कलोल दत्ता की कला: कपड़ों से खोली सामाजिक नियमों की पोल

कलोल दत्ता की 'वॉल्यूम IV' प्रदर्शनी कपड़ों से सामाजिक नियमों पर सवाल उठाती है।

Published · By Tarun · Category: Entertainment & Arts
कलोल दत्ता की कला: कपड़ों से खोली सामाजिक नियमों की पोल
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क्या है 'वॉल्यूम IV'?

मुंबई के कोलाबा में स्थित एक्सपेरिमेंटर गैलरी में इन दिनों एक बेहद ख़ास कला प्रदर्शनी 'वॉल्यूम IV' चल रही है। यह प्रदर्शनी जाने-माने कलाकार और फ़ैशन डिज़ाइनर कलोल दत्ता की रचना है, जो कपड़ों के ज़रिए सामाजिक नियमों और बर्ताव पर सवाल उठा रही है। यह प्रदर्शनी दिखाती है कि कैसे कपड़े हमारे जीने, उठने-बैठने और बर्ताव करने के तरीक़ों को तय करते हैं।

कपड़े और सामाजिक नियम

दत्ता की यह प्रदर्शनी 2,000 साल पुराने चीनी दस्तावेज़ 'लेसन फ़ॉर वुमेन' से प्रेरित है, जिसे चीनी इतिहासकार बान झाओ ने अपनी बेटियों के लिए लिखा था। यह दस्तावेज़ महिलाओं, ख़ासकर बेटियों को समाज में कैसे रहना चाहिए, इस पर सलाह देती है - जैसे विनम्र, आज्ञाकारी और संयमित कैसे रहें। दत्ता बताते हैं कि उन्हें यह पाठ कितना जाना-पहचाना लगा। आज भी समाज में, ख़ासकर महिलाओं के लिए, विनम्रता और आज्ञाकारिता जैसे गुणों को कपड़ों के ज़रिए बढ़ावा दिया जाता है, जो सदियों पुरानी सोच को दर्शाता है।

कलोल दत्ता: फ़ैशन से कला तक का सफ़र

कलोल दत्ता पहले भारतीय फ़ैशन जगत का एक बड़ा नाम थे। उन्हें 'एंटी-फ़िट' डिज़ाइन के लिए जाना जाता था, जिसमें कपड़ों की माप शरीर के अनुसार नहीं होती थी। सेंट्रल सेंट मार्टिन्स से पढ़े दत्ता ने कुछ साल पहले मुख्यधारा के फ़ैशन से हटकर कला की दुनिया में क़दम रखा। अब वह कपड़ों को सिर्फ़ पहनावा नहीं, बल्कि सामाजिक तनाव और पहचान का ज़रिया मानते हैं।

प्रदर्शनी में क्या है ख़ास?

'वॉल्यूम IV: ट्रुथ्स, हाफ़-ट्रुथ्स, हाफ़-लाइज़, लाइज़' (Truths, Half-Truths, Half-Lies, Lies Our Clothes Have Told Us) नामक यह प्रदर्शनी चार हिस्सों में बांटी गई है। इसमें जापानी किमोनो से लेकर मणिपुरी फ़ानेक तक, एशियाई पहनावे के ज़रिए दिखाया गया है कि कैसे फ़ैशन ने हमेशा लोगों की हैसियत, लिंग और जातिगत भूमिकाओं को तय किया है। उदाहरण के लिए, साड़ी को अक्सर भारतीय नारीत्व का प्रतीक माना जाता है, लेकिन ब्लाउज़ और पेटीकोट जैसी चीज़ें अंग्रेज़ों के राज में शील-संकोच के विचारों से प्रेरित होकर जोड़ी गईं।

कलाकृतियाँ और संदेश

दत्ता की कलाकृतियाँ - कपड़ों से बने पोस्टर, मूर्तिकला जैसी आकृतियाँ और कपड़े की परतें - दान में मिले कपड़ों से बनाई गई हैं और इनमें इतिहास सिला हुआ है। इन कलाकृतियों के ज़रिए दत्ता पूछते हैं: किसे आराम मिलता है? कौन आज़ादी से घूम सकता है? किसे देखा जाता है? प्रदर्शनी का एक और ख़ास हिस्सा कोरियाई हानोक (एक पारंपरिक घर) के दो कपड़े के फ़्लोर प्लान हैं। एक में घर में लिंग-आधारित कठोर भूमिकाएं दिखाई गई हैं, जबकि दूसरे में सिर्फ़ महिलाओं के लिए बनाए गए आज़ादी भरे स्थान को दिखाया गया है। दत्ता का मानना है कि जैसे कपड़े हमें छोटा होना सिखाते हैं, वैसे ही वास्तुकला हमारी गति को सीमित करती है।

पुराने कपड़ों में छुपे सामाजिक भेद

दत्ता बताते हैं कि दान किए गए हर कपड़े के साथ दाता से जुड़ी जानकारी और यादें थीं। वह दिखाते हैं कि कैसे पुराने कपड़ों के साथ भी सामाजिक भेदभाव जुड़ा होता है। अभिजात वर्ग में पुराने कपड़ों को 'विंटेज फ़ैशन' कहा जाता है, लेकिन कुछ समूहों के लिए यह शर्मनाक होता है। कई भारतीय घरों में निचले तबके के घरेलू कामगारों के कपड़े अलग रखे जाते हैं, उन्हें छुआ तक नहीं जाता। कलाकार का इन कपड़ों को इकट्ठा करना और बदलना इस असमानता को दूर करने का एक तरीक़ा है।

कलाकार का अनूठा तरीक़ा और संदेश

कलोल दत्ता अपनी कला में 'धीमेपन' (slowness) का इस्तेमाल करते हैं। कपड़ों को सिलना, जोड़ना, खोलना - उनकी यह प्रक्रिया एक ख़ामोश विरोध है। वह कहते हैं, "कपड़े हमेशा हमारी पहली रक्षा रेखा रहेंगे।" इस सीरीज़ के लिए उन्होंने कोलकाता के 'एक तारा क्रिएट्स' के साथ मिलकर काम किया है, जो कमज़ोर पृष्ठभूमि की महिलाओं को रोज़गार देता है। दत्ता हमें चौंकाने का लक्ष्य नहीं रखते, बल्कि हमें फिर से देखने के लिए कहते हैं – हमारे कपड़ों की परतों को, और उन नियमों को जिन्हें हमने बिना सवाल किए अपना लिया है।

कब और कहाँ देखें?

कलोल दत्ता की यह ख़ास प्रदर्शनी 'वॉल्यूम IV' 20 अगस्त तक मुंबई के एक्सपेरिमेंटर गैलरी में देखी जा सकती है।

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