परमाणु पनडुब्बी 'यूएसएस नॉटिलस' का ऐतिहासिक सफर: उत्तरी ध्रुव के नीचे से पहली यात्रा

परमाणु पनडुब्बी 'यूएसएस नॉटिलस' ने उत्तरी ध्रुव के नीचे से पहली यात्रा की।

Published · By Bhanu · Category: Technology & Innovation
परमाणु पनडुब्बी 'यूएसएस नॉटिलस' का ऐतिहासिक सफर: उत्तरी ध्रुव के नीचे से पहली यात्रा
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दुनिया की पहली परमाणु शक्ति से चलने वाली पनडुब्बी 'यूएसएस नॉटिलस' ने 3 अगस्त, 1958 को एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की। यह पनडुब्बी उत्तरी ध्रुव के भौगोलिक बिंदु के ठीक नीचे से गुजरने वाली पहली पनडुब्बी बन गई। इस ऐतिहासिक यात्रा ने समुद्री खोज और नौसेना शक्ति के नए आयाम खोल दिए।

क्या था नॉटिलस?

नॉटिलस सिर्फ एक पनडुब्बी नहीं थी, बल्कि यह समुद्री यात्रा और नौसेना युद्ध में एक क्रांतिकारी बदलाव का प्रतीक थी। यह दुनिया का पहला ऐसा जलपोत था जो परमाणु ऊर्जा से चलता था और जिसने उत्तरी ध्रुव तक पहुँचने का रिकॉर्ड बनाया।

पनडुब्बियों का शुरुआती दौर

पानी के भीतर यात्रा की अवधारणा तो सदियों पुरानी है, लेकिन पहली व्यावहारिक पनडुब्बी 17वीं सदी में बनी थी। पहले विश्व युद्ध के दौरान पनडुब्बियां नौसेना युद्ध का एक अहम हिस्सा बन गईं। हालांकि, उस समय की पनडुब्बियां अपनी बिजली के स्रोत की सीमाओं के कारण केवल 12 से 48 घंटे तक ही पानी के नीचे रह पाती थीं। उन्हें वापस सतह पर आकर डीजल जनरेटर से बैटरी चार्ज करनी पड़ती थी, जिसके लिए ईंधन और ऑक्सीजन की आवश्यकता होती थी।

परमाणु शक्ति का विचार

1939 में परमाणु के विखंडन (splitting of atom) की खबर के बाद परमाणु ऊर्जा से जहाजों को चलाने का विचार सामने आया। अमेरिकी नौसेना ने इस दिशा में काम करना शुरू किया। वैज्ञानिक रॉस गन ने यूरेनियम कोर पर आधारित एक नई ऊर्जा स्रोत का सपना देखा, जिससे पानी गर्म करके भाप इंजन चलाए जा सकें। उनके प्रयासों से यूरेनियम आइसोटोप को अलग करने के तरीकों पर काम शुरू हुआ, जिसमें भौतिक विज्ञानी फिलिप एबेल्सन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। एबेल्सन की विधि इतनी सफल रही कि मैनहट्टन प्रोजेक्ट ने भी इसका इस्तेमाल किया, जिससे हिरोशिमा पर गिराए गए पहले परमाणु बम के लिए यूरेनियम तैयार किया गया।

रिकावर ने संभाली कमान

गन की सिफारिश के बाद, मैनहट्टन परियोजना में शामिल वैज्ञानिकों से परमाणु ऊर्जा के बारे में सीखने वाले इंजीनियरों में से एक, कैप्टन हाइमन जी. रिकावर ने परमाणु पनडुब्बी बनाने का बीड़ा उठाया। रिकावर ने एक ऐसा कॉम्पैक्ट और सुरक्षित रिएक्टर बनाने का नेतृत्व किया जो पनडुब्बी के लिए उपयुक्त हो। उन्होंने 'प्रेशराइज्ड वॉटर रिएक्टर' (दबावयुक्त जल रिएक्टर) का डिज़ाइन तैयार किया, जो आज भी कई परमाणु रिएक्टरों का आधार है। इस डिज़ाइन में, उच्च दबाव में रखे गए पानी को यूरेनियम कोर के पास पंप किया जाता है, जिससे वह उबलने के बजाय गर्म होता है। यह गर्म पानी फिर भाप जनरेटर में प्रवेश करता है, जहां यह दूसरे लूप में पानी को भाप में बदलता है, जिससे टरबाइन चलता है और बिजली उत्पन्न होती है।

नॉटिलस का निर्माण और लॉन्च

रिकावर ने 1950 के दशक की शुरुआत में वेस्टिंगहाउस कंपनी के साथ रिएक्टर बनाने का अनुबंध किया, और पनडुब्बी (SSN-571) के निर्माण का जिम्मा जनरल डायनेमिक्स के इलेक्ट्रिक बोट डिवीजन को सौंपा। कड़े परीक्षणों के बाद, यूएसएस नॉटिलस को 21 जनवरी, 1954 को लॉन्च किया गया। 30 सितंबर को इसे अमेरिकी नौसेना में शामिल किया गया, और 17 जनवरी, 1955 को यह पहली बार परमाणु शक्ति पर चली। रिकावर ने इस कार्यक्रम से जुड़े हर नौसेना अधिकारी का व्यक्तिगत रूप से साक्षात्कार लिया और उन्हें मंजूरी दी।

नॉटिलस की क्षमताएं

करीब 320 फीट लंबी और 3,000 टन से अधिक वजनी नॉटिलस, पिछली डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों से कहीं ज़्यादा बड़ी थी। यह 20 समुद्री मील से अधिक की गति से यात्रा कर सकती थी और लगभग असीमित समय तक पानी के नीचे रह सकती थी। ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि इसके परमाणु इंजन को हवा की आवश्यकता नहीं थी और यह बहुत कम परमाणु ईंधन का उपयोग करता था।

ऐतिहासिक उत्तरी ध्रुव यात्रा

अपनी 25 साल की सेवा में, नॉटिलस ने गति और दूरी के कई रिकॉर्ड तोड़े। इसकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक 1958 में उत्तरी ध्रुव के नीचे से इसकी यात्रा थी, जिसे 'ऑपरेशन सनशाइन' नाम दिया गया था। इस ऐतिहासिक यात्रा पर कमांडर विलियम आर. एंडरसन सहित 116 लोग सवार थे, जिनमें 111 अधिकारी और चालक दल के सदस्य तथा चार नागरिक वैज्ञानिक शामिल थे।

यह पनडुब्बी 23 जुलाई, 1958 को हवाई के पर्ल हार्बर से रवाना हुई, बेरिंग जलडमरूमध्य से होते हुए उत्तरी ध्रुव की ओर बढ़ी। 1 अगस्त को, नॉटिलस अलास्का के उत्तरी तट को छोड़कर आर्कटिक बर्फ की टोपी के नीचे चली गई। पनडुब्बी लगभग 500 फीट की गहराई पर यात्रा कर रही थी, और उसके ऊपर बर्फ की परत 10 से 50 फीट मोटी थी। 3 अगस्त को रात करीब 11:15 बजे (ईस्टर्न डेलाइट टाइम) कमांडर एंडरसन ने ऐतिहासिक घोषणा की: "दुनिया, हमारे देश और नौसेना के लिए - उत्तरी ध्रुव!"

सफर का अंत और नॉटिलस का भविष्य

यह ऐतिहासिक क्षण बीत गया, और नॉटिलस बिना रुके भौगोलिक उत्तरी ध्रुव के नीचे से आगे बढ़ गई। यह अगली बार 5 अगस्त को ग्रीनलैंड सागर में सतह पर आई और दो दिन बाद आइसलैंड में अपनी ऐतिहासिक यात्रा समाप्त की। नॉटिलस ने अपने 25 साल के कार्यकाल में लगभग पांच लाख मील की यात्रा की। 3 मार्च, 1980 को इसे सेवामुक्त कर दिया गया और 1982 में इसे एक राष्ट्रीय ऐतिहासिक स्थल घोषित किया गया। 1986 से यह कनेक्टिकट, अमेरिका के ग्रोटन में स्थित सबमरीन फोर्स म्यूजियम में स्थायी प्रदर्शनी के रूप में जनता के लिए खुली है।

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