विष्णुदेव के संगीत ने मोहा मन, हाल ही के कंसर्ट में दिखा शानदार प्रदर्शन
विष्णुदेव नम्बूदरी के संगीत ने मोहा मन, शानदार प्रदर्शन दिखा.


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परिचय: संगीत की अद्भुत कला
हाल ही में आयोजित एक संगीत कार्यक्रम में कर्नाटिक गायक विष्णुदेव नम्बूदरी ने अपनी गायन कला का शानदार प्रदर्शन किया। यह कार्यक्रम श्रीनिवास शास्त्री हॉल में पैट्रि स्कूल ऑफ परकशन के लिए आयोजित किया गया था। इस कंसर्ट में विष्णुदेव की गायन शैली, विद्वत्ता और मंच पर प्रस्तुति की अद्भुत समझ साफ झलक रही थी।
कंसर्ट का आगाज़
विष्णुदेव ने अपने कार्यक्रम की शुरुआत मुथुस्वामी दीक्षितार द्वारा रचित 'सिद्धि विनायकम' से की। यह रचना शान्मुखप्रिया (जिसे चामरम भी कहते हैं) राग में थी। गायक ने इस रचना की पंक्ति 'प्रसिद्ध गान नायकम्' के लिए स्वरों का विस्तार किया, जिसने तुरंत दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
प्रमुख प्रस्तुतियां
इसके बाद गायक ने त्यागराज द्वारा रचित राग हुसैनी में 'राम निन्ने नम्मिननु' कृति प्रस्तुत की। इस भक्तिपूर्ण रचना में संत-कवि भगवान राम की कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं। इसके बाद, विष्णुदेव ने सुब्बराया शास्त्री की 'जननी निन्नुविना' कृति को राग रितिगौड़ा में बेहद खूबसूरती से गाया। इस रचना में स्वरों और साहित्य का सुंदर सामंजस्य देखने को मिला।
साथी कलाकारों का सहयोग
इस कार्यक्रम में विष्णुदेव नम्बूदरी के साथ मृदंगम पर अद्वैत इलावज्हाला, वायलिन पर वरदराजन और कांजीरा पर नेरकुनम शंकर ने संगत की। युवा मृदंग वादक अद्वैत इलावज्हाला के लिए यह उनका पहला सार्वजनिक प्रदर्शन (अरंगेत्रम) था। उन्होंने वरिष्ठ कलाकार विष्णुदेव के साथ संगत कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। अद्वैत मृदंगम विद्वान पैट्रि सतीश कुमार के शिष्य हैं।
रागम् तानम् पल्लवी का अद्भुत प्रदर्शन
रागम् तानम् पल्लवी की प्रस्तुति से पहले, त्यागराज की 'सरस सम दाना' (कापिनारायणी) एक छोटे से भराव के रूप में प्रस्तुत की गई। इस कार्यक्रम की मुख्य आकर्षण 'सरस नयना सरस सारथरा रथरसा' नामक पल्लवी थी। इसकी खासियत यह थी कि यह साहित्य, स्वरों और ताल में एक 'पलिंड्रोम' (आगे और पीछे से एक जैसा) की तरह थी। इसकी ताल बहुत जटिल थी, जिसमें पहले 3, 4, 5 मात्राएं थीं, और फिर उल्टे क्रम में 5, 4, 3 मात्राओं का अनुसरण किया गया। पल्लवी से पहले, गायक और वायलिन वादक ने 'सारासंगी' राग में एक सुंदर अलापना और तानाम प्रस्तुत किया। पल्लवी में निरवल और त्रिकाल के बाद, विष्णुदेव ने कल्पणास्वरों के साथ इसका समापन किया।
वादकों का कौशल
कार्यक्रम में वायलिन वादक वरदराजन का वादन मधुरता से भरा था और उन्होंने अपनी धुन से सबका मन मोह लिया। उनके बाद हुई तानी (एकल वादन) ने युवा मृदंग वादक अद्वैत इलावज्हाला के कौशल को बखूबी दर्शाया। उन्होंने अपने पहले ही प्रदर्शन में चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी योग्यता साबित की। वहीं, वरिष्ठ कांजीरा कलाकार नेरकुनम शंकर ने भी जटिल ताल को बड़ी कुशलता और बारीकी से संभाला, जिससे कार्यक्रम की शोभा और बढ़ गई।