शूजित सरकार की 'सरदार उधम': एक क्रांतिकारी की रूह को झकझोर देने वाली दास्तान

शूजित सरकार की 'सरदार उधम': एक क्रांतिकारी की रूह को झकझोर देने वाली दास्तान।

Published · By Bhanu · Category: Entertainment & Arts
शूजित सरकार की 'सरदार उधम': एक क्रांतिकारी की रूह को झकझोर देने वाली दास्तान
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परिचय

जब देश के बेहतरीन निर्देशकों में से एक को अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बनाने का मौका मिलता है, तो नतीजा क्या होता है? इसका जवाब है शूजित सरकार की फिल्म 'सरदार उधम'। यह फिल्म एक ऐसा विजुअल पोर्ट्रेट है, जो अपनी बारीकियों और भावनात्मक गहराई से दर्शकों को पहली झलक में ही बांध लेता है। यह एक ऐसी कलाकृति है जिसमें निर्देशक का अपने विषय के प्रति जुनून चरम पर दिखता है। 'सरदार उधम' शूजित सरकार के बेहतरीन काम का नमूना है।

फिल्म की कहानी

यह फिल्म सरदार उधम सिंह के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद इसके जिम्मेदार माइकल ओ'डायर से बदला लेने की कसम खाई थी। नरसंहार के बाद भारतीयों की नस-नस में गुस्सा भर गया था और इसका गहरा असर सरदार उधम सिंह की याददाश्त पर पड़ा। यह फिल्म उधम सिंह के 21 साल लंबे इंतज़ार और उनके बदला लेने के सफर को दिखाती है। फिल्म बताती है कि कैसे एक व्यक्ति की आत्मा हजारों बेसहारा लोगों के साथ मर गई, और उसका योगदान इतिहास की किताबों में अक्सर भुला दिया जाता है।

निर्देशन और प्रस्तुति

शूजित सरकार ने इस फिल्म को नॉन-लीनियर तरीके से प्रस्तुत किया है, जो कहानी को और भी दमदार बनाता है। यह शैली दर्शकों को उधम सिंह की आजादी की लड़ाई में अमर बने रहने की यात्रा को गहराई से समझने का मौका देती है। फिल्म में 30 मिनट का जलियांवाला बाग नरसंहार का सीन बेहद भयावह और असली लगता है, मानो कोई भयानक दुःस्वप्न हो जिसे आप चाहकर भी छोड़ नहीं सकते। अविजित मुखोपाध्याय की सिनेमैटोग्राफी हर फ्रेम में उदासी और गहराई दर्शाती है, जबकि शांतनु मोइत्रा का संगीत कहानी में भावनात्मकता घोलता है। सरकार ने देशभक्ति को अति-अभिव्यक्त करने के बजाय, इसे दर्द और समर्पण के माध्यम से दर्शकों तक पहुँचाया है।

विक्की कौशल का दमदार अभिनय

फिल्म में मुख्य भूमिका निभा रहे विक्की कौशल ने सरदार उधम सिंह के किरदार को जीवंत कर दिया है। उनकी हर हरकत, हर हाव-भाव में उधम सिंह का दृढ़ संकल्प और भावनाएं साफ झलकती हैं। विक्की कौशल ने इस किरदार को इतनी ईमानदारी से निभाया है कि दर्शक उन्हें उधम सिंह के रूप में ही देखते हैं। फिल्म में हर छोटी-बड़ी चीज़ की प्रामाणिकता पर ध्यान दिया गया है, चाहे वह टाइपराइटर की खट-खट हो या टेलीग्राम के ज़रिए भेजे गए संदेश।

फिल्म का गहरा संदेश

'सरदार उधम' सिर्फ एक देशभक्ति फिल्म नहीं है, बल्कि यह एक चुनौती है जिसे शूजित सरकार ने दर्शकों के सामने रखा है। यह एक ऐसे व्यक्ति की यात्रा है जिसकी आत्मा हजारों निर्दोष लोगों के साथ मर गई, एक ऐसा व्यक्ति जिसका योगदान हमारी स्कूली किताबों में भुला दिया गया है। फिल्म यह सवाल करती है कि अगर उधम सिंह लेफ्टिनेंट गवर्नर ओ'डायर पर गोली चलाने से पहले इक्कीस साल इंतजार कर सकते थे, तो क्या आप भी 162 मिनट की यह फिल्म देखकर एक क्रांतिकारी की विरासत को याद नहीं कर सकते? यह फिल्म दर्शकों को उधम सिंह की आंतरिक आजादी की तलाश को समझने के लिए प्रेरित करती है।

क्यों देखें यह फिल्म?

यह फिल्म हमें याद दिलाती है कि एक क्रांतिकारी बनने की यात्रा क्या होती है। यह दर्शकों को न केवल इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय से जोड़ती है, बल्कि उन्हें एक ऐसे नायक की भावनात्मक और मानसिक पीड़ा से भी रूबरू कराती है जिसका संघर्ष भारत की आजादी से गहराई से जुड़ा हुआ है। 'सरदार उधम' एक ऐसी फिल्म है जिसे हर भारतीय को देखना चाहिए ताकि वे एक भूले हुए नायक और उसकी अमर विरासत को समझ सकें।

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