विकलांग हुए सैन्य कैडेटों की दुर्दशा पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, केंद्र से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने विकलांग सैन्य कैडेटों की दुर्दशा पर केंद्र से जवाब मांगा।

Published · By Tarun · Category: Politics & Government
विकलांग हुए सैन्य कैडेटों की दुर्दशा पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, केंद्र से मांगा जवाब
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क्या है मामला?

सुप्रीम कोर्ट ने सैन्य प्रशिक्षण के दौरान विकलांग होने वाले कैडेटों की दयनीय स्थिति पर चिंता जताई है। अदालत ने केंद्र सरकार से इस मामले में एक विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट यह विचार भी कर रहा है कि क्या ऐसे कैडेटों को पूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना (ECHS) के तहत लाया जा सकता है।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने सरकार से यह पता लगाने को कहा है कि क्या इन कैडेटों को बीमा कवर, एकमुश्त अनुग्रह राशि और पुनर्वास सुविधाएं देने के लिए कोई योजना मौजूद है।

अदालत ने स्वतः संज्ञान लिया

यह मामला 12 अगस्त को एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आया था। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि सशस्त्र बलों के वे कैडेट, जो प्रशिक्षण के दौरान दुर्घटना का शिकार होकर विकलांग हो जाते हैं, उन्हें बाद में बेसहारा छोड़ दिया जाता है। ये कैडेट देश के प्रमुख सैन्य संस्थानों जैसे राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) और भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) का हिस्सा रहे हैं।

क्या है कैडेटों की समस्या?

रिपोर्ट के अनुसार, 1985 से अब तक लगभग 500 ऐसे अधिकारी कैडेट हैं जिन्हें प्रशिक्षण के दौरान अलग-अलग स्तर की विकलांगता के कारण सैन्य संस्थानों से चिकित्सीय कारणों से छुट्टी दे दी गई है। ये कैडेट अब बढ़ते मेडिकल बिलों से जूझ रहे हैं, जबकि उन्हें हर महीने 40,000 रुपये की अनुग्रह राशि मिलती है, जो उनकी ज़रूरतों के मुकाबले बहुत कम है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि केवल एनडीए में ही 2021 से जुलाई 2025 के बीच पांच साल में करीब 20 ऐसे कैडेट हैं जिन्हें चिकित्सीय कारणों से छुट्टी मिली है।

पूर्व सैनिक का दर्जा नहीं, इसलिए नहीं मिलती सुविधाएं

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इन कैडेटों की दुर्दशा इसलिए भी अधिक है क्योंकि नियमों के अनुसार, उन्हें पूर्व सैनिक (ESM) का दर्जा नहीं मिलता। यदि उन्हें यह दर्जा मिल जाता, तो वे ईसीएचएस के तहत सैन्य सुविधाओं और सूचीबद्ध अस्पतालों में मुफ्त इलाज के हकदार होते। उन्हें यह दर्जा इसलिए नहीं मिलता क्योंकि उनकी विकलांगता प्रशिक्षण के दौरान हुई थी, अधिकारियों के रूप में कमीशन मिलने से पहले।

सुप्रीम कोर्ट अब इस गंभीर मुद्दे का समाधान खोजने की दिशा में काम कर रहा है।

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