अमेरिका में बिजली संकट: गूगल AI डेटा सेंटर मांग बढ़ने पर कम करेंगे बिजली
गूगल AI डेटा सेंटर बिजली खपत कम करेंगे, ग्रिड दबाव घटेगा।


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गूगल ने अमेरिका की दो प्रमुख बिजली कंपनियों के साथ एक महत्वपूर्ण समझौता किया है। इस समझौते के तहत, गूगल अपने AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) डेटा सेंटरों में बिजली की खपत को कम करेगा, खासकर तब जब बिजली ग्रिड पर मांग बहुत अधिक बढ़ जाती है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब AI के बढ़ते इस्तेमाल के कारण बिजली की आपूर्ति पर भारी दबाव बन रहा है।
क्या हुआ?
गूगल ने इंडियाना मिशिगन पावर और टेनेसी पावर अथॉरिटी के साथ ये करार किए हैं। इन समझौतों के मुताबिक, जब भी ये बिजली कंपनियां बिजली ग्रिड पर बढ़ती मांग के कारण गूगल से अनुरोध करेंगी, तो कंपनी अपने डेटा सेंटरों में बिजली का उपयोग घटा देगी। इसका मुख्य उद्देश्य बिजली ग्रिड पर से अतिरिक्त दबाव को कम करना है।
AI डेटा सेंटरों से बढ़ा बिजली संकट
अमेरिका में AI डेटा सेंटरों के लिए बिजली की मांग अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है। बड़ी तकनीकी कंपनियों (बिग टेक) के AI डेटा सेंटरों को भारी मात्रा में बिजली की आवश्यकता होती है, जिससे कुछ क्षेत्रों में बिजली की कुल उपलब्ध आपूर्ति से भी अधिक मांग पैदा हो गई है। इस बिजली संकट के कारण आम घरों और व्यवसायों के लिए बिजली के बिल बढ़ने और संभावित ब्लैकआउट होने की चिंताएं बढ़ गई हैं। यह स्थिति टेक्नोलॉजी उद्योग के AI विस्तार को भी चुनौतीपूर्ण बना रही है, क्योंकि AI को संचालित करने के लिए तेजी से भारी बिजली की ज़रूरत होती है।
कैसे काम करेगा यह समझौता?
ये गूगल के ऐसे पहले औपचारिक समझौते हैं जिनमें कंपनी 'मांग-प्रतिक्रिया' (Demand-Response) कार्यक्रमों के तहत अपनी मशीन लर्निंग (जो AI का एक उप-समूह है) से संबंधित गतिविधियों में अस्थायी रूप से कटौती करेगी। इसका सीधा अर्थ है कि बिजली कंपनियां जब भी ज़रूरत महसूस करेंगी, गूगल को सूचित करेंगी और गूगल अपने डेटा सेंटरों में बिजली का इस्तेमाल कम कर देगा ताकि ग्रिड में बिजली की कमी न हो।
गूगल का बयान
गूकल ने अपने एक ब्लॉग पोस्ट में बताया कि यह कदम बड़े बिजली उपभोक्ता, जैसे डेटा सेंटरों को, बिजली ग्रिड से और तेज़ी से जोड़ने में मदद करेगा। कंपनी का कहना है कि इससे नए ट्रांसमिशन लाइनें और बिजली संयंत्र बनाने की ज़रूरत भी कम होगी। साथ ही, यह ग्रिड ऑपरेटरों को बिजली ग्रिड को अधिक प्रभावी और कुशलता से प्रबंधित करने में सहायक होगा।
पहले भी ऐसे कार्यक्रम
मांग-प्रतिक्रिया कार्यक्रम पहले भी अन्य ऊर्जा-गहन उद्योगों, जैसे भारी विनिर्माण या क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग, द्वारा उपयोग किए जाते रहे हैं। इन कार्यक्रमों में शामिल होने के बदले, कंपनियों को आमतौर पर भुगतान मिलता है या उनके बिजली के बिलों में छूट दी जाती है। हालांकि, डेटा सेंटरों में AI गतिविधियों से जुड़े ऐसे कार्यक्रम बिल्कुल नए हैं। गूगल और बिजली कंपनियों के बीच इन वाणिज्यिक समझौतों का पूरा विवरण अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है।
आगे क्या?
फिलहाल, ये मांग-प्रतिक्रिया समझौते बिजली ग्रिड पर कुल मांग के केवल एक छोटे हिस्से पर लागू होते हैं। लेकिन, अमेरिका में बिजली आपूर्ति की स्थिति लगातार कसी होने के कारण, विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में ऐसे समझौते और भी आम हो सकते हैं।