भारत में गर्मी से 84 मौतें: नई रिपोर्ट ने खोला भीषण गर्मी का सच
भारत में गर्मी से 84 मौतें: नई रिपोर्ट ने खोला भीषण गर्मी का सच


bhanu@chugal.com
क्या कहती है नई रिपोर्ट?
इस साल फरवरी से जुलाई के बीच भारत में कम से कम 84 लोगों की जान लू लगने या हीटस्ट्रोक (Heatstroke) से चली गई। एक नए अध्ययन में यह चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। 'हीटवॉच' (HeatWatch) नामक एक गैर-लाभकारी संस्था ने 'स्ट्रक बाय हीट: अ न्यूज एनालिसिस ऑफ हीटस्ट्रोक डेथ्स इन इंडिया इन 2025' शीर्षक से अपनी रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, पूरे देश में गर्मी से जुड़ी बीमारियों के 2,287 मामले दर्ज किए गए, लेकिन दावा किया गया है कि वास्तविक संख्या "कम रिपोर्टिंग" के कारण कहीं ज्यादा हो सकती है।
सरकारी आंकड़ों से बड़ा अंतर
इस रिपोर्ट के नतीजे उन चिंताओं से मेल खाते हैं जो विशेषज्ञों और जून में पीटीआई की एक जांच में सामने आई थीं। इसमें बताया गया था कि भारत में गर्मी से जुड़ी बीमारियों और मौतों की रिपोर्टिंग व्यवस्थित नहीं है और अलग-अलग एजेंसियां बहुत अलग-अलग आंकड़े पेश करती हैं।
उदाहरण के लिए, सूचना के अधिकार (RTI) के तहत पीटीआई द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) ने इस साल 1 मार्च से 24 जून के बीच हीटस्ट्रोक के 7,192 संदिग्ध मामले और केवल 14 पुष्टि की गई मौतें दर्ज की थीं।
किस राज्य में कितनी मौतें?
हीटवॉच के विश्लेषण में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया रिपोर्टों की गहन समीक्षा की गई। इसके अनुसार, महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 17 मौतें दर्ज की गईं, इसके बाद उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में 15-15 मौतें हुईं। गुजरात में 10, असम में 6, जबकि बिहार, पंजाब और राजस्थान में 5-5 मौतें दर्ज की गईं। ओडिशा में 3 मौतें और केरल, तमिलनाडु व छत्तीसगढ़ में 1-1 मौत की सूचना मिली।
पीड़ित कौन थे?
रिपोर्ट में पाया गया कि मरने वालों में ज्यादातर बुजुर्ग, बाहर काम करने वाले मजदूर और दिहाड़ी मजदूर शामिल थे। इनमें खेतों में काम करते हुए गिरने वाले किसान से लेकर स्कूल ट्रिप पर या बाहर खेलते हुए दम तोड़ने वाले बच्चे और किशोर तक शामिल थे।
नवी मुंबई में 26 फरवरी को 13 साल के एक छात्र की मौत इस मौसम की शुरुआती मौतों में से एक थी। यह दर्शाता है कि भारत में लू अब पहले आ रही है और ज्यादा समय तक चल रही है।
बीमारी के सबसे ज्यादा मामले
बीमारी के मामलों में, आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा 700 मामले दर्ज किए गए, इसके बाद ओडिशा (348), राजस्थान (344) और उत्तर प्रदेश (325) का नंबर आता है। कुल मिलाकर, हीटवॉच डेटासेट में पूरे देश में 2,287 गर्मी से जुड़ी बीमारियों के मामले सामने आए।
आंकड़ों में अंतर और प्रणालीगत खामियां
हीटवॉच की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में गर्मी से होने वाली वास्तविक मौतों को 'डायग्नोस्टिक ब्लाइंड स्पॉट' (जांच में कमी), श्रमिक सुरक्षा नियमों को कमजोर ढंग से लागू करना और पुरानी गर्मी की चेतावनी प्रणाली छिपा रही है। यह चेतावनी प्रणाली तापमान और आर्द्रता के संयुक्त प्रभाव को ठीक से नहीं दर्शाती।
2015-2022 के लिए, एनसीडीसी ने 3,812 गर्मी से संबंधित मौतें दर्ज कीं, जबकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) ने 8,171 और भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने 3,436 मौतें बताईं। यह आंकड़ों में भारी अंतर दर्शाता है।
पोस्टमॉर्टम और चेतावनी प्रणाली पर सवाल
रिपोर्ट में कहा गया है कि नए राष्ट्रीय फॉरेंसिक दिशानिर्देशों के बावजूद, जो सीधे तापमान के रिकॉर्ड के बिना भी हीटस्ट्रोक को मृत्यु का कारण मानने की अनुमति देते हैं, डॉक्टर शायद ही कभी इनका उपयोग करते हैं। नतीजतन, कई मामलों को कार्डियक अरेस्ट, डिहाइड्रेशन या स्ट्रोक का कारण बताकर गर्मी की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
रिपोर्ट ने आईएमडी की हीटवेव चेतावनी प्रणाली की भी आलोचना की, जो लगभग पूरी तरह से हवा के तापमान पर आधारित है और वेट बल्ब ग्लोब टेम्परेचर (WBGT) को बाहर रखती है। डब्ल्यूबीजीटी गर्मी और आर्द्रता के संयुक्त प्रभाव को मापता है। रिपोर्ट ने 'गैर-अलर्ट' दिनों में हुई कई मौतों का हवाला दिया, जैसे कि तेलंगाना, गुजरात और महाराष्ट्र में श्रमिकों का गर्मी से गिरना, जब कोई आधिकारिक चेतावनी जारी नहीं की गई थी।
विशेषज्ञों की राय और आगे की राह
हीटवॉच की संस्थापक और रिपोर्ट की सह-लेखिका अपेक्षिता वार्ष्णेय ने कहा, “भारत में गर्मी का संकट मौसमी नहीं, बल्कि ढांचागत है। शुरुआती चेतावनी और अलर्ट सीमित हैं और उन श्रमिकों को कोई वास्तविक सुरक्षा नहीं देते जो खेतों, बाजारों और निर्माण स्थलों पर बिना किसी सुरक्षा के गिर रहे हैं। हमारी रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि छोटे-मोटे सुधार काम नहीं आएंगे।”
रिपोर्ट की लेखिका शिवानी दास ने कहा, “हमें बढ़ती गर्मी के खतरों को पहचान रहे हैं, लेकिन केवल पहचानना ही पर्याप्त नहीं है। एक स्वास्थ्य-केंद्रित दृष्टिकोण की कमी है, जो हर मामले को गिने, अस्पतालों को तैयार करे, श्रमिकों की रक्षा करे और ठंडे शहर बनाए। ये प्रणालीगत कदम ही वास्तव में बढ़ते तापमान में जान बचाएंगे।”
संगठन ने फ्रांस, जापान, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों की तर्ज पर दोपहर में काम पर प्रतिबंध, छायादार विश्राम क्षेत्र, पानी तक पहुंच और कानूनी रूप से लागू करने योग्य कार्य-विश्राम चक्र के लिए एक राष्ट्रीय कानून की मांग की है। इसने यह भी आग्रह किया कि हीटस्ट्रोक के हर मामले को केंद्रीकृत, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रजिस्ट्री में दर्ज किया जाए, न कि प्रतिबंधित पहुंच वाले इंटीग्रेटेड हेल्थ इंफॉर्मेशन प्लेटफॉर्म में।
पूर्व विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन सहित विशेषज्ञों ने पहले चेतावनी दी है कि भारत "संभवतः गर्मी से संबंधित मौतों को कम गिन रहा है" और आधिकारिक आंकड़े केवल "हिमशैल का सिरा" हैं।
भविष्य की चुनौतियां
इस साल की अत्यधिक गर्मी में राजस्थान के कुछ हिस्सों में पारा 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जबकि असम और हिमालयी राज्यों जैसे ऐतिहासिक रूप से कम संवेदनशील क्षेत्रों में भी मौतें दर्ज की गईं। रिपोर्ट में कहा गया है कि हीट अलर्ट सिस्टम, सार्वजनिक स्वास्थ्य तैयारियों और व्यावसायिक सुरक्षा में तत्काल सुधार के बिना, भारत की अपनी सबसे कमजोर आबादी को बढ़ती गर्मी से बचाने की क्षमता बहुत अपर्याप्त रहेगी।