दहेज नहीं, दिखावा नहीं! 17 मिनट की शादी ने मचाई धूम
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है 17 मिनट में दहेज-मुक्त शादी का ट्रेंड


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17 मिनट में शादी: एक नया बदलाव या बस एक ट्रेंड?
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इन दिनों ‘Marriages In 17 Minutes’ ट्रेंड कर रहा है, जिसे देखकर हर कोई हैरान है। लेकिन ये सिर्फ एक वायरल हैशटैग नहीं, बल्कि समाज में हो रहे एक महत्वपूर्ण बदलाव की ओर इशारा करता है। यह पहल सीधे तौर पर दहेज प्रथा और भव्य शादियों की परंपरा को चुनौती देती है।
यह अनोखी पहल जुड़ी है Sant Rampal Ji Maharaj से, जिनके अनुयायी इन साधारण और तेज़ विवाहों को अपनाकर समाज में बदलाव लाने का दावा कर रहे हैं। इन शादियों में न तो फेरे होते हैं, न बैंड-बाजा, न बारात और न ही दहेज। सिर्फ 17 मिनट में पूरी विधि पूरी की जाती है।
क्यों बन रही हैं ये शादियाँ चर्चा का विषय?
दहेज के खिलाफ आवाज: दहेज प्रथा भारत में वर्षों से महिलाओं पर मानसिक और आर्थिक दबाव डालती रही है। '17 मिनट शादी' इस चलन को जड़ से उखाड़ने की दिशा में एक प्रयास है।
साधारणता में सुंदरता: X पर वायरल पोस्टों के अनुसार, ये शादियाँ न अधिक खर्च की मांग करती हैं और न ही सामाजिक दिखावे की। सिर्फ जरूरतमंद दस्तावेज, गवाह और एक संक्षिप्त विधि के साथ शादी पूरी हो जाती है।
स्पिरिचुअल मूवमेंट का हिस्सा: संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों का कहना है कि यह सिर्फ एक शादी नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सामाजिक क्रांति है। वे इसे ‘सच्ची भक्ति की राह’ का हिस्सा बताते हैं।
सोशल मीडिया पर भारी समर्थन: #MarriageIn17Minutes और #दहेज_दानव_से_मुक्ति जैसे हैशटैग्स के साथ, हजारों पोस्ट्स इस ट्रेंड को सपोर्ट कर रहे हैं। कुछ पोस्टों का दावा है कि 3 लाख से ज्यादा ट्वीट्स इस मुहिम का हिस्सा बन चुके हैं।
इसके पीछे की सोच
भारतीय शादियाँ अक्सर आर्थिक बोझ बन जाती हैं, खासकर निम्न आय वर्ग के लिए। ‘17 मिनट शादी’ का उद्देश्य शादी को सिर्फ दो व्यक्तियों का मिलन मानते हुए समाज की बोझिल परंपराओं को खत्म करना है।
आलोचना भी हो रही है
जहाँ कुछ लोग इसे क्रांतिकारी कदम मान रहे हैं, वहीं कुछ आलोचक सवाल उठा रहे हैं – क्या इस प्रक्रिया को कानूनी रूप से मान्यता मिली है? क्या इसमें सभी धर्मों की परंपराओं का सम्मान होता है? साथ ही, इस पूरे ट्रेंड का एक नेता विशेष से जुड़ा होना भी कई लोगों को असहज कर रहा है।
निष्कर्ष
‘17 मिनट में शादी’ एक चर्चा का विषय इसलिए नहीं बना क्योंकि ये असंभव लगता है, बल्कि इसलिए क्योंकि यह समाज के पुराने ढांचों को चुनौती देता है। यह पहल दहेज और दिखावे के खिलाफ एक मजबूत संदेश देती है। लेकिन क्या यह बदलाव व्यापक स्तर पर स्वीकार होगा या सिर्फ सोशल मीडिया पर ही सिमट कर रह जाएगा — यह वक्त ही बताएगा।
"शादी एक समझौता नहीं, एक संकल्प हो — बिना दिखावे और दहेज के"