शेखर कपूर: 'मासूम 2' से लेकर AI और सेंसरशिप तक

शेखर कपूर ने 'मासूम 2', AI, सेंसरशिप और अपने घुमंतू जीवन पर बात की।

Published · By Bhanu · Category: Entertainment & Arts
शेखर कपूर: 'मासूम 2' से लेकर AI और सेंसरशिप तक
Bhanu
Bhanu

bhanu@chugal.com

जाने-माने फिल्ममेकर शेखर कपूर इन दिनों अपनी लोकप्रिय फिल्म 'मासूम' के सीक्वल 'मासूम 2' की कहानी लिख रहे हैं। इसके साथ ही वह एक कोरियाई म्यूजिकल प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने एक इंटरव्यू में 'मासूम 2' के विचार, अपनी घुमंतू जीवनशैली, सेंसरशिप और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसे विषयों पर खुलकर बात की।

'मासूम 2' का विचार कहां से आया?

शेखर कपूर ने बताया कि कोविड-19 महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया बंद थी, तो उन्हें 'घर' के मायने परेशान करने लगे। क्या घर सिर्फ चार दीवारें हैं, एक याद है या एक भावना? इस सवाल के जवाब की तलाश में वे उत्तराखंड के भीमताल में जोंस एस्टेट चले गए, जिसे उन्होंने 1980 के दशक की शुरुआत में 'मासूम' की शूटिंग के लिए खोजा था। तीन महीने तक इस शांत जगह पर रहते हुए, उन्होंने अपनी 'पहचान की निरंतर खोज' को 'मासूम 2' के आध्यात्मिक सीक्वल का रूप दिया।

'घर' की तलाश और विभाजन का दर्द

शेखर कपूर खुद को एक घुमंतू बताते हैं; उनकी करीबी दोस्त शबाना आजमी उन्हें प्यार से इब्न बतूता कहकर बुलाती हैं। कपूर ने बताया कि विभाजन के बाद के हालात ने उन्हें 'घर' की अवधारणा को लेकर हमेशा बेचैन रखा है। उनके माता-पिता लाहौर से शरणार्थी के रूप में दिल्ली आए थे। उनकी मां हमेशा अपनी जगह चाहती थीं और कहती थीं, "मैनु घर चाहिदा है" (मुझे घर चाहिए)। उनके पिता, जो पेशे से डॉक्टर थे, उन्हें याद दिलाते थे कि वे अभी-अभी अपना घर खोकर आए हैं। कपूर को याद है कि जब दिल्ली के महारानी बाग में उनके घर का निर्माण शुरू हुआ, तो उनकी मां, जिन्होंने अपने जीवन में दो बड़े भूकंप देखे थे, युवा आर्किटेक्ट से घर को भूकंप-रोधी बनाने के लिए कहती थीं। कपूर हंसते हुए कहते हैं कि दिल्ली में शायद उनका घर पहला ऐसा घर था जो खंभों पर बना था। वे कहते हैं, "अब मेरे माता-पिता नहीं रहे और मेरी बहन वहां रहती है। मैं एक शहर से दूसरे शहर भटकता रहता हूं। आजकल जो कॉल आते हैं, ऐसा लगता है कि घर सिर्फ एक संपत्ति बनकर रह गया है। मैं मजाक में कहता था कि भूकंप से घर नहीं हिलेगा, लेकिन रियल एस्टेट की कीमतों में उतार-चढ़ाव जरूर हिला सकता है। इन सब बातों ने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया। आखिर हम प्रवासियों का देश हैं।"

करियर नहीं, बस जुनूनी काम

कपूर ने स्पष्ट किया कि विभाजन का दर्द उन्हें कड़वा नहीं बनाता, बल्कि हमेशा बेचैन रखता है। उन्होंने बताया कि 24 साल की उम्र में ही उन्होंने तय कर लिया था कि वे कोई 'करियर' नहीं बनाएंगे। वे कहते हैं, "अगर मेरे सामने किसी फिल्म का विचार आता है, तो मैं सेट पर चला जाता हूं; अगर कोई म्यूजिकल मेरी कल्पना को उत्साहित करता है, तो मैं मंच पर चला जाता हूं। इस समय, मैं नसीरुद्दीन शाह और मनोज बाजपेयी के साथ 'मासूम 2' पर काम करने जितना ही उत्साहित हूं, जितना बीथोवेन के जीवन पर के-पॉप सितारों के साथ एक कोरियाई म्यूजिकल पर काम करने को लेकर।"

राजनीति और सिनेमा पर बेबाक राय

इस साल पद्म भूषण से सम्मानित शेखर कपूर दिल्ली में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (IFFI) के लिए बैठकें कर रहे थे, क्योंकि वे इसके फेस्टिवल डायरेक्टर भी हैं। अपने मामा देव आनंद को आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी का सामना करते देख चुके कपूर, सिनेमा और राजनीति के मेल-जोल पर अपनी राय रखते हैं। उन्होंने कहा, "जब उन्होंने नेशनल पार्टी बनाई थी, तब मैं उनके साथ था। वह एक बहादुर व्यक्ति थे, लेकिन मेरी अपनी फिलॉसफी रही है। मैं राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं, लेकिन मुझे लगता है कि यदि आप लोकतंत्र में रह रहे हैं, तो आपको लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार के साथ जुड़ना होगा।"

कपूर कहते हैं कि मुद्दे हैं, लेकिन लोकतंत्र एक खुला दरवाजा है। "हमें बात करते रहना चाहिए।" वे अपने दोस्तों से, जो सेंसरशिप की शिकायत करते हैं, कहते हैं कि उन्हें कांग्रेस शासन के दौरान 'बैंडिट क्वीन' को रिलीज़ कराने के लिए एक साल तक बहस करनी पड़ी थी। "मैं भी एक भारतीय वास्तविकता दिखा रहा था। लंबे समय तक, अमेरिका को एक स्वतंत्र समाज के रूप में देखा जाता रहा है, लेकिन आज मुझे लगता है कि मैं भारत में अमेरिका की तुलना में बेहतर तरीके से खुद को अभिव्यक्त कर सकता हूं।"

अभिव्यक्ति की आजादी और समाज

कपूर समाज के ऊपरी तबकों में एक तरह का बौद्धिक कबीलावाद (Intellectual Tribalism) देखते हैं। वे कहते हैं, "समाज का कोई भी एक वर्ग यह दावा नहीं कर सकता कि वह भारत को पूरी तरह समझता या प्रतिनिधित्व करता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अकेले नहीं हो सकती। इसके साथ भूख से मुक्ति, शिक्षा का अधिकार और गरीबी से मुक्ति भी होनी चाहिए।"

AI से रचनात्मकता को कितनी चुनौती?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) रचनात्मक अभिव्यक्ति के सामने एक बड़ी चुनौती बन रहा है। कपूर कहते हैं कि AI एक लोकतांत्रिक तकनीक है, लेकिन यह आपको बेहतर कहानीकार नहीं बना सकती। "अगर हम अपनी रचनात्मकता में अनुमानित (Predictable) होंगे, तो AI हमारा मुकाबला कर लेगा। उदाहरण के लिए, यदि हम 'गेम ऑफ थ्रोंस' के हर सीज़न में एक जैसे चरित्र और माहौल चाहते हैं, तो AI यह काम कर सकता है। शीर्ष पर बैठे लोग अपनी नौकरी खो देंगे क्योंकि AI पिरामिड को गिरा देगा। हालांकि, रचनात्मकता का उच्चतम रूप तब उभरता है जब हम खुद को अराजकता (Chaos) की स्थिति में डालते हैं। जीवन और प्रेम अनिश्चितता के कारण मौजूद हैं। हम इस अनिश्चितता को कि 'क्या वह मुझसे प्यार करती है या नहीं', कई तरीकों से खोज सकते हैं, खुद को जोखिम में डालकर, एक मशीन ऐसा नहीं कर सकती।"

कला के प्रति शेखर कपूर का नज़रिया

अपनी सामग्री और शैली के साथ संघर्षों पर चर्चा करते हुए, कपूर ने बताया कि उनके तीन प्रसिद्ध मामाओं में से वे भावनात्मक रूप से चेतन आनंद के सबसे करीब थे, जिन्हें 'नीचा नगर' जैसी क्लासिक फिल्मों के निर्देशन के लिए जाना जाता है। 'नीचा नगर' कान में पाल्मे डी'ओर जीतने वाली एकमात्र भारतीय फिल्म है, और इसका मूल विषय कपूर की अधूरी परियोजना 'पानी' में भी गूंजता है। कपूर कहते हैं, "उनकी तरह, मेरे लिए शैली से पहले सामग्री आती है। आप कह सकते हैं कि 'मिस्टर इंडिया' एक अपवाद थी, लेकिन वहां भी, शैली एक मजबूत भावना से निकली थी। मैंने 11 साल के बच्चे के रूप में उस जगह को देखा। और मैंने 'एलिजाबेथ' में भी वही प्रक्रिया अपनाई।"

घुमंतू स्वभाव और प्यार की परिभाषा

उन्होंने उन आलोचकों का दृढ़ता से सामना किया जो उनकी बेचैनी को आलस्य मानते थे। कपूर कहते हैं कि वे "हर बार एक नया पहाड़ चढ़ने" की कोशिश करते हैं, और कभी-कभी, जब उन्हें पता चलता है कि वे एक ही रास्ते पर चल रहे हैं, तो वे उस रोमांच को बीच में ही खत्म करने के लिए तैयार रहते हैं, जैसा कि उन्होंने 'जोशीले' और 'बरसात' जैसी परियोजनाओं के साथ किया। वे कहते हैं, "मेरा मानना है कि कला एक सहज विचार है, और आप अपनी सहज प्रवृत्ति (Intuition) में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। यदि आपके पास अपनी सहज प्रवृत्ति नहीं है, तो आपके पास क्या है?" वे सोचते हैं।

79 साल की उम्र में घुमंतू होना थोड़ा अजीब लगता है। इस पर कपूर हंसते हुए कहते हैं, "मेरे लिए, बस जाना एक बहुत ही मध्यवर्गीय विचार है।" वे आगे कहते हैं, "मेरे लिए, प्यार किसी चीज़ में घुल जाना है। मैंने अपनी बेटी कावेरी के साथ सबसे मजबूत बंधन महसूस किया है। लेकिन क्या घर की तलाश मुक्तिदायक है या यह अधिक से अधिक खोजों को उकसाती है? 'एलिजाबेथ' अंत में यही सवाल पूछती है। क्या वह खुद की कैदी बन गई, या खुद से मुक्त हो गई? मुझे यकीन नहीं है, लेकिन मुझे यह अनिश्चितता का विचार पसंद है। यह मुझे कोशिश करने के लिए प्रेरित करता है..."

Related News