तेलुगु फिल्मों की शूटिंग पर लगा ब्रेक, 30% वेतन वृद्धि की मांग से गहराया संकट
तेलुगु फिल्म उद्योग में वेतन वृद्धि को लेकर शूटिंग ठप।


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हैदराबाद: तेलुगु फिल्म उद्योग में इन दिनों एक बड़ा संकट छाया हुआ है। तेलुगु फिल्म प्रोड्यूसर्स और तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री एंप्लॉयीज फेडरेशन (TFIEF) के बीच वेतन वृद्धि को लेकर चल रहा विवाद दूसरे हफ्ते में प्रवेश कर गया है, जिसके कारण सभी तेलुगु फिल्मों की शूटिंग रोक दी गई है। इस गतिरोध ने फिल्म उद्योग को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है।
क्या है विवाद?
दरअसल, यह पूरा मामला TFIEF की ओर से 30 प्रतिशत वेतन वृद्धि की मांग से शुरू हुआ है। फेडरेशन और उससे जुड़ी विभिन्न यूनियनें, जिनमें स्टंट, मेकअप और अन्य विभाग शामिल हैं, अपनी इस मांग को सही ठहरा रही हैं। उनका कहना है कि आजकल फिल्मों के निर्माण की लागत लगातार बढ़ रही है। आजकल फिल्में देशव्यापी बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन करना चाहती हैं, और बड़े कलाकार व निर्देशक करोड़ों रुपये की फीस लेते हैं, ऐसे में कर्मचारियों का वेतन भी बढ़ना चाहिए।
निर्माताओं का पक्ष
दूसरी ओर, फिल्म निर्माताओं का कहना है कि कुछ 'ऑल इंडिया हिट' फिल्मों को छोड़कर, ज्यादातर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल रहती हैं। वे यह भी बताते हैं कि यूनियनें भारी-भरकम सदस्यता शुल्क वसूल करती हैं और ऐसे नियम लागू करती हैं, जिनके तहत निर्माताओं को ज़रूरत से ज़्यादा क्रू सदस्यों को काम पर रखना पड़ता है। इससे फिल्मों की लागत अनावश्यक रूप से बढ़ जाती है।
उद्योग पर गहराता संकट
इस हड़ताल के कारण, जो फिल्में फिलहाल बन रही हैं, उनमें देरी होना तय है। इससे पूरे उद्योग को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है और रिलीज़ की तारीखें भी आगे बढ़ सकती हैं।
छोटे और मंझले बजट के निर्माताओं की चिंताएं
सोमवार दोपहर को, हैदराबाद के प्रसाद लैब्स प्रीव्यू थिएटर में छोटे और मंझले बजट की फिल्मों के कुछ निर्माताओं ने मीडिया से बात की और अपना पक्ष रखा। इस बैठक में निर्माता श्रीनिवास कुमार नायडू (SKN), धीरज मोगिलिनेनी, राजेश डंडा, चैतन्य, शिवालंका कृष्ण प्रसाद, बेक्केम वेणुगोपाल, शरथ और अनुराग, मधुरा श्रीधर, महेश्वर रेड्डी, वामसी नंदिपति, हर्षित रेड्डी और राकेश वारे जैसे कई प्रमुख लोग शामिल थे।
ब्लॉकबस्टर फिल्म 'बेबी' के निर्माता एसकेएन ने इस दौरान कहा, "हर साल लगभग 250 तेलुगु फिल्में रिलीज होती हैं, जिनमें से 50 से भी कम फिल्मों का बजट 100 करोड़ रुपये से अधिक होता है। ज्यादातर निर्माता छोटे बजट में काम करते हैं।" उन्होंने जोर देकर कहा, "निर्माता पैसों के थैले नहीं हैं!" यह बात उन आरोपों के संदर्भ में कही गई थी, जिनमें कहा गया था कि यूनियनें निर्माताओं को फिल्म की शूटिंग के लिए ज़रूरत से ज़्यादा क्रू सदस्यों को काम पर रखने के लिए मजबूर कर रही हैं।
ज़रूरत से ज़्यादा क्रू हायर करने का आरोप
निर्माता मधुरा श्रीधर ने एक उदाहरण देते हुए समझाया, "अगर हमें एक कमरे में दो कलाकारों के बीच की बातचीत को फिल्माना है, तो हमें कुछ लाइटें, कैमरे और एक छोटा क्रू चाहिए होता है। लेकिन यूनियनों द्वारा बनाए गए नियमों के कारण, हर विभाग के सदस्य कई सहायक ले आते हैं। नतीजतन, एक छोटे से सीन के लिए भी हमें 80 क्रू सदस्यों को काम पर रखना पड़ जाता है।" अन्य निर्माताओं ने भी उनकी बातों का समर्थन किया।
कम बजट की फिल्मों के निर्माताओं के अनुभव
छोटी बजट की हिट फिल्म 'पेकामेडालु' के निर्माता राकेश वारे ने बताया कि उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'एववारिकी चेप्पोड्डु' केवल 1.5 करोड़ रुपये में बनाई थी। तब उन्होंने कम क्रू के साथ काम किया था और यूनियन के सदस्यों को नहीं लिया था। लेकिन अपनी दूसरी फिल्म 'पेकामेडालु' के लिए उन्हें यूनियन कार्ड वाले कई क्रू सदस्यों को शामिल करना पड़ा। उन्होंने कहा, "फिल्म का बजट बढ़कर 2.5 करोड़ रुपये हो गया।" उन्होंने यह भी कहा कि यह एक भ्रम है कि छोटे निर्माता और कलाकार बहुत पैसा कमाते हैं। "थिएटर में रिलीज़ या डिजिटल अधिकारों से मुनाफ़ा होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। ओटीटी प्लेटफॉर्म भी तभी फिल्में लेते हैं, जब उनमें जाने-माने कलाकार हों।"