रजनीकांत की फिल्म 'कुली' को 'ए' सर्टिफिकेट क्यों मिला? CBFC ने मद्रास हाई कोर्ट में दिया जवाब

रजनीकांत की फिल्म 'कुली' को 'ए' सर्टिफिकेट क्यों मिला?

Published · By Tarun · Category: Entertainment & Arts
रजनीकांत की फिल्म 'कुली' को 'ए' सर्टिफिकेट क्यों मिला? CBFC ने मद्रास हाई कोर्ट में दिया जवाब
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चेन्नई: सुपरस्टार रजनीकांत की आने वाली फिल्म 'कुली' को 'ए' (वयस्क) सर्टिफिकेट मिलने का मामला मद्रास हाई कोर्ट पहुंच गया है। सोमवार (25 अगस्त 2025) को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) ने कोर्ट को बताया कि फिल्म को 'ए' सर्टिफिकेट क्यों दिया गया, जिसका मतलब है कि 18 साल से कम उम्र के लोग इसे नहीं देख सकते। यह सुनवाई जस्टिस टी.वी. तमिलसेल्वी के सामने हुई।

CBFC ने कोर्ट में क्या कहा?

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ए.आर.एल. सुंदरेशन ने CBFC की ओर से पेश होते हुए बताया कि फिल्म को सर्टिफिकेट देने की एक तय प्रक्रिया होती है। उन्होंने कहा कि 'कुली' को पहले एक जाँच समिति (एग्जामिनिंग कमेटी) ने देखा था। इस समिति में CBFC का एक अधिकारी और समाज के अलग-अलग क्षेत्रों से चार सदस्य शामिल थे, जो सिनेमाघरों में दर्शकों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

सर्टिफिकेशन प्रक्रिया का विस्तृत ब्यौरा

सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि CBFC के पास करीब 200 सदस्यों का एक पैनल होता है, जिनमें से इन चार सदस्यों को रैंडम तरीके से चुना जाता है। उन्होंने कहा कि जाँच समिति ने सर्वसम्मति से 'कुली' को सिर्फ 'ए' सर्टिफिकेट के योग्य पाया था। जब यह बात फिल्म के प्रोडक्शन हाउस, सन टीवी नेटवर्क लिमिटेड के प्रतिनिधियों को बताई गई, तो उन्होंने मामले को पुनर्विचार समिति (रिवाइजिंग कमेटी) के पास भेजने पर जोर दिया। इस समिति में CBFC का एक अधिकारी और समाज के अलग-अलग क्षेत्रों से नौ सदस्य होते हैं, जो एक व्यापक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हैं।

हिंसक दृश्यों की वजह से 'ए' सर्टिफिकेट

पुनर्विचार समिति ने भी सर्वसम्मति से यह निष्कर्ष निकाला कि 'कुली' सिर्फ वयस्कों के देखने लायक है, जिसका मुख्य कारण इसमें दिखाए गए हिंसक दृश्य हैं। इसके बाद, प्रोडक्शन हाउस ने 'ए' सर्टिफिकेट जारी करने के लिए तय फॉर्मेट में आवेदन किया और 14 अगस्त 2025 को फिल्म रिलीज कर दी।

CBFC का तर्क: फिल्म रिलीज के बाद अपील क्यों नहीं?

ए.आर.एल. सुंदरेशन ने दलील दी कि जब प्रोडक्शन हाउस ने 'ए' सर्टिफिकेट स्वीकार करके फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज कर दिया है, तो वे अब सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के तहत अपील करके हाई कोर्ट में यह दावा नहीं कर सकते कि फिल्म को केवल 'यू/ए' सर्टिफिकेट मिलना चाहिए, 'ए' नहीं। उन्होंने जोर देकर कहा, "जाँच समिति और पुनर्विचार समिति दोनों की राय सर्वसम्मत थी। दोनों समितियों की राय एक जैसी थी, उनमें कोई मतभेद नहीं था। इसलिए, 'कुली' को तब तक 'यू/ए' सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सकता जब तक इसमें और बदलाव (कट्स) न किए जाएं।"

फिल्म निर्माताओं का पलटवार

वहीं, प्रोडक्शन हाउस का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील जे. रविंद्रन ने CBFC के इस दावे का पुरजोर खंडन किया कि उन्होंने 'ए' सर्टिफिकेट स्वीकार कर लिया था। उन्होंने कहा कि प्रोडक्शन हाउस ने कभी ऐसी कोई स्वीकृति नहीं दी थी और उन्हें सर्टिफिकेशन को चुनौती देने का वैधानिक अधिकार है। रविंद्रन ने यह भी कहा कि हाल के दिनों में कई ऐसी फिल्मों को 'यू/ए' सर्टिफिकेट दिए गए हैं, जिनमें 'कुली' से कहीं ज़्यादा हिंसा थी। उन्होंने बोर्ड के इस फैसले को अनुचित बताया, खासकर तब जब 'कुली' को विदेशी देशों में बच्चे भी देख रहे हैं, जहाँ भारत की तुलना में कहीं ज़्यादा सख्त कानून हैं।

अदालत का फैसला सुरक्षित

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, जस्टिस ने CBFC के फैसले को चुनौती देने वाली प्रोडक्शन हाउस की याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है।

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