फिल्म समीक्षा: 'जनकी वी बनाम स्टेट ऑफ केरल'

संवेदनशील कहानी और 'सुपरहीरो' के बीच फंसी बेतुकी फिल्म।

Published · By Tarun · Category: Entertainment & Arts
फिल्म समीक्षा: 'जनकी वी बनाम स्टेट ऑफ केरल'
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मलयालम सिनेमा की नई फिल्म 'जनकी वी बनाम स्टेट ऑफ केरल' सिनेमाघरों में आ चुकी है। सुरेश गोपी और अनुपमा परमेश्वरन अभिनीत यह फिल्म एक संवेदनशील विषय पर आधारित है, लेकिन समीक्षकों के अनुसार यह अपनी कहानी कहने के बजाय मुख्य अभिनेता को 'सुपरहीरो' के रूप में पेश करने की कोशिश में फंस गई है। इस संघर्ष में फिल्म अपनी संवेदनशीलता और उद्देश्य दोनों खो देती है।

फिल्म का परिचय

'जनकी वी बनाम स्टेट ऑफ केरल' का निर्देशन प्रवीण नारायणन ने किया है, जिन्होंने इसकी कहानी भी लिखी है। फिल्म में सुरेश गोपी, अनुपमा परमेश्वरन, माधव सुरेश, असकार अली, श्रुति रामचंद्रन और दिव्या पिल्लई जैसे कलाकार हैं। इसकी कुल अवधि 156 मिनट है। फिल्म का नाम मूल रूप से 'जनकी बनाम स्टेट ऑफ केरल' था, लेकिन सेंसर बोर्ड के निर्देश पर इसमें 'V' अक्षर जोड़ा गया।

कहानी क्या है?

फिल्म की कहानी जानकी (अनुपमा परमेश्वरन) नाम की एक आईटी प्रोफेशनल के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बेंगलुरु में काम करती है। छुट्टी मनाने अपने गृहनगर लौटने पर वह बलात्कार का शिकार हो जाती है। इसके बाद, कोर्टरूम में घटनाओं की कड़ी की गहन जांच होती है। फिल्म में वकील डेविड एबेल डोनोवन (सुरेश गोपी) जानकी का केस लड़ते हैं।

कोर्टरूम में बेतुके तर्क

फिल्म की सबसे बड़ी कमियों में से एक सुरेश गोपी के किरदार वकील डेविड एबेल डोनोवन के तर्क हैं। उनके तर्क अक्सर मामले से पूरी तरह से हटकर होते हैं और एक कोर्टरूम ड्रामा के बजाय किसी तेजतर्रार टेलीविजन बहस का हिस्सा लगते हैं। उदाहरण के लिए, बलात्कार के मामले में वे राज्य की विकास परियोजनाओं पर लंबी-चौड़ी बात करते हैं। यही नहीं, वे एक बलात्कार पीड़िता से यह भी पूछते हैं कि क्या वह पोर्न देखती है और कितनी बार। फिल्म के शुरुआती क्रेडिट सीक्वेंस में ही उनके इस व्यवहार का संकेत मिल जाता है, जहां प्रेस कॉन्फ्रेंस के क्लिपिंग्स में दिखाया जाता है कि वे कोर्ट के बाहर ज्यादा सक्रिय रहते हैं।

निर्देशन और लेखन की कमजोरियां

निर्देशक प्रवीण नारायणन, जो इस फिल्म से निर्देशन में अपनी शुरुआत कर रहे हैं, संवेदनशील कहानी कहने और अपने मुख्य अभिनेता के 'सुपरहीरो' व्यक्तित्व को उभारने दोनों में असफल रहे हैं। फिल्म में सूक्ष्मता की कमी साफ दिखती है। सब कुछ तेज ऑडियो और विजुअल संकेतों के साथ दिखाया गया है, जिससे दर्शकों के मन में कोई संदेह नहीं रहता। फिल्म का लेखन और निर्देशन 1990 के दशक की फिल्मों की याद दिलाता है।

कहानी का विवादास्पद पहलू

फिल्म में एक विवादास्पद केंद्रीय विचार भी है, जो बलात्कार से पैदा हुए बच्चे के पितृत्व से संबंधित है। यह विचार हाल के सिनेमा में सबसे अजीब विचारों में से एक माना जा रहा है। समीक्षकों के अनुसार, यह एक गंभीर मुद्दे को कमजोर करता है और इसे एक राजनीतिक हथियार में बदल देता है।

अनावश्यक तत्व और निष्कर्ष

एक कोर्टरूम ड्रामा होने के बावजूद, फिल्म में ऐसे मुश्किल से कोई दृश्य हैं जो दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। नाटक को और धीमा करने के लिए, इसमें एक अनावश्यक 'जंप स्केयर' सीक्वेंस भी है, जो किसी बी-ग्रेड हॉरर फिल्म से प्रेरित लगता है। इसके अलावा, फिल्म के गाने भी कहानी को और लंबा खींचते हैं।

कुल मिलाकर, 'जनकी वी बनाम स्टेट ऑफ केरल' एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर संवेदनहीन दृष्टिकोण अपनाती है। सेंसर के कहने पर 'जनकी' के नाम में जोड़ा गया 'V' अक्षर, इस फिल्म की निरर्थकता को दर्शाता है। फिल्म वर्तमान में सिनेमाघरों में चल रही है।

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