ट्रंप के तानों और गिरफ्तारी के बीच ग्रेटा थनबर्ग का बड़ा कदम
गाज़ा मिशन में शामिल होकर इज़राइल से डिपोर्ट हुई ग्रेटा थनबर्ग


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स्वीडन की 22 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग एक बार फिर चर्चा में हैं, लेकिन इस बार कारण जलवायु परिवर्तन नहीं, बल्कि गाज़ा के लिए उनकी एक 'साहसी' मुहिम है। 1 जून 2025 को ग्रेटा एक ब्रिटिश जहाज 'मैडलिन' पर सवार होकर गाज़ा के लिए रवाना हुईं। उनका मकसद था—इज़राइल के 18 साल पुराने नौसैनिक प्रतिबंध को तोड़ते हुए वहां ज़रूरतमंदों तक मानवीय सहायता पहुंचाना।
जहाज जैसे ही अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में पहुंचा, इज़राइली नौसेना ने उसे रोक लिया। ग्रेटा और अन्य 11 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेकर अशदोद बंदरगाह लाया गया। इसके बाद उन्हें रमले स्थित डिटेंशन सेंटर में रखा गया। 10 जून को ग्रेटा को बिना इज़राइल में अवैध प्रवेश की बात मानने वाले दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए बिना फ्रांस के रास्ते स्वीडन भेज दिया गया।
ग्रेटा ने इज़राइल पर "अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र से अपहरण" करने का आरोप लगाया और कहा कि उनका मिशन उन दो मिलियन ग़ज़ावासियों के लिए था जो "संगठित भुखमरी" का सामना कर रहे हैं। हालांकि इज़राइली विदेश मंत्रालय ने इसे "पीआर स्टंट" कहा और ग्रेटा पर हमास का समर्थन करने का आरोप लगाया।
इस घटना ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर तूफान ला दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रेटा को "गुस्सैल और अजीब लड़की" करार दिया, जिस पर ग्रेटा ने पलटवार करते हुए कहा—"दुनिया को और ज़्यादा गुस्साई युवतियों की ज़रूरत है।"
घटना पर दुनिया भर में प्रतिक्रिया आई। फ्रांसीसी MEP रीमा हसन और अमेरिकी मुस्लिम संगठन CAIR ने ग्रेटा का समर्थन किया। वहीं इज़राइली सरकार ने उन्हें "यहूदी विरोधी" बताया। एडिनबर्ग में XR संगठन द्वारा विरोध प्रदर्शन भी हुआ।
इस घटनाक्रम ने कई बड़े सवाल खड़े किए हैं—क्या इज़राइल की कार्रवाई समुद्री कानून के विरुद्ध थी? क्या ग्रेटा का यह कदम साहसी था या राजनीतिक ड्रामा? सोशल मीडिया पर दोनों पक्षों की तीखी बहस जारी है।
एक बात तो तय है—ग्रेटा थनबर्ग सिर्फ जलवायु परिवर्तन की कार्यकर्ता नहीं रहीं, अब वह मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मंच पर भी एक मुखर आवाज़ बन गई हैं।