पी. सुंदरराजन ने संस्कृत कृतियों से बांधा समां

पी. सुंदरराजन ने अपनी मधुर आवाज और संस्कृत कृतियों से मन मोहा।

Published · By Bhanu · Category: Entertainment & Arts
पी. सुंदरराजन ने संस्कृत कृतियों से बांधा समां
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हाल ही में एक संगीत कार्यक्रम में दिल्ली के जाने-माने गायक और वायलिन वादक पी. सुंदरराजन ने अपनी मधुर आवाज और संस्कृत कृतियों पर अपनी असाधारण पकड़ से श्रोताओं का मन मोह लिया। यह कार्यक्रम द म्यूजिक अकादमी द्वारा आयोजित किया गया था, जहाँ सुंदरराजन ने कई प्रसिद्ध संगीतकारों की रचनाएँ प्रस्तुत कीं।

कार्यक्रम का स्थान और सहयोगी

यह शानदार संगीत संध्या कस्तूरी श्रीनिवासन हॉल में आयोजित की गई थी। मंच पर पी. सुंदरराजन को वायलिन पर एम.आर. गोपीनाथ और मृदंगम पर शेर्तालई आर. अनंतकृष्णन का साथ मिला। इस कार्यक्रम का आयोजन एंगिकोलई डॉ. सी. कृष्णन द्वारा चिदंबरा गणपतिगल और मीनाक्षी चिदंबरम की स्मृति में स्थापित एक विशेष निधि के तहत किया गया था।

विभिन्न संगीतकारों की रचनाएँ

अक्सर संस्कृत कृतियों का जिक्र होते ही मुत्तुस्वामी दीक्षितर का नाम याद आता है, लेकिन सुंदरराजन ने इस कार्यक्रम में महा वैद्यनाथ अय्यर, अन्नमाचार्य, त्यागराज, नारायण तीर्थ और ऊट्टुक्काडु वेंकटा सुब्बइयर जैसे अन्य महान संगीतकारों की रचनाएँ भी प्रस्तुत कीं। कुछ कृतियों में गहरे छंदों के साथ 'सोलुकट्टस' थे, जबकि कुछ में आकर्षक 'चित्तस्वर' अंश शामिल थे।

संगीतमय प्रस्तुतियों का क्रम

कार्यक्रम की शुरुआत महा वैद्यनाथ अय्यर की मनमोहक जनरंजनी कृति 'पाहिमम् श्री राजराजेश्वरी' से हुई। सुंदरराजन ने इस कृति से पहले एक श्लोक प्रस्तुत किया और इसे कल्पनास्वर के साथ समाप्त किया। इसके बाद, उन्होंने अन्नमाचार्य की 'देव देवं भजे' (हिंडोलम) प्रस्तुत की। उन्होंने अपनी गायन शैली को पंतूवरली राग अलापना के साथ गर्माया, जिसके बाद त्यागराज की 'शंभो महादेवा' (पंतूवरली या कामावर्धिनी) गाई। इस गीत के चरणम खंड में 'परमदयाकर मृगधरा...' को स्वर-प्रस्तार से और भी आकर्षक बनाया गया।

मुख्य कृति और दर्शकों की प्रतिक्रिया

सुंदरराजन के गायन ने तब और अधिक पकड़ बनाई जब उन्होंने थोडी राग की एक प्रभावशाली अलापना के बाद मुख्य कृति मुत्तुस्वामी दीक्षितर की 'श्री कृष्णं भज मानसा' प्रस्तुत की। इस कृति में 'शंख चक्र गदा पद्म वनमालम' वाले भाग पर कल्पनास्वर का प्रयोग किया गया था। श्रोतागण दीक्षितर द्वारा इस कृति में रची गई भगवान कृष्ण की सुंदर छवि में पूरी तरह से लीन हो गए। वायलिन वादक ने भी अपनी प्रस्तुति से इसका बखूबी जवाब दिया।

समापन और श्रोताओं का गुनगुनाना

कार्यक्रम के अगले चरण में शेर्तालई अनंतकृष्णन का तनी आवर्तनम हुआ। सुंदरराजन ने नारायण तीर्थ की 'माधव मामवा' (नीलांबरी) और 'मैत्रीम् भजता' के साथ अपने गायन का समापन किया। कार्यक्रम के बाद, कई श्रोताओं को ऊट्टुक्काडु वेंकटा सुब्बइयर की कृति 'नटवर तरुणी' (कन्नडगौला) और त्यागराज की 'शंभो महादेवा' (पंतूवरली) को गुनगुनाते हुए सुना गया, जो उन्होंने पहले प्रस्तुत की थीं।

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