आदिवासी रैपर माही जी: गानों से बदल रहीं भारतीय हिप-हॉप की पहचान

माही जी: गानों से बदल रहीं भारतीय हिप-हॉप की पहचान

Published · By Tarun · Category: Entertainment & Arts
आदिवासी रैपर माही जी: गानों से बदल रहीं भारतीय हिप-हॉप की पहचान
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महाराष्ट्र से आने वाली 28 साल की आदिवासी रैपर माधुरी घाणे, जिन्हें माही जी के नाम से जाना जाता है, अपने गानों से भारतीय हिप-हॉप की पहचान बदल रही हैं। वह अपने माइक को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करती हैं और उसके जरिए सामाजिक अन्याय, पर्यावरण के मुद्दे और आदिवासी अधिकारों के लिए आवाज उठाती हैं। माही जी महादेव कोली जनजाति से संबंध रखती हैं।

रैप की दुनिया में कैसे आईं?

माही जी का रैप का सफर किसी बड़े स्टूडियो से नहीं, बल्कि अहमदनगर के उनके गांव से शुरू हुआ था। पहले लॉकडाउन के दौरान, जब पूरी दुनिया थम सी गई थी, तो उन्होंने खुद को सोचने, समझने और लिखने का समय दिया। इसी दौरान, उनके अंदर का गुस्सा शब्दों में ढला और उन्होंने रैप लिखना शुरू किया। पेशे से आईटी इंजीनियर रहीं माही जी ने अपनी पुरानी कविताओं से प्रेरणा लेते हुए हिप-हॉप को अपनी कहानी कहने का जरिया बनाया। वह बताती हैं कि उनके माता-पिता ने हमेशा उनके सामाजिक विचारों को बढ़ावा दिया और उनके गानों को बड़े उत्साह से सुनते हैं।

कौन से मुद्दे उठाती हैं अपने गानों में?

माही जी का पहला गाना 'जंगल का राजा' (Jungle cha raja) महादेव कोली आदिवासी समुदाय के संघर्ष और विकास के नाम पर हो रही अनदेखी की कहानी कहता है। लॉकडाउन के दौरान, उन्होंने देखा कि कैसे सरकार ने बांध बनाकर और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर लोगों की आजादी छीनने की कोशिश की। इसी बात ने उन्हें बहुत गुस्सा दिलाया और उनके पहले रैप गाने को जन्म दिया। इस गाने को रैपर-प्रोड्यूसर अजित शेलके, जिन्हें रैपबॉस के नाम से भी जाना जाता है, के सहयोग से बनाया गया।

माही जी अपने गीतों के जरिए आदिवासी पहचान के मिटने, जातिगत असमानता, ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों और पर्यावरण विनाश जैसे कई मुद्दों पर बात करती हैं। उनका गाना 'हक से हिजड़ा हूं' (Haq se hijra hun) ट्रांसजेंडर समुदाय को समर्पित है। कॉलेज के दिनों में उन्हें यह सवाल परेशान करता था कि ट्रांसजेंडर लोगों को भीख क्यों मांगनी पड़ती है, जबकि दूसरे लोगों को नौकरियां मिलती हैं। इस गाने को बनाते समय उन्होंने पुणे स्थित हमसफर ट्रस्ट से मदद ली ताकि गाना बिल्कुल सही जानकारी दे। माही अपने सभी गानों को खुद ही फंड करती हैं, जिससे यह सफर उनके लिए आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण रहा है।

छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगल में कोयला खनन के लिए हो रही पेड़ों की कटाई पर उनका म्यूजिक वीडियो वायरल हो गया था। हाल ही में उन्होंने ग्रीनपीस (Greenpeace) के साथ मिलकर 'हीटवेव' (Heatwave) नाम का गाना रिलीज किया, जो बढ़ती गर्मी, जलते जंगल और धूप में बिना सुरक्षा काम कर रहे लाखों लोगों की अनदेखी सच्चाई को सामने लाता है।

मिली कई उपलब्धियां और सम्मान

कुछ ही सालों में माही जी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay), कलिना विश्वविद्यालय और टीआईएसएस (TISS) जैसे भारत के प्रतिष्ठित शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थानों में प्रदर्शन किया है। उन्हें 18वां विद्रोही मराठी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार (Vidrohi Marathi Sahitya Sammelan Puraskar) मिला है और 2025 में सामाजिक अन्याय के खिलाफ निडर होकर बोलने के लिए उन्हें फातिमाबी सावित्री पुरस्कार (Fatimabi Savitri Puraskar) से भी सम्मानित किया गया।

माही जी का प्रेरणास्रोत और संदेश

माही जी अपनी सबसे बड़ी प्रेरणा प्रकृति को मानती हैं। एक आदिवासी महिला होने के नाते, वह प्रकृति से गहराई से जुड़ी हुई महसूस करती हैं और उसमें शांति और शक्ति पाती हैं। जब भी उन्हें अन्याय महसूस होता है, वह अपनी नोटबुक की ओर रुख करती हैं, यह जानते हुए कि उन्हें आवाज उठानी है।

उनसे अक्सर पूछा जाता है, "क्या आपको सत्ता में बैठे लोगों के खिलाफ बोलने से डर नहीं लगता?" इस पर वह जवाब देती हैं: "मैं तब बोलना बंद करूंगी, जब ये सभी मुद्दे हल हो जाएंगे। तब तक, मैं इनके बारे में रैप करती रहूंगी।" वह उम्मीद करती हैं कि उनके गाने लोगों के बीच बातचीत शुरू करेंगे। माही जी खुद को सिर्फ एक रैपर नहीं, बल्कि एक 'कहानीकार' मानती हैं, जो अभी भी अपनी कला को सीख रही हैं, विकसित कर रही हैं और निखार रही हैं। उनका मानना है कि उनके गाने लोगों के दिमाग में विचारों के बीज बोएं। वह स्वदेशी आंदोलन के साथ एक आगामी सहयोग पर भी काम कर रही हैं और अन्य कलाकारों से आग्रह करती हैं कि वे अपने सिद्धांतों पर दृढ़ रहें। "खुद पर विश्वास रखें, चाहे कुछ भी हो।"

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