मोहित सूरी की फिल्म 'सैयारा' ने मचाया धमाल, दर्शक हो रहे भावुक

मोहित सूरी की 'सैयारा' ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया, दर्शक भावुक।

Published · By Tarun · Category: Entertainment & Arts
मोहित सूरी की फिल्म 'सैयारा' ने मचाया धमाल, दर्शक हो रहे भावुक
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हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्मों में एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है - एंटी-क्लाइमेक्स का। यानी, कहानी में अचानक ऐसा मोड़ आना जिसकी किसी को उम्मीद न हो। इस हफ्ते हम ऐसी ही कुछ फिल्मों और वेब सीरीज़ की पड़ताल करेंगे, जिनमें मोहित सूरी की 'सैयारा' सबसे आगे है। यह फिल्म रातों-रात बॉक्स ऑफिस पर छा गई है और इसे एक 'स्लीपर सुपर हिट' कहा जा रहा है।

'सैयारा' क्यों बनी खास?

मोहित सूरी की फिल्म 'सैयारा' ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया है। नए एक्टर्स अहान पांडे और अनीता पड्डा को लेकर बनी यह फिल्म दर्शकों को खूब पसंद आ रही है और लोग इसे देखकर काफी भावुक भी हो रहे हैं। क्या पुरानी स्टाइल का रोमांस फिर से वापस आ गया है? दर्शक इस फिल्म को इतना प्यार क्यों दे रहे हैं?

कहानी और किरदार

'सैयारा' की कहानी पूरी तरह से केमिस्ट्री पर आधारित है – बदलाव, विकास और परिवर्तन की केमिस्ट्री। फिल्म में अहान पांडे एक गुस्सैल रॉकस्टार की भूमिका में हैं, जबकि अनीता पड्डा एक शर्मीली और रोमांटिक लड़की बनी हैं। ये दोनों बिलकुल विपरीत स्वभाव के किरदार हैं, लेकिन इनकी केमिस्ट्री कमाल की है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे विपरीत लोग एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं और किस्मत कैसे उन्हें एक एंटी-क्लाइमेक्स की ओर ले जाती है। वह संगीत है और वह उसके बोल। उनका रोमांस एक महान प्रेम गीत बनने जैसा है।

युवा प्रेम की मासूमियत

इस प्रेम कहानी को खास बात यह बनाती है कि इसमें युवा प्रेम की मासूमियत और जुनून को बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है। अहान और अनीता ने अपने किरदारों में जान डाल दी है। फिल्म में मोहित सूरी स्टाइल का ड्रामा भरपूर है, जो इसे 'रॉकस्टार' जैसी फिल्मों के रास्ते पर ले जाता है। लेकिन भावुकता के मामले में यह '50 फर्स्ट डेट्स' के करीब लगती है, जहाँ हंसी की जगह आंसू ले लेते हैं। लेखक संकल्प सदानह (कहानी और पटकथा) और रोहन शंकर (संवाद) ने इन किरदारों को जीवंत बना दिया है।

संदेश और गहराई

फिल्म में एक ऐसी मेडिकल कंडीशन भी दिखाई गई है, जिसे वर्तमान को भूलकर अतीत में जीने के रूपक के तौर पर देखा जा सकता है। यह आज के समय में घटते ध्यान और विचारों में खोए रहने की स्थिति को दर्शाता है। फिल्म में गानों के बोल को प्रेम पत्र के रूप में इस्तेमाल करना बेहद आकर्षक है। मोहित सूरी ने इस तूफानी रोमांस में जिस तरह का उतार-चढ़ाव दिखाया है, वह काबिले तारीफ है। इसकी कहानी इतनी शानदार है कि यश चोपड़ा भी इसे देखकर मुस्कुरा उठते।

अन्य हालिया रिलीज़

'सैयारा' के अलावा, हाल ही में कुछ और फिल्में और सीरीज भी चर्चा में रही हैं, जिनमें एंटी-क्लाइमेक्स या असलियत को दिखाने की कोशिश की गई है।

लेना डनहम की 'टू मच'

लेना डनहम की 'टू मच' (Too Much) नामक सीरीज 'एमिली इन पेरिस' जैसी ब्रिटिश रोमांटिक-कॉमेडी पर एक मजेदार और सच्चाई भरा कटाक्ष है। यह सीरीज काफी मजेदार होने के साथ-साथ बहुत relatable भी है, क्योंकि यह असल जिंदगी की उम्मीदों और हकीकत के बीच के फर्क को दिखाती है। 'टू मच' रिश्तों की उलझी हुई और मुश्किल सच्चाइयों को सामने लाती है, जो अक्सर फिल्मों में नहीं दिखतीं। लेना डनहम इसमें ऐसे पुरुष किरदारों को लिखती हैं, जो आम रोमकॉम क्लिच से अलग हैं। सीरीज में मुख्य संघर्ष महिला किरदारों के आपसी रिश्तों पर केंद्रित है, न कि किसी पुरुष को ढूंढने पर। यह सीरीज 'गर्ल्स' (Girls) जितनी गहरी या परेशान करने वाली नहीं है, बल्कि थोड़ी हल्की और आशावादी है।

आर. माधवन की 'आप जैसा कोई'

आर. माधवन और फातिमा सना शेख अभिनीत फिल्म 'आप जैसा कोई' एक ऐसी रोमांटिक-कॉमेडी है, जहाँ एक 40 साल का कुंवारा व्यक्ति अपनी बिलकुल विपरीत स्वभाव की लड़की से मिलता है और प्यार में पड़ जाता है। लेकिन जब उसे लड़की का राज पता चलता है, तो उसका रूढ़िवादी मन इसे स्वीकार नहीं कर पाता। यदि आपकी उम्मीदें बहुत बुनियादी हैं तो माधवन और फातिमा ने इस फिल्म को ठीक-ठाक बना दिया है, लेकिन पितृसत्ता से टकराने वाले ऐसे संघर्षों को पहले बेहतर तरीके से दिखाया गया है। यह फिल्म वरुण धवन और आलिया भट्ट की 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' की याद दिलाती है, जिसमें किरदारों का बदलाव ज्यादा स्वाभाविक और सच्चा लगता था।

नागेश कुकुनूर की 'द हंट'

सोनी लिव पर आई नागेश कुकुनूर की वेब सीरीज 'द हंट – द राजीव गांधी असासिनेशन केस' काफी चर्चा में है। यह सीरीज राजीव गांधी के हत्यारों की तलाश में की गई जांच को बेहद प्रामाणिक तरीके से दिखाती है। यह सिर्फ घटनाओं को नहीं बताती, बल्कि उस समय की लालफीताशाही और नौकरशाही को भी उजागर करती है। नागेश कुकुनूर ने लेखकों रोहित बनवालीकर और श्रीराम राजन के साथ मिलकर इस कहानी को सच्चाई के साथ पेश किया है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि आप सबसे संवेदनशील विषयों पर भी सच्ची कहानी बता सकते हैं, यदि आप राजनीति पर नहीं, बल्कि लोगों पर ध्यान केंद्रित करें।

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