रजनीकांत के 50 साल: 'परिवार के चहेते' सुपरस्टार का खूंखार किरदारों की ओर रुख

रजनीकांत का 50 साल का सफर: खलनायक से सुपरस्टार तक का बदलाव।

Published · By Bhanu · Category: Entertainment & Arts
रजनीकांत के 50 साल: 'परिवार के चहेते' सुपरस्टार का खूंखार किरदारों की ओर रुख
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अभिनेता रजनीकांत ने भारतीय सिनेमा में 50 साल पूरे कर लिए हैं। इस लंबे सफर में उन्होंने कई तरह के किरदार निभाए हैं, लेकिन अब वह एक बार फिर अपने पुराने खूंखार और गंभीर किरदारों की ओर लौटते दिख रहे हैं। 'अपूर्वा रागंगल' और 'मूंदरु मुडिचू' जैसी फिल्मों से लेकर हाल ही में आई 'जेलर' और आने वाली फिल्म 'कूली' तक, सुपरस्टार का करियर एक पूरा चक्र घूम गया है।

क्या है खबर?

रजनीकांत, जिन्हें कभी खलनायक के रूप रूप में देखा जाता था और फिर वह नायक बन गए, अब एक बार फिर ऐसे किरदारों को अपना रहे हैं जिनमें गहरा अंधेरा और गंभीरता है। उनके 50 साल के करियर में यह एक बड़ा बदलाव है, जो दिखाता है कि वह समय के साथ खुद को ढालने में कितने माहिर हैं।

बस कंडक्टर से 'सुपरस्टार' तक का सफर

शिवाजी राव गायकवाड़, एक बस कंडक्टर और पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट के ग्रेजुएट, 1975 में के. बालाचंदर की फिल्म 'अपूर्वा रागंगल' से रजनीकांत बने। यह किस्मत ही थी कि शिवाजी बालाचंदर की नजरों में आए, लेकिन सिर्फ किस्मत ने उन्हें 'द सुपरस्टार' नहीं बनाया। रजनीकांत ने लगातार खुद को बदला और बाजार की जरूरतों के हिसाब से ढला। यही वजह है कि आज भी उनकी फिल्में रिलीज होते ही सिनेमाघरों में भीड़ उमड़ पड़ती है।

शुरुआत में विलेन, फिर बने एक्शन हीरो

अपने करियर के शुरुआती दौर में रजनीकांत ने कई विलेन या सहायक किरदार निभाए। 1979 की फिल्म 'भुवना ओरु केल्वी कुरी' उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिसके बाद उन्होंने एस.पी. मुथुरमन जैसे निर्देशकों के साथ यादगार काम किया। 'भैरवी', 'मुल्लुम मलारुम', 'प्रिया' और 'आरिलिरुंधु अरुबथु वरई' जैसी फिल्मों ने उनके अंदर के कलाकार को बाहर निकाला। 70 के दशक में उन्होंने एक्शन भूमिकाएं शुरू कीं और अमिताभ बच्चन की 'एंग्री यंग मैन' वाली सफलता से प्रभावित होकर 'बिल्ला' के साथ एक्शन जॉनर में अपनी गंभीर शुरुआत की।

हिंदी सिनेमा में जलवा और 'मास हीरो' की पहचान

1980 के दशक में रजनीकांत ने अपनी स्थिति को और मजबूत किया। इस दशक में उन्होंने औसतन हर साल सात फिल्में दीं, जिनमें एक्शन एंटरटेनर और फैमिली ड्रामा शामिल थे। 'थिल्लू मुल्लू' और 'गुरु शिष्यन' जैसी कॉमेडी फिल्मों ने भी दर्शकों का दिल जीता। 1983 में उन्होंने 'अंधा कानून' से बॉलीवुड में कदम रखा और उत्तरी भारत में भी अपनी पहचान बनाई। कई हिंदी फिल्मों, जिनमें कुछ तमिल फिल्मों के रीमेक थे ('जॉन जानी जनार्दन', 'दोस्ती दुश्मनी'), और कुछ सीधी हिंदी फिल्में ('मेरी अदालत', 'बेवफाई', 'असली नकली', 'हम') शामिल थीं, ने उन्हें देश भर में मशहूर कर दिया।

90 के दशक में रजनीकांत ने तमिल परिवारों के बीच अपनी पकड़ और मजबूत की। 'धर्म दुरई', 'बाशा', 'पडायप्पा', 'मुथु', 'अन्नामलाई' और 'अरुणाचलम' जैसी उनकी ब्लॉकबस्टर फिल्मों ने 'मास सिनेमा' का एक नया फॉर्मूला स्थापित किया। इन फिल्मों ने रजनीकांत को अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले आम आदमी के हीरो के रूप में दिखाया और टीवी पर बार-बार देखे जाने के कारण भी ये खूब पसंद की गईं।

प्रयोग और बदलाव का दौर

2000 के शुरुआती दशक में 'चंद्रमुखी' और 'शिवाजी: द बॉस' जैसी फिल्मों से उनका जलवा जारी रहा। इसके बाद उन्होंने 'एंथिरन' और 'कोचादैय्यां' जैसी तकनीकी रूप से उन्नत फिल्मों के साथ प्रयोग करना शुरू किया। हालांकि, 'लिंगा' की बड़ी असफलता ने उन्हें बेचैन कर दिया। इसके बाद पा. रंजीत के साथ 'कबाली' और 'काला' जैसी फिल्मों में उन्होंने समाज के वंचितों की आवाज उठाई, लेकिन कुछ आलोचकों ने उन्हें असफल करार दिया। '2.0' ने बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़े, लेकिन यह उनकी विरासत को और मजबूत नहीं कर पाई, जिसके बाद रजनीकांत ने अपने करियर को एक नई दिशा देने का फैसला किया।

अब खूंखार किरदारों की ओर वापसी

पिछले पांच-छह सालों में रजनीकांत की फिल्में अधिक गंभीर और यथार्थवादी हो गई हैं। कार्तिक सुब्बाराज की 'पेट्टा' स्टाइलिश थी, लेकिन इसमें सिमरन के साथ रजनीकांत के रोमांस को कम करके दिखाया गया था, कहानी एक गंभीर बदले के इर्द-गिर्द घूमती थी। 'दरबार' में उन्होंने एक ऐसे गुस्सैल पुलिस वाले का किरदार निभाया, जो अपनी बेटी के हत्यारों पर कहर बरपाता है। 'जेलर', उनकी अब तक की सबसे हिंसक फिल्म थी, जिसमें वह लोगों का सिर काटते और अपने ही बेटे की हत्या करते भी दिखे। टी.जे. ज्ञानवेल निर्देशित 'वेट्टैयान' लंबे समय बाद रजनीकांत की सबसे शांत फिल्मों में से एक थी; जिसमें एक एनकाउंटर विशेषज्ञ फर्जी मुठभेड़ों के खिलाफ एक साजिश की जांच करता है।

'अन्नात्थे' जैसी फिल्म की असफलता ने भी यह साबित कर दिया कि वह अब सिर्फ हीरोइन के साथ नाचते हुए, पंचलाइन बोलते हुए या एक्शन दृश्यों में स्लो-मोशन में चलकर काम नहीं चला सकते। आज के युवा दर्शक उनसे और अधिक चाहते हैं। आज बड़े तमिल सितारों के लिए यथार्थवादी एक्शन फिल्में ही ट्रेंड में हैं।

'कूली' से मिलेगा एक नया अंदाज़

अब, रजनीकांत 36 साल बाद अपनी पहली ए-सर्टिफिकेट फिल्म 'कूली' में नजर आएंगे, जिसे खूनी दृश्यों और बंदूकों के प्रति लगाव रखने वाले फिल्मकार लोकेश कनगराज निर्देशित कर रहे हैं। यह साफ करता है कि रजनीकांत अब सुरक्षित रास्ता चुनने वाले सुपरस्टार नहीं रहे। वह अब अपनी शर्तों पर काम करेंगे। रजनीकांत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह हर उम्र के दर्शकों के लिए सुपरस्टार हैं और हमेशा रहेंगे, 'आरिलिरुंधु अरुबथु वरई' (छह से साठ तक)।

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