक सहायता तक हर जगह बढ़ रहा है। सिलिकॉन वैली स्थित कॉन्स्टेलेशन रिसर्च के संस्थापक रे वैंग ने कहा, "हम एक बड़े बदलाव के दौर में हैं जो श्वेतपोश नौकरियों को पूरी तरह से बदल देगा।"
इस छंटनी ने कर्मचारियों के मनोबल को भी गिरा दिया है। कोलकाता के एक 45 वर्षीय टीसीएस कर्मचारी ने बताया, "यह बहुत विनाशकारी खबर है। मेरी उम्र के लोगों के लिए नई नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है।" कंपनी की नई "बेंच पॉलिसी" (जो बिना प्रोजेक्ट के रहने के समय को सीमित करती है) और वरिष्ठ कर्मचारियों के लिए कम प्रदर्शन बोनस ने भी मध्य-करियर वाले कर्मचारियों में चिंता और हताशा पैदा की है।
उद्योग का भविष्य और चुनौती
जेफ़रीज़ के विश्लेषक अक्षत अग्रवाल के अनुसार, "लागत कम करना अब नए सौदों को जीतने का मुख्य आधार बन गया है। ग्राहक उत्पादकता लाभ मांग रहे हैं – यह चलन AI के बढ़ते उपयोग के कारण भी बढ़ रहा है। इसके लिए आईटी कंपनियों को उतने ही कर्मचारियों के साथ अधिक काम करने या कम कर्मचारियों के साथ उतना ही काम करने की आवश्यकता है।"
आईटी उद्योग निकाय नैसकॉम ने कहा कि "तकनीकी उद्योग एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, क्योंकि AI और ऑटोमेशन व्यवसायों के संचालन के मूल में आ रहे हैं।" पूर्व टेक महिंद्रा सीईओ सीपी गुरनानी ने कहा, "पिछले तकनीकी क्रांतियों में, व्यवधान संगठनात्मक स्तर पर महसूस किया गया था। AI के साथ, पहली बार, खुद को फिर से कुशल बनाने या री-स्किल करने की जिम्मेदारी व्यक्ति पर है।" यानी, बदलाव को अपनाना ही अब सबसे बड़ी चुनौती है।